आत्म-हत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं

एक बहुत ही सूझवान एस.डी.एम. ठाकुर प्रभात भट्टी (वास्तविक नाम नहीं ) का चेहरा अक्सर मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है। मैंने भट्टी साहिब को जन कल्याण राशन प्रोजैक्ट सम्बंधी कुछ दस्तावेज़ दिखाने थे। मैं फाईल तैयार करके समय मांगने ही वाला था कि उनके द्वारा आत्महत्या कर लेने का समाचार आ गया। एस.डी.एम. पर एक बहुत बड़ा राजनीतिक नेता बहुत बड़ी खरीददारी के बिलों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाल रहा था जो किसी अन्य अफसर ने तैयार करवाए थे। पिछले वर्ष 17 अगस्त, 2019 को कर्ज़ की समस्या का सामना कर रहे प्रख्यात क्रिकेटर बी.बी. चंद्रशेखर ने चेन्नई में आत्महत्या की। कर्नाटका के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम.कृष्णा के दामाद व ‘कैफे काफी डे’ के प्रोमोटर वी.जी. सिद्धार्था ने भी पिछले वर्ष 30 जुलाई को नेत्रवती दरिया में कूद कर आत्महत्या की। सिद्धार्था आयकर विभाग से बहुत परेशान थे। जब यह समाचार आया तो लोग स्तबध रह  गए क्योंकि ‘कॉफी डे’  का समस्त भारत में बड़ा नाम था। इसी वर्ष 14 अप्रेल को मुम्बई में सफल सिने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद सोशल मीडिया पर तीखी बहस भी चली। मानसिक परेशानी तो मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह सम्भव ही नहीं कि संसार के तमाम के घटनाक्रम आपके ह़िसाब से चलें। एक घर के पांच सदस्य भी एक तरीके से नहीं चलते। फलों और फूलाें के देश कैनेडा में नागरिकों के सिर पर सामाजिक सुरक्षा की छतरी है। नागरिकों को अत्याधिक सुविधाएं हैं लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वहां तमाम लोग चिन्ता मुक्त हैं। वहां अलग तरह की समस्याएं है। हिन्दुस्तान में आत्महत्या करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा हैं कारण भी भिन्न-भिन्न हैं। 2015 में 1,33,623 व्यक्तियों ने खुदकुशी की । चेन्नई, बेंगलुरू, दिल्ली में क्रम अनुसार 2274,1855, 1553 लोगों ने आत्महत्या की। 1,33,623 लोगों में से  27.6 प्रतिशत ने पारिवारिक समस्याओं के कारण, 15.8 प्रतिशत ने बीमारी के कारण,  4.8 प्रतिशत  ने 7/51 काटो क्लेश वैवाहिक जीवन के कारण, 3.3 प्रतिशत ने आर्थिक मंदी के कारण व 48.5 प्रतिशत ने अन्य कारणों से आत्महत्या की । 2013-2018 दौरान तीन आई.पी.एस. अधिकारियों हिमांशु रॉय, अजय कुमार, सुरिंद्रा कुमार दास सहित 940 पुलिस कर्मचारियों ने आत्महत्या की। पुलिस का काम आसान नहीं है। राजसी दबाव के अलावा काम के घंटों का कोई हिसाब नहीं है। पुलिस के लिए दो नम्बर की कमाई व अवैध काम ऑक्सीजन की तरह है। हिन्दुस्तान की पुलिस इन्साफ क्या करेगी, उसको तो खुद राजनीतिक दबाव व संसाधनों के अभाव का सामना है। बड़े अधिकारियों द्वारा छोटे कर्मचारियों का शोषण आम बात है। बड़ी संख्या में पुलिस कर्मचारी तनावगस्त रहते हैं। कंधों पर लगे स्टार तो सबको दिखते हैं लेकिन स्ट्रैस तो खुद ही झेलना पड़ता है। पंजाब में आतंकवाद के दौर में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाने वाले बहुत चर्चित एक एस.एस.पी. ने आत्महत्या कर ली थी। जनसंख्या विस्फोट के कारण भी समाज में निराशा का दौर है। प्रत्येक क्षेत्र में अवसर कम हैं, प्रत्याशी ज्यादा। पिछले वर्ष 14,10,755 छात्रों ने नीट परीक्षा दी जिनमें से 7,97,042 छात्र पास हुए, 3.51 लाख पुरुष व 4.45 लाख महिला  प्रत्याशियों ने परीक्षा पास की। 133 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में एम.बी.बी.एस. की सीटें सिर्फ 79,855 ही हैं। बी.डी.एस. सीटें  26,949, एम.डी., एम.एस., पी.जी. डिप्लोमा सीटें सिर्फ 36,000 हैं। कोरोना कहर व लॉकडाउन के दौर के कारण हर तरफ  से उदास ख़बरें आ रही हैं। समाज में बेचैनी, टकराव व घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है। हज़ारों उपक्रम बंद हो गए हैं  व लाखों लोग बेरोज़गार हो गए हैं। विदेशों में प्रवेश बंद होने के कारण कई ‘आईलेट्स’ पास नौजवानों ने जीवन लीला समाप्त कर ली है। कृषकों की आत्महत्या हमारे सिस्टम पर कलंक की तरह है ही। व्यापर में घाटे के कारण, प्रेम सम्बंध टूटने के कारण, रिश्ता टूटने के कारण, नौकरी ख़त्म होने के कारण प्रत्येक दिन नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं। इस वर्ष हिन्दुस्तान में आत्महत्याओं की संख्या बढ़ेगी क्योंकि महौल में निराशा ज्यादा है। कभी भी निराशा का दामन न थामो व आत्महत्या के बारे कभी भी न सोचो। प्रत्येक आदमी की जिंदगी में निराशा का दौर आता है पर यह हमेशा नहीं रहता। मुझे एक बार स्वर्गीय चित्रकार नायब सिंह सैंपले का इण्ट्रव्यू करने का मौका मिला। उम्र भर व्हील चेयर पर रहने वाले सैंपले ने कमाल की बात ही ‘आदमी अंगहीन हो मगर अक्लहीन न हो।’ ‘पैराडॉइस लॉस्ट’ जॉन मिल्टन की प्रसिद्ध रचना है जो उन्होंने नेत्रहीन होने के बाद लिखी। ’माई लैंड माई पीपुल’  के लेखक दलाई लामा का कथन है कि ‘खुशी के अवसराें की खोज खुद ही करनी पड़ती है।’ जिंदगी का बड़ा हिस्सा  27 साल जेल में काटने वाले महान नेल्सन मंडेला की रचनाओं को दुनिया जानती है। ‘लांग वॉक टू फ्रीडम’ और ‘द स्ट्रगल इन माई लाइफ’ को बच्चा-बच्चा जानता है। जिन्दगी के कठिन पल हमेशा बने नहीं रहते। कभी-कभी विशेष हालात में इच्छा मृत्यु के बारे बात अवश्य चलती है। कनाडा व कुछ अन्य देशों में लोग ऐसा करने के लिए कानूनी दस्तावेज़ बनाकर भी रखते हैं  मगर जो लोग अच्छे भले हैं। उनको अपने लिए व अपने चाहने वालों के लिए जीने और ज़हर तथा नहर से दूर रहने की ज़रूरत है। 

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