बासमती का जी.आई. टैग मौजूदा 7 राज्यों तक सीमित रखा जाए

बासमती एक अहम फसल है। यह पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर, उत्ताखंड, दिल्ली और उत्तर प्रदेश (सिर्फ पश्चिमी यूपी) में पैदा की जाती है। इन सातों राज्यों में पैदा की जाने वाली बासमती को जी.आई. टैग हासिल है। अन्य किसी राज्य में हुई पैदावार को बासमती का दर्जा प्राप्त नहीं। गत वर्ष 44.14 लाख टन बासमती भारत से निर्यात की गई। इससे 33000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई। पंजाब में बासमती की विशेष महत्ता है। फसली-विभिन्नता योजना में इसका विशेष स्थान है। गत वर्ष इसकी काश्त राज्य में 6.29 लाख हैक्टेयर रकबे में हुई थी, जो इस वर्ष बढ़ कर 7 लाख हैक्टेयर पर पहुंच जाने की संभावना है। बासमती को धान के मुकाबले पानी की कम आवश्यकता है। पंजाब तथा हरियाणा के निर्यात में मुख्य योगदान है। पंजाब की अमृतसर बासमती और हरियाणा की तरावड़ी बासमती विशेषकर गुणवत्ता के कारण जानी जाती हैं। बासमती में भारत का एक ही प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान है। पाकिस्तान के 18 जिलों में बासमती पैदा की जाती है। 
जी.आई. रजिस्ट्री द्वारा इंटलैक्चुअल प्रापर्टी एपेलेट बोर्ड के निर्देशों के अनुसार जी.आई. रजिस्ट्री द्वारा उक्त सातों राज्यों में पैदा की जा रही बासमती को जी.आई. टैग मिला हुआ है। इन सातों राज्यों में पैदा की जा रही बासमती किस्मों की फसल को ही बासमती माना जाता है। इन सातों राज्यों की फसल ही बासमती के तौर पर निर्यात की जाती है। हिमालय के तलहटी का क्षेत्र ही बासमती पैदा करने में सक्षम है, जिस पर सैकड़ों वर्षों से बासमती पैदा की जाती है। चाहे जी.आई. की बात सन् 2008 के आसपास शुरू हुई और अंत में इन सातों राज्यों में पैदा हुई बासमती को जी.आई. टैग दिया गया। 
अब मध्य प्रदेश प्रयासरत है कि वहां पैदा की जा रही बासमती किस्मों की फसल बासमती तस्सवर हो और उसे जी.आई. टैग मिले। मध्य प्रदेश राज्य द्वारा यह प्रयास 2017 के करीब शुरू किया गया। वहां के मुख्यमंत्री इस मामले में विशेष ध्यान दे रहे हैं। जी.आई. रजिस्ट्री ने जांच के बाद मध्य प्रदेश की इस मांग को रद्द कर दिया था। फिर मध्य प्रदेश ने इंटलैक्चुअल प्रापर्टी बोर्ड के पास पहुंच की परन्तु वहां भी मध्य प्रदेश की इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया। फिर मध्य प्रदेश ने मद्रास हाई कोर्ट में जी.आई. रजिस्ट्री के इस फैसले के खिलाफ अपील की। वहां भी यह स्वीकारन हुई। भारत सरकार ने इस संबंधी पी.ए.यू. के उप-कुलपति डा. बलदेव सिंह ढिल्लों की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमेटी बना कर मध्य प्रदेश की इस मांग को परख करके अपनी सिफारिश करने को कहा। 
इस कमेटी में बासमती के प्रसिद्ध ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह (मौजूदा डायरैक्टर आई.सी.ए.आर.-भारती कृषि अनुसंधान संस्थान), पदमश्री डा. वी.पी. सिंह, डा. बी. मिश्रा तथा पी.वी. एस. पनवर, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जब्बलपुर के पी.के. शर्मा तथा अपीडा के डायरैक्टर शामिल थे। इस कमेटी द्वारा भी मध्य प्रदेश का बासमती पैदा करने का दावा रद्द करने की सिफारिश कर दी गई। अब मध्य प्रदेश ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, जहां यह मामला विरचाधीन है। 
अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट से बाहर भारत सरकार भी मध्य प्रदेश में पैदा की जा रही बासमती किस्मों की पैदावार को जी.आई. के बासमती का टैग दे दे। इसकी आल इंडिया राइस एक्सपोर्टरज़ एसोसिएशन ने ज़बरदस्त विरोधता की है। एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि मध्य प्रदेश की पैदावार को जी.आई. टैग देने से सातों राज्यों के हज़ारों किसानों का बड़ा नुक्सान होगा। यदि मध्य प्रदेश को जी.आई. ज़ोन में शामिल कर लिया जाता है तो अन्य राज्य भी उनमें पैदा की जा रही फसल को जी.आई. दिलाने हेतु आगे आएंगे।
 राजस्थान में शायद मध्य प्रदेश से अधिक बासमती किस्मों की काश्त की जा रही है परन्तु वहां के तत्कालीन संयुक्त सचिव दिनेश शर्मा ने ही वैज्ञानिक दृष्टिकोन से राजस्थान के इस संबंधी दावे को रद्द कर दिया था। बासमती किस्में तो विश्व में कहीं भी पैदा की जा सकती हैं परन्तु इसमें वह खुशबु, गुणवत्ता तथा स्वाद नहीं आ सकते, जो इन सातों राज्यों में पैदा की जाती बासमती में हैं। इन राज्यों में पैदा की गई बासमती का स्वाद अपना ही है, जो विश्व प्रसिद्ध है। मुंह को लगी यह छोड़ी नहीं जा सकती। 
श्री सेतिया के अनुसार मध्य प्रदेश में पैदा की जा रही बासमती की किस्मों का मूल्य 5 रुपए तक बासमती से कम मिलता है। इसलिए वहां के मुख्यमंत्री उत्पादकों को यह मूल्य दिलाने के लिए केन्द्र के कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर तक पहुंच कर रहे हैं, परन्तु ऐसा करना देश हित में नहीं। पंजाब व हरियाणा के किसानों को तो बहुत ही नुक्सान उठाना पड़ेगा। निर्यात में पंजाब व हरियाणा की बासमती का मुख्य हिस्सा है और पंजाब का धान की काश्त में कुल रकबे का 25 प्रतिशत और हरियाणा का 65 प्रतिशत रकबा बासमती पैदा कर रहा है। 
पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि मध्य प्रदेश में पैदा की जा रही बासमती की किस्मों को जी.आई. देने के लिए पंजाब सरकार सख्त विरोध करेगा। गत समय जब पूर्व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने ऐसा करना चाहा था तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पंजाब के किसानों के हित के लिए डट कर खड़े हो गए और यह फैसला नहीं होने दिया। विश्वनीय सूत्रों से पता चला है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी मध्य प्रदेश को जी.आई. ज़ोन में शामिल किए जाने का विरोध करेंगे। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन ने अपील की है कि मध्य प्रदेश सरकार देश के हित को आगे रख कर मध्य प्रदेश की बासमती को जी.आई. टैग दिलाने के प्रयास छोड़ दे। इससे दूसरे राज्य भी ऐसी मांग करेंगे। पाकिस्तान के बासमती पैदा करने वाले क्षेत्र को बढ़ाने के लिए संभावना होगी।