सत्य का ज्ञान है ईश्वर से मिलन का मार्ग 

संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सभी बचपन में साधारण थे। परमात्मा सबसे महान एवं शक्थिशाली है। आप अपने बालक की इसी सबसे महान एवं शक्तिशाली परमात्मा से मित्रता करा दीजिए। हृदय पवित्र करके परमात्मा की आज्ञा तथा इच्छा को जानने तथा उसके अनुसार प्रभु कार्य करने से ही परमात्मा से मित्रता होती है। इसके लिए हमें बालक को घर तथा विद्यालय में परमात्मा की शिक्षाओं का अर्थ बताना चाहिए। उसे यह बताना चाहिए कि परमात्मा अपना है, पराया नहीं और इसलिए परमात्मा की बनायी यह पूरी धरती तथा मानव जाति अपनी है, परायी नहीं। वास्तव में मानव जाति की भलाई करना ही हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य है। प्रभु इच्छा तथा आज्ञा को जानकर लोक कल्याण के लिए असाधारण कार्य करने वाले कुछ महापुरुषों के त्यागमय तथा कष्टमय जीवन के विवरण इस प्रकार हैं:-
दण्ड : अर्जुन को कृष्ण के मुंह से निकले परमात्मा के पवित्र गीता के संदेश से ज्ञान हुआ कि कर्त्तव्य ही धर्म है। न्याय के लिए युद्ध करना ही उसका परम कर्त्तव्य है। उस समय राजा ही जनता के दु:ख-दर्द को सुनकर न्याय करते थे। कोई कोर्ट या कचहरी उस समय नहीं थी। जब राजा स्वयं ही अन्याय करने लगे, तब न्याय कौन करेगा? न्याय की स्थापना के लिए युद्ध के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचा था। भगवानोवाच पवित्र गीता के ज्ञान को एकाग्रता से सुनने के बाद अर्जुन हाथ जोड़कर बोला, ‘प्रभु, अब मेरे मोह का नाश हो गया है और मुझे ईश्वरीय ज्ञान एवं मार्गदर्शन मिल गया है। अब मैं निश्ंिचत भाव से युद्ध करुंगा।’ अर्जुन ने विचार किया कि जो परमात्मा की बनायी सृष्टि को कमज़ोर करेंगे, वे मेरे अपने कैसे हो सकते हैं? पवित्र गीता के ज्ञान को जानकर उसने निर्णय लिया कि न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। फिर अर्जुन ने अन्याय के पक्ष में खड़े अपने ही कुल के सभी अन्यायी योद्धाओं तथा 11 अक्षौहणी सेना का महाभारत के युद्ध में विनाश किया। इस प्रकार अर्जुन ने प्रभु का कार्य करते हुए धरती पर न्याय के साम्राज्य की स्थापना की। प्रतीक्षा : माता देवकी ने प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और वह एक महान नारी बन गईं तथा उनका सगा भाई कंस ईश्वर को न पहचानने के कारण महापापी बना। देवकी ने अपनी आंखों के सामने एक-एक करके अपने सात नवजात शिशुओं की हत्या अपने सगे भाई कंस के हाथों होते देखी और अपनी इस हृदयविदारक पीड़ा को अत्यन्त धैर्यपूर्वक अपने आठवें पुत्र कृष्ण के जन्म लेने की प्रतीक्षा की ताकि मानव उद्धारक कृष्ण का इस धरती पर अवतरण हो सके तथा वह धरती को अपने भाई कंस जैसे महापापी के आतंक से मुक्त करा सके तथा धरती पर न्याय आधारित ईश्वरीय साम्राज्य की स्थापना हो।
कष्ट : मीराबाई कृष्ण भक्ति में भजन गाते हुए मग्न होकर नाचने-गाने लगती थी जो कि उनके राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था। इससे नाराज़ होकर मीरा को राज परिवार ने तरह-तरह से डराया तथा धमकाया। उनके पति राणाजी ने कहा कि तू मेरी पत्नी होकर कृष्ण का नाम लेती है। मैं तुझे ज़हर देकर जान से मार दूंगा। मीरा ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था। उसने कहा कि पतिदेव, यह शरीर तो विवाह होने के साथ ही मैं आपको दे चुकी हूं, किन्तु आत्मा तो प्रभु की है। उसे यदि आपको देना भी चाहूं तो कैसे दे सकती हूं ? इसलिए हमें भी मीरा की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए।विश्राम : हनुमान जी ने परमात्मा को पहचान लिया तो वह एक छलांग में मीलाें लम्बा समुद्र लांघकर सोने की लंका पहुंच गये। हनुमान में यह ताकत परमात्मा की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लेने से आ गयी। प्रभु भक्त हनुमान ने पूरी लंका में आग लगाकर रावण को सचेत किया। हनुमान के चिन्तन में केवल एक ही बात थी कि प्रभु का कार्य किये बिना उन्हें एक क्षण के लिए भी विश्राम नहीं करना है। हनुमान ने बढ़-चढ़कर प्रभु राम के कार्य किये। हनुमान जी की प्रभु भक्ति यह संदेश देती है कि उनका जन्म ही राम के कार्य के लिए हुआ था। भक्त प्रह्लाद, गांधी जी, मदर टेरेसा, अब्राहम लिंकन ने अपने त्यागमय तथा सेवामय जीवन द्वारा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। (सुमन सागर)