भारत-अमरीका व्यापारिक रिश्ते

वैश्विक महामारी ने जहां दुनिया के समक्ष भारी चुनौती खड़ी की है, वहीं इसके चलते बहुत-से देशों के आपसी रिश्ते भी बदल गये दिखाई देते हैं। उदाहरणतया आज अमरीकी प्रशासन कोरोना महामारी के लिए चीन को इसलिए दोष दे रहा है कि उसने प्रारम्भिक दौर में इस भयानक बीमारी को दुनिया से छिपाये रखा। इस कारण इसके अन्य देशों में फैल जाने के बाद ही तस्वीर साफ हो सकी। अमरीका, ब्राज़ील एवं यूरोप के कई विकसित देश बुरी तरह से इसका शिकार हो चुके हैं। चीन विश्व की बड़ी शक्ति बनकर उभरा है, परन्तु उसकी ओर से अपनाये गये रवैये के कारण आज बहुत-से देश उससे नाराज़ दिखाई देते हैं। पिछले दशकों में चीन दुनिया भर में किये जाते उत्पादन का केन्द्र बन गया था। अमरीका सहित अन्य बहुत-से देशों की कम्पनियों ने यहां अपनी भारी औद्योगिक इकाइयां स्थापित कीं जिन्होंने इसकी आर्थिक शक्ति को और भी मजबूत कर दिया था, परन्तु अब चीन के विस्तारवादी रवैये एवं अन्य कारणों के दृष्टिगत अधिकतर विकसित देशों का उससे मोह भंग हो रहा है। महामारी के तीव्र प्रभाव के दृष्टिगत भी चीन की विश्वसनीयता पर उंगलियां उठना शुरू हो गई हैं। इस समय अमरीका के साथ उसके संबंध अत्याधिक तनावपूर्ण बन चुके हैं। अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियां वहां से अपनी इकाइयों को अन्य स्थानों पर तब्दील करने की योजनाबंदी बना रही हैं। इसी समय बड़े स्तर पर चीन से सामान मंगवाने से भी बहुत-से देशों ने इन्कार करना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर रूस, अमरीका एवं यूरोपीय संघ व्यापार के मामले पर भारत को तरजीही देश का दर्जा दे रहे हैं। इस काल में ही भारत और अमरीका के रिश्ते और भी बढ़ गये हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कहा है कि भारत एवं अमरीका को व्यापारिक रिश्तों के संबंध में विचाराधीन समस्याओं को हल करने एवं बड़े एजेंडे की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। चीन के साथ तनाव के दृष्टिगत फ्रांस एवं रूस के अतिरिक्त भारत ने अमरीका से भी बड़ी मात्रा में रक्षा-सामान मंगवाया है। एक अनुमान के अनुसार दोनों देशों में द्विपक्षीय रक्षा-व्यापार इस वर्ष के अंत तक 18 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंचने की आशा है। अमरीकी रक्षा सचिव ने कहा है कि अमरीका सेना से सैनिक स्तर पर संबंधों एवं सहयोग को आगे बढ़ाते हुये भारत के साथ अपनी साझेदारी को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। चीनी खतरे के दृष्टिगत भारत को भी आज ऐसे सहयोग की बड़ी ज़रूरत है। इसी संदर्भ में अमरीका-भारत बिजनेस कौंसिल की वार्षिक बैठक को देखा जाना बनता है। ‘इंडिया आईडियाज़ सम्मिट’ में बोलते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक निवेश करने वाली बड़ी अमरीकी कम्पनियों को आमंत्रण देते हुये कहा कि भारत में निवेश के लिए अब बेहतर समय है, क्योंकि इसकी अर्थ-व्यवस्था बड़े सुधार की ओर केन्द्रित है। इसके मध्य-वर्गीय लोगों का दायरा बढ़ रहा है तथा देश में बड़े स्तर पर इंटरनेट का प्रसार हुआ है। यह भी, कि भारत एवं अमरीका के व्यापारिक रिश्तों को ऐसा विचार-विमर्श दिशा-निर्देश देने वाला सिद्ध हो सकता है। अमरीका के माइक पोम्पियो सैक्रेटरी ऑफ स्टेट (विदेश मंत्री) ने भी यह कहा है कि दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते कई समस्याओं के बावजूद आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि चीन से बाहर आने वाली कम्पनियां भारत में प्रवेश हो सकती हैं। उन्हें भारत पर भरोसा है। उन्होंने पिछले दो महीनों में भारत में किये गये 20 अरब डॉलर के निवेश का भी ज़िक्र किया और कहा कि यहां निवेश की बेहतर सम्भावनाएं मौजूद हैं। यहां 50 करोड़ लोग इंटरनेट के साथ जुड़ चुके हैं। नि:सन्देह आज भारत विश्व के अधिकतर देशों के साथ हर तरह का तालमेल एवं संबंध बढ़ा रहा है। हम इसे एक अच्छी प्रक्रिया समझते हैं, परन्तु इसके साथ-साथ सरकार को अपने देश की धरती से जुड़ी वास्तविकताओं को समझ कर ही विदेशी व्यापार को अधिमान देना चाहिए। इस समय भारत की बड़ी आवश्यकता बेरोज़गारी को खत्म करने और गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों को अच्छा जीवन प्रदान करने की है। दूसरे देशों से निवेश इन वास्तविकताओं पर आधारित ही होना चाहिए। ऐसे निवेश को ही अधिमान दिया जाना चाहिए, जो अपने देश में  रोज़गार के अधिकाधिक साधन पैदा करने वाला हो तथा जो घरेलू उत्पादन को बढ़ाने में भी सहायक हो सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द