चीन की कमज़ोर नस पर वार करने की ज़रूरत

भारत के साथ लद्दाख में नया सीमा विवाद शुरू करने से चीन की मानसिकता साफ एवं स्पष्ट हो चुकी है। चीन ने तिब्बत के साथ क्या किया, यह जग-जाहिर है। चीन यह कदापि नहीं चाहता कि कोई भी उसकी योजना में बाधा उत्पन्न करे। इसीलिए चीन ने दशकों से भारत को अपना निशाना बनाया हुआ है। एशियाई क्षेत्र में भारत को छोड़कर कोई भी देश ऐसा नहीं जो अपने दम पर चीन के सामने टिक सके। चीन के पड़ोसी देशों में दो तरह का माहौल है। एक तो वे जो चीन के हाथों बिक चुके हैं, चीन के कर्ज में डूब चुके हैं। दूसरे वे देश हैं जो कि चीन का प्रकोप झेल रहे हैं।  यह बात तो माननी होगी कि लगभग हर पड़ोसी देश के साथ चीन का सीमा विवाद है। क्षेत्रफल के मामले में रूस और कनाडा के बाद चीन का ही नंबर आता है लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा पड़ोसी देश चीन के ही हैं। भूमि से सटे 14 देश और समुद्री सीमा के किनारे 6 देशों ने भौगोलिक रूप से चीन को घेर रखा है। दुनिया के अधिकांश देशों की तुलना में चीन का कुछ अलग ही इतिहास रहा है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि अन्य देशों की तुलना में चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ खटपट की स्थिति बनाए रखता है। इसका मुख्य कारण है चीन की अवैध कब्जे की मानसिकता। खास बात यह है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के तख्ता पलट ने सरकार के शांतिपूर्ण तरीके से बदलने की संभावनों पूर्णतया खत्म कर दिया है। चीन का मानना है कि विश्व क्रांति की सफलता के बाद सारे राज्य खुद ही गायब हो जाएंगे क्योंकि तब राज्यों का अस्तित्व रहेगा ही नहीं। सीमाओं की भूमिका अर्थहीन हो जाएगी।  चीन अपनी सरहदों पर अपना मजबूत बेस तैयार करने में दिन रात लगा हुआ है। चीन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे लाओस, कंबोडिया और वियतनाम को भूखा और प्यासा मारने की योजना पर तेजी के साथ काम कर रहा है। एक तरफ चीन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की ओर बहने वाली मेकांग नदी पर बांध बनाकर नदी को सुखाने का काम कर रहा है तो वहीं सी-फूड पर आश्रित इन देशों पर उसने दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। मई से लेकर अक्टूबर तक का महीना दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लिए इसलिए भी सबसे ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि इन महीनों में यहां सूखे का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, चीन ने इन देशों में बहने वाली नदी पर अपने इलाके में दर्जनों बांध बना लिए हैं जिससे इस नदी में पानी का बहाव काफी हद तक कम हो गया है। इस नदी पर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के 5 से 6 करोड़ लोग आश्रित होते हैं। इसके साथ ही इन देशों में होने वाली खेती भी मुख्यत: इसी नदी पर आश्रित होती है। पानी की भीषण कमी इन देशों में पहले से ही है जिस कारण यहां लोग मछली पालन और किसानी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। चीन ने उसी नस को पकड़ा और जोरदार वार कर दिया जिससे कि इन देशों में तबाही उपजना स्वाभाविक है। लाओस, वियतनाम और कंबोडिया का दक्षिण चीन सागर में अपने-अपने अधिकारों को लेकर चीन के साथ तनाव लगातार बना रहता है क्योंकि चीन पूरी तरह से इन देशों को मजबूर करने के प्रयास में लगा हुआ है। लाओस और वियतनाम जैसे देश चीन का विरोध करते हैं परन्तु वे छोटे और कमजोर देश हैं। खास बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी अपनी आँखें मूंदे हुए है जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इन देशों के साथ मिलकर चीन का कड़ा विरोध करना चाहिए था। ताइवान से भी चीन का गहरा विवाद है जोकि जगजाहिर  है। चीन ने इस क्षेत्र में भी अपनी गतिविधियां तेज की हैं लेकिन ताइवानी लड़ाकू विमानों ने चीनी जंगी जहाज़ों को कई बार खदेड़ दिया है। ताइवानी रक्षा मंत्रालय के अनुसार पिछले हफ्ते भी चीनी वायुसेना के एसयू-30 लड़ाकू विमानों ने ताइवानी हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया था। चीन ताइवान को अपना ही अंग मानता है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इसके लिए सेना के इस्तेमाल पर भी जोर देती आई है। ताइवान के पास अपनी खुद की सेना भी है जिसे अमरीका का समर्थन प्राप्त है।  (अदिति)