कोरोना वायरस का टीका—उम्मीद की किरण

अब जब विश्व भर में कोरोना के मरीज़ों की संख्या करोड़ों तक जा पहुंची है। इस बीमारी से मृतकों की संख्या भी 6 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है तो इस समय विश्व भर में अलग-अलग देशों द्वारा इस बीमारी के टीके हेतु जिस शिद्दत से युद्ध स्तर पर अनुसंधान जारी हैं, शायद ही पहले कभी इस तरह हुआ हो। अब तक अरबों-खरबों का जितना खर्च यह दवाई बनाने में किया गया है, शायद ही पहले कभी किसी अनुसंधान पर इतना खर्च किया गया हो, जितना इस बीमारी का दबाव बढ़ रहा है, उससे अधिक तेज़ी से इसका उपचार ढूंढने के लिए दिन-रात एक किया जा रहा है। अब तक विश्व की टीके इज़ाद करने वाली कम्पनियों में से 3 संस्थान काफी सफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं। इनमें आक्सफोर्ड-आस्ट्राजीनिका, फाइज़र और कैनसिनो सबसे अग्रिम पंक्ति में आ खड़ी हैं। इन तीनों द्वारा ही यह दावा किया जा रहा है कि उन्होंने दवाई के परीक्षण का दूसरा चरण पूरा कर लिया है। अंतिम और तीसरा चरण ही शेष है। इस समय के दौरान ही रूस ने यह भी दावा किया है कि उसकी लैबोरेट्रियां भी टीके के परीक्षण के तीसरे चरण में पहुंच गईं हैं और इस चरण की शुरुआत 3 अगस्त को की जाएगी तथा सितम्बर तक यह टीका लोगों के लिए मुहैया कर दिया जाएगा। दूसरी तरफ सब से आगे चल रही इंग्लैंड की आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने यह दावा कर दिया है कि वह इस वर्ष के अंत तक ऐसा टीका जारी कर देगी। इस यूनिवर्सिटी का एस्ट्राजीनिका कम्पनी से करार है। इस अनुसंधान की प्रमुख सारा गिल्बर्ट ने कहा है कि अंतिम चरण पर पहुंचे इस परीक्षण के उपरांत बड़ी संख्या में इसके उत्पादन की ज़रूरत होगी और इससे पूर्व बड़ी संख्या में लोगों को यह टीका लगा कर इसका पूरी तरह परीक्षण कर लिया जाएगा। इसलिए भारत की सीरम कम्पनी, जो विश्व भर में सबसे अधिक टीकों का उत्पादन करती है और जिसका इंग्लैंड की आक्सफोर्ड एस्ट्राजीनिका से करार हो चुका है, के प्रमुख पूनावाला ने कहा है कि उनकी कम्पनी द्वारा करोड़ों की संख्या में टीके बनाने की तैयारी की जा रही है और यह भी कि उनका यह प्रयास होगा कि ऐसे टीके की कीमत आम लोगों की पहुंच में हो और यह 1000 रुपये से अधिक न हो तथा उन्होंने यह भी कहा कि इस टीके को कम से कम 2 या 3 बार लगाया जाना आवश्यक होगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि यह टीका इस वर्ष के अंत तक बाज़ार में आ जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि वह महसूस करते हैं कि पहले यह टीका उन व्यक्तियों को लगाया जाना आवश्यक है, जो क्रियात्मक रूप से इस बीमारी से जूझ रहे हैं। इनमें स्वास्थ्य कर्मचारी और उनका स्टाफ, बच्चे और बड़ी आयु के उन व्यक्तियों जिनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो, को यह टीका प्राथमिकता के आधार पर लगाया जाएगा। अमरीका जैसे देशों ने तो इन कम्पनियों को अभी से ही करोड़ों टीकों के आर्डर भी दे दिए हैं। ऐसे टीकों की इसलिए भी बड़ी संख्या में आवश्यकता होगी, क्योंकि इस बीमारी की अभी तक कोई एक पहचान नहीं बनाई जा सकी है। यह वायरस अलग-अलग देशों में अलग-अलग ढंग से विचरता नज़र आ रहा है। अब तक इसकी 6 अलग-अलग किस्मों की पहचान हो चुकी है और यह भी कि ऐसा टीका अलग-अलग देशों में कितना प्रभावशाली हो सकता है, उसके बारे  में भी पहले से अनुमान लगाया जाना आवश्यक बन गया है, परन्तु इन प्रयासों के सफलता की ओर बढ़ने के समाचारों ने विश्व भर में बड़ी उम्मीद पैदा की है। चाहे अभी यह बीमारी तेजी से फैलती जा रही है परन्तु इस उम्मीद ने उत्साह पैदा किया है कि आगामी कुछ महीनों में इस पर काबू पा लिया जा सकेगा। उम्मीद ने बीमारी के अभी तक बढ़ने के बावजूद निकट भविष्य हेतु एक बड़ा उत्साह पैदा किया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द