राजनीतिक सदाचार अपनाने की आवश्यकता

राजस्थान के कांग्रेस अध्यक्ष एवं उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरुद्ध विद्रोह करने के बाद प्रदेश में विगत लगभग 13 दिनों से यह राजनीतिक नाटक जारी है। प्रदेश की सरकार, राजनीतिक दलों एवं लोगों का ध्यान इस घटनाक्रम की ओर ही केन्द्रित रहा है। देश भर में सभी ओर इसकी चर्चा ही चलते हुए दिखाई दे रही है। एक ओर भीषण महामारी है। आम लोग गम्भीर संकट में से गुज़र रहे हैं। बेरोज़गारी का बोलबाला है। देश के समक्ष अनेकानेक समस्याएं खड़ी हैं। दूसरी ओर ऐसी राजनीतिक उथल-पुथल पर प्रदेश एवं देश की अधिक शक्ति खर्च की जा रही है। इसे लोकतंत्र के साथ उपहास ही कहा जा सकता है तथा यह भी कि सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे पर गम्भीर आरोप लगा रहे हैं।  चाहे अभी तक भी गहलोत सरकार को बहुमत प्राप्त है, परन्तु उनका सिंहासन डोलते हुए प्रतीत हो रहा है। सचिन पायलट तथा उनके 18 साथियों को अध्यक्ष की ओर से अयोग्य करार देने संबंधी जारी किए गए नोटिस भी अदालतों के भंवर में समाने लगे हैं। अध्यक्ष की ओर से नोटिस जारी करने के पक्ष में तथा इसके विरुद्ध तर्क दिये जा रहे हैं। हाईकोर्ट के फैसले के दृष्टिगत अभी तक पायलट एवं उनके साथियों पर अध्यक्ष की ओर से कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकी। इससे सरकार को और भी खतरा पैदा हो रहा है। इसके दृष्टिगत ही मुख्यमंत्री प्रदेश के राज्यपाल कलराज मिश्रा पर यह दबाव डाल रहे हैं कि वह शीघ्र विधानसभा का अधिवेशन बुलाएं ताकि वह अपना बहुमत सिद्ध करके दुविधा में फंसी सरकार को इस स्थिति में से निकाल सकें। राज्यपाल की ओर से ऐसा न करने के लिए कई तरीके निकाले जा रहे हैं जिनसे माहौल और भी कटु हुआ दिखाई देता है। राजभवन में मुख्यमंत्री सहित कांग्रेसी विधायकों की ओर से पांच घंटे तक धरना देने के बाद भी मामले का कोई हल निकलते दिखाई नहीं दे रहा, क्योंकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद बात अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची है। प्रश्न यह है कि विधानसभा का अधिवेशन सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद बुलाया जाये अथवा उससे पहले, इसे लेकर सरकार एवं राज्यपाल के बीच कटुता बढ़ते हुये दिखाई देती है, क्योंकि गहलोत को इस बात की चिन्ता है कि लम्बा समय पड़ जाने के बाद केन्द्र सरकार के दबाव अथवा धन के लोभ में विधायकों के गणित में अन्तर भी पड़ सकता है। दूसरी ओर केन्द्र सरकार की ओर से कई प्रकार से गहलोत सरकार पर दबाव बनाने के यत्न किये जा रहे हैं। कांग्रेस के दोनों पक्षों में से अधिक दोष किसका है, इस संबंध में तो अभी बहस ही चल रही है, किन्तु इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में केन्द्र की मोदी सरकार एवं भाजपा की छवि को भी भारी आघात अवश्य लग रहा है। कांग्रेस की आंतरिक फूट का वह लाभ उठाने का यत्न कर रही है। इसमें विधायकों की खरीद-फरोख्त किये जाने तथा उन पर दबाव बनाये जाने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। पिछले लम्बे समय में ऐसी ही कार्रवाइयां उसकी ओर से कई दूसरे राज्यों में भी की गई थीं। हम महसूस करते हैं कि राजनीतिक दलों को सत्ता की भूख दिखाने के स्थान पर लोकतांत्रिक नैतिक मूल्यों पर पहरा देना चाहिए। आज की राजनीति का ऐसा ही सदाचार होना चाहिए। इसके लिए राज्यपाल को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए तुरंत निमंत्रण देना चाहिए। राजस्थान के राजनीतिक संकट के हल के लिए यही बेहतर मार्ग है तथा यही सदाचार पर आधारित राजनीति की मांग कही जा सकती है।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द