मंदिरों की देव स्थली है हरिद्वार

(गतांक से आगे)
दक्षेश्वर महादेव : इस की कथा दक्ष प्रजापति से जुड़ी है।  एक बार उन्होंने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। उस में सब देवों व अन्य परिचितों को बुलाया परन्तु शिव के अनादर के लिये उन को नहीं बुलाया गया। इस बात का पता जब सती को लगा तो वह बिन बुलाये ही पिता के घर को चली आईं। शिव ने बहुत कहा कि हमें निमंत्रण नहीं मिला है। इस कारण वहां पर जाना उचित नहीं। वहां पर अनादर ही होगा। सती कहां मानने वाली थीं। वहां आ करके देखा कि उसको किसी ने नहीं बुलाया। केवल मां ने ही कुशलक्षेम पूछी। इस पर उनको क्रोध आया व उन्होंने ने क्रोधवश योगाग्नि द्वारा अपने प्राणों को यज्ञ में कूद कर के भस्म कर दिया व यज्ञ विध्वंस हो गया। जब शिव को सारे घटनाक्रम का ज्ञान हुआ तो वह भी शांत नहीं रहे व गणों के साथ वहां पर दक्ष का सिर भी यज्ञ की अग्नि में भेंट कर दिया। सती का बचा शरीर त्रिशूल से उठा कर के कंधे पर रखा व भूलोक में इधर-उधर घूमना शुरू कर दिया और खूब विलाप किया। 
कहते हैं फिर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती की मृत्य देह के 51 टुकड़े कर दिये।  शिव ने जहां-जहां उन्हें गिराया, वहां पर शक्तिपीठ स्थापित हुये। सभी देवों ने शिव की आराधना व स्तुति की। इस पर शिव ने दक्ष प्रजापति को बकरे का सिर लगाया ताकि वह जिंदा रहे व अपने कृत्य पर पछताये। यह सब शिव की माया से हुआ। इस कारण इस क्षेत्र को मायापुरी से जाना गया। यहां पर शिवरात्रि को एक बड़े मेले का आयोजन होता है।
सती कुण्ड : पास ही वह सती का कुण्ड भी है जहां पर उन्होंने प्राण त्यागे थे।
कपिल स्थान : यहां पर सगर राजा के साठ हज़ार पुत्रों को तारा माना गया है। कुछेक गंगा सागर कपिल का इसी को स्थान मानते हैं। सूर्यवंशी प्रतापी राजा सगर ने 99 अश्वमेध यज्ञ पूर्ण करने के पश्चात सौवां यज्ञ पूर्ण करने के लिये जब श्याम वर्ण का अपना घोड़ा छोड़ा तो राजा इन्द्र घबराया कि अब मेरा सिंहासन छिन जायेगा। इस कारण इन्द्र ने अश्व को कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया। इस पर राजा के 60 हजार पुत्र अश्व खोजने हेतु निकले। वहां पर अश्व देखा तो मुनि की आज्ञा के बिना उसे ले आये। उसी क्षण मुनि की समाधि खुली। मुनि ने अपना अपमान समझ कर उन को भस्म कर दिया। इस समाचार से सगर बहुत ही दुखी हुए व उनके पुत्र अंशुमान ने मुनि की खूब सेवा की। इससे प्रसन्न होकर मुनि ने अश्व को वापिस किया व पुत्रों के उद्धार का उपाय बताया कि गंगा को मृत्यु लोक में लाना होगा। 
फिर अंशुमान ने तप किया व असफल रहे। फिर दलीप के पुत्र भगीरथ ने तप किया तो गंगा पृथ्वी पर आने को राज़ी हुईं। उस के वेग को शिव ने अपनी जटाओं पर धारण किया। शिव ने उस को भूमि पर उतारा तो उनका उद्धार हुआ। कथा बड़ी रोचक व विस्तृत है। राजा ने इस को भू-लोक में लाया था। इस कारण इस का एक नाम भगीरथी भी हुआ। इस की महिमा सभी जानते हैं। इसका जल परम पवित्र है। एक बार राजा अकबर ने बीरबल से पूछा, भारत में किस नदी का जल उत्तम है। बीरबल ने कहा, गंगा का जल अमृत है क्योंकि इस के सेवन से असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं। इस पर उस ने अपने रसोइये से कहा कि रसोई में गंगा जल का प्रयोग किया जाये। अकबर इसे मंगवाता रहा व जब पंजाब, सिंध, काबुल और कंधार यात्रा पर जाता तो इस जल का प्रयोग करता।
भीम गोडा : जब हम हर की पौड़ी वाली सड़क से ऋषिकेश की ओर जाते हैं तो यह कुछ ही दूरी पर बायें किनारे पर स्थान है। इस में पहाड़ी से कुण्ड में पानी आता है। लोगाें का कहना है कि भीम ने गोडा मार कर पानी निकाला था। इस कारण इस का नाम भीमगोडा हुआ है। यहां पर स्नान का महत्व है। पास ही ब्रह्मा का भी मंदिर है।
चौबीस अवतार : इसी मार्ग पर आगे गंगा के पास एक मंदिर है। इसे कांगड़ा के राजा ने बनवाया था। यहां 24 अवतार माने गये हैं। इस को कांगड़ा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां नवग्रहों की मूर्तियां भी हैं।
भोलागिरी आश्रम : यहां पर शिव का भव्य शिवलिंग है। यहां अन्य मंदिर मकर वाहिनी, गंगा गीता भवन, गोरखनाथ आदि मंदिर भी ज़रूर देखें। 
मनसा देवी : यह भी यहां का अति प्राचीन मंदिर है। यहां का मुख्य आकर्षण है पैदल व रज्जू मार्ग है। पहले लोग पैदल व सीढ़ियों से जाते थे। यहां से हरिद्वार का दृश्य बहुत ही सुंदर लगता है।
सात धारा : इसी मार्ग पर आगे गंगा की सात धाराएं पहले बहती थीं। यहां पर सप्त ऋषियों ने तप किया था। उस समय यह स्थान निर्जन था। अब वहां पर सप्त ऋषियों के मंदिर हैं व स्थान भी बहुत ही सुरम्य है। यहां पर भी स्नान का बेहद महत्व है।
सत्यनारायण मंदिर : सप्त धारा से आगे लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश मार्ग पर यह मंदिर स्थित है। यहां भी स्नान व दर्शन करने का महत्व है।
वीरभद्रेश्वर : यहां पर देवियों के मंदिर हैं। इस के अतिरिक्त हरिद्वार में अब सैंकड़ों नये मंदिरों और आश्रमों का निर्माण हो चुका है। भारत माता व अन्य कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। शांति कुंज व बाबा रामदेव का आश्रम भी ज़रूर देखें। 
यहां से आप ऋषिकेश भी जा सकते हैं। वहां का अलग कार्यक्रम बनायें। वहां आप त्रिवेणी घाट, योग निकेतन, रघुनाथ मंदिर, लक्ष्मण व शिव झूला, भरत मंदिर, मंदिर गीता,  पुष्कर मंदिर, स्वर्गाश्रम परमार्थ निकेतन, कैलाश आश्रम, शिवानंद आश्रम, राम झूला आदि ज़रूर देखें। इन का बहुत ही विस्तृत विवरण है। यहां से उत्तरांचल के चारों धामों को भी जा सकते हैं। (समाप्त)
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