भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन

इतिहास की जिद्दी सुइयां कि भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन नहीं दिया जायेगा, इस साल 17 फरवरी 2020 को सुबह 10:30 बजे सुप्रीम कोर्ट के कमरा नंबर-8 में ही घूम गई थीं, जब न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ सिंह ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए, केंद्र सरकार के महिलाओं को लेकर मनोवैज्ञानिक पक्ष को दरकिनार करते हुए, सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिये जाने का फैसला सुनाया था। यही नहीं, इस फैसले में माननीय न्यायाधीश ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा था कि महिला अधिकारियों को हर लिहाज से पुरुष अधिकारियों के बराबर माना जाए तथा स्थायी कमीशन पाने वाली सभी महिला अधिकारियों को भत्ते दिये जाएं जिनमें प्रोन्नति और स्थायी भत्ते भी शामिल हों।
अब इन घूमी हुईं सुइयों की पुष्टि देश के रक्षा मंत्रालय ने भी कर दी है। 23 जुलाई, 2020 को रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए औपचारिक मंजूरी पत्र जारी कर दिया। इस मंजूरी पत्र के बाद अब भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को बड़ी भूमिका सुनिश्चित हो गई है। भारतीय सेना की उन सभी शाखाओं में, जहां महिलाओं को पहले से ही अस्थायी कमीशन हासिल था, उन्हें स्थायी कमीशन में परिवर्तित कर दिया गया है। ये शाखाएं हैं- एयर डिफैंस सिग्नल, आर्मी इंजीनियर्स, आर्मी ऐविएशन, इलेक्ट्रानिक्स, मेकेनिकल इंजीनियर्स तथा आर्मी सर्विस कार्प्स। रक्षा मंत्रालय के मंजूरी पत्र में साफ -साफ लिखा है कि इन सभी शाखाओं में महिला अधिकारी को स्थायी कमीशन दिया जाए। गौरतलब है कि आर्मी ऑर्डिनेंस कार्प्स और इंटेलीजेंस कार्प्स तथा जज व एडवोकेट जर्नल तथा आर्मी एजुकेशनल कार्प्स जैसी शाखाओं में पहले से ही स्थायी कमीशन मिला हुआ है। इस मंजूरी पत्र के बाद जल्द ही सलैक्शन बोर्ड उसे शैड्यूल करेगा ताकि सभी प्रभावित शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारी अपने इस विकल्प का प्रयोग कर सकें और ज़रूरी दस्तावेज़ पूरे कर सकें। भारतीय सेना में महिलाओं के लिए यह वाकई एक ऐतिहासिक सफलता है, जिसकी नींव इस साल फरवरी में पड़ी थी। नींव खुदने का काम तो इस साल जनवरी में ही शुरू हो गया था, जब 6 जनवरी 2020 को भारतीय सेना के लिए नान कमीशन पदों पर 99 महिलाओं के पहले बैच की ट्रेनिंग शुरू हुई थी।
कहने और सुनने में यह बहुत आसान है कि भारत में लोकतंत्र है और संविधान के तहत महिलाओं को भी वे तमाम विकास और उन्नति के हक मिले हुए हैं, जो पुरुषों के पास हैं लेकिन यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। अभी तक सेना में महिलाएं सिर्फ  अधिकारी के तौर पर भर्ती की जाती रही हैं। कुछ साल पहले उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन मिला, जिसके तहत वे 5 साल तक आधिकारी के तौरपर काम कर सकती थीं। 2006 में इस शॉर्ट सर्विस कमीशन को बढ़ाकर यूं तो 14 साल तक के लिए कर दिया गया, लेकिन अब भी महिलाओं को वे तमाम सुविधाएं नहीं मिली हुई थीं, जो इसी रैंक पर काम करने वाले पुरुषों को मिलती हैं। 
यूं तो भारतीय सेना में महिलाओं की मौजूदगी काफी पहले से है लेकिन अभी भी 17 लाख सशस्त्र बलों वाली भारतीय थल सेना में महज 1500 महिला अधिकारी हैं। इसी क्रम में वायुसेना में 1600 और नौसेना में महज 500 महिला अधिकारी हैं। अब सेना का कहना है कि वह विभिन्न काडरों में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर 20 फीसदी तक करना चाहती है। 15 जनवरी, 1949 को जब भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल जनरल के.एम. करियप्पा ने फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान ली थी, तब भारतीय थल सेना में 2 लाख सैनिक थे, जो आज बढ़कर 17 लाख हो गये हैं। तब भी थल सेना में महज 3.8 फीसदी महिलाएं अच्छी बात नहीं है। 
बहरहाल उन महिला सैन्य अधिकारियों की जिंदगी में अब आमूलचूल परिवर्तन आ जायेगा, जो शॉर्ट सर्विस कमीशन हासिल करके इन दिनों कार्यरत हैं। अब वे पहले की तरह 10 साल पूरे होने के बाद हर हाल में रिटायर नहीं हो जाएंगी बल्कि उन्हें भी पुरुष अधिकारियों की तरह अपनी योग्यता के मुताबिक स्थायी कमीशन के लिए आवेदन का अधिकार होगा। रक्षा मंत्रालय की ताज़ा घोषणा के बाद अब पुरुषों की ही तरह महिलाएं भी सीधे स्थायी कमीशन के लिए भर्ती होंगी। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि फिलहाल सेना की उन्हीं 10 शाखाओं में महिलाएं स्थायी सैन्य कमीशन हासिल कर सकेंगी, जिनमें पहले से शॉर्ट सर्विस की व्यवस्था है। 
सेना के मुताबिक इस आदेश बाद जैसे ही शॉट सर्विस कमीशन वाली महिलाएं अपने विकल्प का इस्तेमाल करेंगी और आवश्यक दास्तावेज पूरे करेंगी, वैसे ही उनका चयन बोर्ड द्वारा निर्धारित किया जायेगा। इससे भारतीय सेना में महिलाओं के लिए एक नया आकाश खुल गया है। साल 2003 में जिसकी कल्पना की गई थी, साल 2020 में वह हकीकत बन चुकी है। साल 2008 में 11 महिला सैन्य अधिकारियों ने हाईकोर्ट में याचिका डाली थी और हाईकोर्ट ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाया था, लेकिन सरकार इस फैसले के साथ नहीं थी। इसलिए वे सुप्रीम कोर्ट चली गईं जिस पर इस साल 17 फरवरी, 2020 को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया था। अब उस फैसले को मान लेने की सरकार की तरफ  से लिखित स्वीकारोक्ति आयी है, जिसका मतलब है कि सेना में महिलाओं की दुनिया बदल चुकी है।          
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर