समुद्र मंथन के दौर में है पंजाब की राजनीति 

पंजाब की राजनीति इस समय ‘समुद्र मंथन’ के दौर में है। इसमें से पंजाब के लिए ‘अमृत’ निकलता है या ‘ज़हर’, यह अभी भविष्य के गर्भ में है। नि:सन्देह कांग्रेस, अकाली दल बादल तथा ‘आप’ अभी तक पंजाब की राजनीति के मुख्य  केन्द्र हैं परन्तु फिर भी पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले कई तरह के नये समीकरण तथा गठबंधन उभरने की संभावनाएं हैं। नि:सन्देह कांगे्रस में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह इस समय सर्वेक्षण करवा रहे हैं परन्तु फिर भी नवजोत सिंह सिद्धू तथा प्रताप सिंह बाजवा कांग्रेस के नये नेताओं के रूप में उभरने हेतु दाव लगाए बैठे हैं। आम आदमी पार्टी अपनी गतिविधियों को सक्रिय करने लगी है। ‘आप’ के प्रभारी जरनैल सिंह भी बहुत सक्रिय हैं और तीसरा मोर्चा बनाने के चाहवान बताए जाते हैं, जबकि भगवंत मान इस बात पर अड़े हुए हैं कि पार्टी उनको अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करे। अकाली दल बादल सुखदेव सिंह ढींडसा के अकाली दल को रोकने के लिए पूरी तरह सक्रिय है परन्तु उस बात से चिंतित है कि भाजपा क्या रुख अपनाएगी। पंजाब भाजपा में चाहे गुट तो बहुत हैं परन्तु फूट नहीं है। भाजपा आगामी चुनावों में सत्ता में अधिक हिस्सा लेने के लिए रणनीति अपनाती है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं। अन्य पार्टियां किस गठबंधन में शामिल होती हैं, यह भी अभी तक स्पष्ट नहीं है। 
अकाली राजनीति के केन्द्र में चन्दूमाजरा
इस समय अकाली राजनीति के केन्द्र में प्रो. प्रेम सिंह चन्दूमाजरा नज़र आ रहे हैं। नि:सन्देह चन्दूमाजरा अभी प्रत्यक्ष रूप में अकाली दल बादल के साथ खड़े हैं परन्तु ‘सरगोशियां’ हैं कि दिल्ली के सिख नेताओं तथा सिख बुद्धिजीवियों का एक ग्रुप चन्दूमाजरा को ढींडसा के साथ जोड़ने की कोशिशें कर रहा है। यह भी चर्चा है कि चन्दूमाजरा के कुछ समर्थक भी इस हक में हैं, जबकि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल चन्दूमाजरा को किसी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं दिखाई देते। उनके लिए चन्दू माजरा के महत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी सप्ताह में पहले सुखबीर सिंह बादल चन्दूमाजरा के घर गए और उनके साथ लम्बी बंद कमरे में बैठक की।  फिर अकाली कोर कमेटी के सबसे वरिष्ठ सदस्यों के साथ उनके घर एक बैठक की गई। हालांकि अकाली दल बादल के हलके इसे बैठक नहीं मानते। उनके अनुसार यह दौरा अचानक हुआ है, क्योंकि डेरा सिरसा की शिष्या वीरपाल कौर के खिलाफ शिकायत करने के लिए वकीलों के साथ बातचीत करनी थी। परन्तु इसके साथ ही सोशल मीडिया पर एक समाचार जिसे फर्जी न्यूज़ बताया जा रहा है, भी चन्दूमाजरा की महत्ता को ही हवा देती है। इस समाचार में ज़िक्र था कि स. ढींडसा ने आरोप लगाया है कि चन्दूमाजरा की डेरा प्रमुख के साथ निकटता बादल परिवार से भी अधिक थी, जिस कारण सुखबीर सिंह बादल ने पौशाक पहुंचाने की ड्यूटी चन्दूमाजरा की लगाई थी। ढींडसा ने तुरंत अधिकृत रूप में इस का खंडन किया और कहा कि जिसने भी यह  ‘झूठी’ खबर फैलाई, वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता है। इससे एक तो चन्दूमाजरा की छवि खराब करने की कोशिश की गई है, जबकि दूसरा निशाना है कि ढींडसा के साथ दोस्ती का खात्मा किया जा सके। जबकि प्रो. चन्दूमाजरा यह दावा करते हैं कि जब विधानसभा चुनावों में अधिकतर अकाली नेता डेरा प्रमुख के स्थानीय इकट्ठों में शामिल होने गए थे तो उनका परिवार भी डेरे से दूर ही रहा था। चन्दूमाजरा ने इस समाचार की जांच के लिए साइबर क्राइम तथा मुख्यमंत्री को शिकायत भी की है। 
सिद्धू : कहीं देर न हो जाए 
पंजाब कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने मुख्यमंत्री, पंजाब कांग्रेस के प्रभारी तथा कई सांसदों के साथ सलाह करके पंजाब कांग्रेस के संगठन की एक सूची  हाईकमान को स्वीकृति के लिए भेजी है। हमारी जानकारी के अनुसार इसमें 90 फीसदी के लगभग ज़िलाध्यक्षों के नाम मुख्यमंत्री की मर्ज़ी  के हैं। यदि यही सूची मंजूर हो जाती है तो प्रत्यक्ष रूप में सरकार के साथ-साथ संगठन पर भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का पूरा-पूरा कब्ज़ा हो जाएगा। इस सूची भेजी को करीब एक महीना होने वाला है। कांग्रेस हलके इसकी स्वीकृति में देरी का कारण राजस्थान की घटनाओं को बता रहे हैं परन्तु कुछ हलकों में इस देरी के पीछे नवजोत सिंह को आगे लाने से भी जोड़ा जा रहा है। वैसे जिस तरह नवजोत सिंह सिद्धू हाईकमान के आदेशों पर बिल्कुल चुप्पी धारण करके बैठे हुए हैं, यहां तक कि अपने दमदर्दों तथा साथियों के फोन तक भी नहीं उठा रहे, जिस तरह पंजाब की राजनीति में समीकरण तेज़ी से बदल रहे हैं और कांग्रस हाईकमान मामले को और आगे डाले जा रही है, उससे इस गीत के मुखड़े वाली बात होने की आशंका भी दिखाई देती है कि ‘कहीं देर न हो जाए’। वर्णनीय है कि यदि अब एक बार कांग्रेस हाईकमान संगठन की घोषणा कर देती है और बाद में कमान सिद्धू को संभाल देती है तो सिद्धू को नई टीम बनाने तथा हाईकमान से स्वीकृति लेने में समय लगेगा परन्तु पुरानी टीम हटाने से उनकी स्थाई नाराज़गी भी सहन करनी पड़ेगी, जो कांग्रेस में निचले स्तर पर नई फूट का कारण बनेगी। 
अकाली दल बादल की रणनीति 
अकाली दल बादल अपने केडर को बचाने के लिए ज़मीनी स्तर पर अपना संगठन मज़बूत करने हेतु अपनी रणनीति में काफी बदलाव करता नज़र आ रहा है। हमारी जानकारी के अनुसार ऊपरी स्तर पर न सही परन्तु अकाली दल निचले स्तर पर पार्टी में लोकराज बहाल करने की कोशिशों में है। हमारी जानकारी के अनुसार अकाली दल अपने सर्कलों की संख्या करीब 3 गुणा करने जा रहा है। प्रत्येक विधानसभा हलके में अब 2 या 3 की अपेक्षा 9 या 10 सर्कल अध्यक्ष बनाए जाएंगे। एक सर्कल 20 से 25 हज़ार वोटों का होगा। सर्कल अध्यक्षों की नियुक्ति डैलीगेटों के चयन के माध्यम से होगी। इसके बाद ज़िला अध्यक्ष इन सर्कल अध्यक्षों की बहुसंख्या या सर्वसम्मति से चुने जाएंगे। यही तरीका अकाली दल के प्रमुख विंगों जैसे यूथ अकाली दल आदि के लिए प्रयोग किया जाएगा। 
गुप्त बैठकों की तैयारी 
हमारी जानकारी के अनुसार सुखदेव सिंह ढींडसा के लिए इस समय सबसे पहला और बड़ा लक्ष्य दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव में बादल विरोधी सभी गुटों को मिला कर पंथक मोर्चा बनाकर अकाली दल बादल को सीधी टक्कर देने का है। पता चला है कि वह 8 से 10 अगस्त के बीच दिल्ली जा रहे हैं और उनकी आम आदमी पार्टी के नेताओं जिनमें संजय सिंह या दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं, के साथ गुप्त बैठकों का कार्यक्रम बनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वह दिल्ली के बादल अकाली दल के कुछ नाराज़ नेताओं तथा भाजपा नेताओं के साथ भी बैठकें करेंगे। परन्तु जिस तरह सुखदेव सिंह ढींडसा ने केन्द्र सरकार द्वारा फसलों के बारे जारी अध्यादेशों के विरोध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तीखा पत्र लिखा है, उससे तो यही प्रभाव मिलता है कि वह भाजपा से अधिक प्राथमिकता आम आदमी पार्टी को देंगे। वैसे भी दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों में भाजपा की अपेक्षा ‘आप’ से समझौता करना ढींडसा के लिए अधिक लाभदायक हो सकता है। वैसे ढींडसा प्रधानमंत्री को यह पत्र लिख कर पंजाब तथा किसानों के प्रति अपने अकाली दल की सोच अकाली दल बादल से काफी अलग होने का भी स्पष्ट संकेत देने में सफल रहे हैं। 

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