पूरी दुनिया का सवाल, कोरोना वायरस है या बैक्टीरिया ?

हालांकि एक 62 वर्षीय बुजुर्ग की मृत्यु आयु संबंधी बीमारियों की वजह से हुई, लेकिन कोविड-19 संक्रमण का डर इतना अधिक था कि उसके परिजनों ने अंतिम संस्कार में शामिल होना तो दूर, शव को देखा तक नहीं।इस घटना से यह मालूम होता है कि संकट की इस स्थिति में कोविड-19, लॉकडाउन व संक्रमण संबंधी अत्याधिक सूचनाओं, जो अधिकांश परस्पर विरोधी भी हैं, से समाज में भय इतना अधिक व्याप्त हो गया है कि लोग अपने ही साये से डरने लगे हैं। यही कारण है कि अनलॉक-3 की प्रक्रिया आरंभ होने के बावजूद जो लोग आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं, वे अभी तक काम पर नहीं लौटे हैं, और जिन लोगों ने मजबूरी के तहत अपनी दुकानें खोली हैं, वे सुबह से शाम तक ग्राहकों की प्रतीक्षा में ही बैठे रहते हैं। बाज़ार में खाने-पीने से संबंधित आवश्यक वस्तुओं की ही सिर्फ  बिक्री है।समाज में भय व्याप्त होने व अर्थव्यवस्था को चौपट करने में कोविड-19 के संदर्भ में कम जानकारी, परस्पर विरोधी सूचनाओं और संक्रमित व मृतकों की निरंतर बढ़ती संख्या के भयावह डाटा की बड़ी भूमिका रही, जिसकी वजह से कहीं लॉकडाउन तो कहीं हर्ड इम्यूनिटी की नीति अपनायी गई  लेकिन कभी वास्तविक तस्वीर सामने नहीं आयी। हालांकि चीन में कोविड-19 संक्रमण का पहला मामला नवम्बर 2019 में सामने आया था, लेकिन अभी तक यह बहस बनी हुई है कि कोरोना प्राकृतिक वायरस है या लैब में निर्मित है। अब एक सनसनीखेज दावा किया जा रहा है कि कोरोना वायरस है ही नहीं बल्कि यह बैक्टीरिया है। सच क्या है, किसी को पता नहीं है। अगर किसी को पता है तो वह अज्ञात कारणों से बता नहीं रहा है। इस कारण से उलझन व डर बढ़ा है, जिससे दवा कम्पनियों, मैडिकल उपकरण बनाने वाली कम्पनियों, वैक्सीन का शोध करने वाली संस्थाओं और अपने प्रोडक्ट्स को सैनेटाइज़र व इम्यूनिटी बूस्टर के नाम पर मार्किट करने वालों की चांदी हो रही है। अन्य उद्योगों ने भी मौके का लाभ उठाया है, अपने स्टाफ  की छंटनी करके या वेतन में 30 से 50 प्रतिशत की कटौती करके। महंगाई भी बेकाबू होती जा रही है और पिस रहा है बेचारा मध्य वर्ग और गरीब तबका। वुहान (चीन) से बाहर निकलने के बाद कोविड-19 ने जिन देशों में सबसे ज्यादा मौत का तांडव किया, उनमें इटली विशेषरूप से शामिल था, जहां रोजाना 3000 से 4000 मय्यतें उठती रहीं। लेकिन पिछले दो माह से इटली में सब कुछ नियंत्रण में है और वहां जीवन व अर्थव्यवस्था सामान्य होती जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इटली में मैडिकल सुविधाएं शेष विश्व से श्रेष्ठ हैं, लेकिन फिर भी यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर उसने क्या नीति अपनायी कि भयावह स्थिति को इतनी जल्दी काबू में कर लिया, खासकर जब कोविड-19 का कोई इलाज घोषित तौर पर निर्धारित नहीं किया गया है। इटली से सूत्रों के हवाले से जो खबरें सामने आयी हैं, उनसे मालूम होता है कि वहां के डाक्टर कोरोना को वायरस नहीं बल्कि बैक्टीरिया मानकर उपचार कर रहे हैं और इसमें उन्हें इतनी जबरदस्त कामयाबी मिल रही है कि संक्रमित रोगी एक दिन में ही ठीक होकर अस्पताल से घर लौट रहे हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन का प्रोटोकॉल यह है कि कोविड-19 से मरने वाले व्यक्ति का पोस्टमार्टम किये बिना ही उसे दफना या जला दिया जाये, क्योंकि शव अति संक्रमित होता है लेकिन इस प्रोटोकॉल को अनदेखा करते हुए इटली के डाक्टरों ने शवों का पोस्टमार्टम किया और वह भी इस तरह से कि एक-एक नस व अंग को पूरी तरह से खोलकर देखा और पाया कि अधिकतर मौतें ब्लड क्लॉट होने की वजह से हो रही हैं और ब्लड क्लॉट का कारण बैक्टीरिया है, न कि वायरस। डॉक्टरों ने कोविड-19 को 5-जी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से एम्प्लीफाई करने पर भी यही पाया कि यह वायरस नहीं बैक्टीरिया है, जिसे इन्फ्लामेशन व हाईपोक्सिया भी होता है। गौरतलब है कि रक्त में जो हेमोग्लोबिन होता है (जो खून को लाल रंग भी प्रदान करता है) उसका काम शरीर के विभिन्न अंगों से कार्बन डाईऑक्साइड लेकर फेफड़ों में पहुंचाना होता है ताकि वह सांस के साथ बाहर निकल जाये और फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाना होता है लेकिन अगर ब्लड क्लॉट हो जाये तो यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इटली के डाक्टरों के अनुसार, इसी वजह से कोविड-19 रोगियों को सांस लेने में कठिनाई होती है। जब शरीर के महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचना बंद हो जाती है तो व्यक्ति की मौत हो जाती है। इन डॉक्टरों का कहना है कि इसका उपचार वेंटीलेटर या ऑक्सीजन देना नहीं बल्कि ब्लड क्लॉट दूर करना व बैक्टीरिया को मारना है, जोकि बहुत आसानी से एंटीबायोटिक्स, एंटी-इंफ्लेमेटरी व एंटी-कोगयुलेंट दवाओं से किया जा सकता है। चूंकि कोविड-19 कुछ नहीं है, सिवाय थ्रोम्बोसिस (डिससेमिनेटिड इंट्रावैस्कुलर कोगयुलेशन) यानी ब्लड क्लॉट के, इसलिए वेंटीलेटर व आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी। इटली के डॉक्टरों ने उपचार हेतु एस्प्रिन 100 एमजी व एप्रोनक्स या पैरासिटामोल देना शुरू किया और एक रिपोर्ट के अनुसार, एक दिन में 14,000 रोगियों को ठीक करके उनके घर भेजा। चूंकि किसी सम्मानित विज्ञान पत्रिका ने यह रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की, इसलिए निश्चितता के साथ तो यह नहीं कहा जा सकता कि कोविड-19 वास्तव में बैक्टीरिया ही है, लेकिन कुछ सवाल ज़रूर उठते हैं, खासकर इसलिए कि कोविड-19 रोगी शरीर में ऑक्सीजन की कमी से ही मर रहे हैं और फेफड़ों के अतिरिक्त उनके दिल, गुर्दा आदि भी प्रभावित हो रहे हैं।

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