राष्ट्र को पुनर्सज्जित किये जाने की बड़ी ज़रूरत

कोरोना संकट अपनी जगह पर है। कोरोना से जनहानि को लेकर किसी प्रकार की चर्चा किए बिना देश की अर्थ व्यवस्था के पटरी से उतर जाने का खतरा अभी टला नहीं था कि इस बीच पूर्वोत्तर और उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा इस वक्त भारी बारिश और बाढ़ की तबाही से जूझ रहा है। उत्तराखंड में बादल फटने से कई मकान ज़मींदोज हो गए। कुछ लोगों की मौत हो चुकी है, कुछ लापता हैं। उत्तर प्रदेश में घग्गर, सरयू, राप्ती ये तमाम नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। बिहार में कई जिलों में बाढ़ की तबाही जारी है। उधर, चीन के साथ पाकिस्तान और नेपाल को लेकर केन्द्र सरकार के सामने अभी भी संशय जैसी स्थिति विद्यमान है। अब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के केरल और कर्नाटक प्रांत में आईएस के सहयोगी संगठन हिंद विलयाह के 150 से 200 आतंकवादी मौजूद हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के हैं। इनकी योजना भारत में हमले की है, जो धारा 370 को हटाये जाने, तीन तलाक और राम मंदिर निर्माण के बदले की भावना का संकेत है। नोटबंदी और कोरोना में लॉकडाउन के चलते डूब रहे बैंकों को उबारने का संकट भी चुनौती के रूप में सरकार के सामने खड़ा है। कोरोना काल में होटल, विमानन और रियल एस्टेट के साथ रेलवे को सबसे ज्यादा आर्थिक संकट उठाना पड़ा है। एनपीए की बढ़ौत्तरी भी देश की आर्थिक स्थिति के लिए बड़ा खतरा बन दिखाई पड़ रही है। इस बात की आशंका पहले ही जताई जा रही थी कि कोविड-19 ने जिस तरह से समूची अर्थव्यवस्था का पहिया जाम किया है, उसका असर वित्तीय सैक्टर पर साफ  दिखने वाला है। आरबीआई ने भी वित्तीय सैक्टर की मज़बूती का आकलन करने वाली प्रतिष्ठित फाइर्नेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के माध्यम से इस बात पर मुहर लगा दी। छमाही एसबीआर के माध्यम से आरबीआई ने कहा है कि अगर हालात और खराब हुए तो चालू वित्त वर्ष में एनपीए का स्तर कुल अग्रिम के मुकाबले रिकॉर्ड 14.7 प्रतिशत व सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए 15 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। बैंकिंग क्षेत्र का हाल आगामी महीनों में सबसे बुरा होने वाला है। इसकी पुष्टि बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज खातों को पुनर्गठित करने की मांग से होती है। मोटे तौर पर ये कज़र् होटल, विमानन और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े हैं। इन क्षेत्रों को कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। इनके ऋण खातों को पुनर्गठित करने की ज़रूरत इसलिए भी है, क्योंकि इसके बाद कम्पनियों को अनेक तरह से राहत दी जाती है। कुछ समय के लिए पुनर्गठित खाते गैर-निष्पादित एस्सेट (एनपीए) होने से बच जाते हैं और कम्पनियों को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने का मौका मिल जाता है। दरअसल, किसी कम्पनी के दिवालिया होने पर बैंक जितनी वसूली कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक पैसे उन्हें ऋण खातों के पुनर्गठन से मिलने की उम्मीद होती है। अप्रैल 2020 के अंत तक होटल क्षेत्र पर बैंकों के 45,862 करोड़ रुपये, विमानन क्षेत्र पर 30,000 करोड़ रुपये और रियल एस्टेट क्षेत्र पर 2.3 लाख करोड़ रुपये बकाया थे। इन क्षेत्रों को उबरने में छह महीने से भी अधिक समय लग सकता है। एक रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, खस्ता हाल विमानन क्षेत्र को अपना अस्तित्व बचाने के लिए आगामी तीन साल में लगभग 35,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत पड़ेगी। आज कई होटल कर्ज में हैं। व्यावसायिक रियल एस्टेट और किराए के कारोबार में भी 25 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट के कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसे में, इन क्षेत्रों से जुड़े ऋण खातों का पुनर्गठन और ज़रूरी हो जाता है। बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता, लेकिन यह क्षेत्र एनपीए की समस्या से जूझ रहा है। दिसम्बर 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया था कि सितम्बर 2020 तक भारतीय अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों का एनपीए कुल कर्ज के 9.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच सकता है। सितम्बर 2020 में 53 देशी-विदेशी बैंकों की पूंजी कम हो जाएगी। बैंकों का मुनाफा कम होगा, जिससे उन्हें ऋण देने में परेशानी होगी। इसके बाद कोरोना को जिस तरह हौव्वा बनाकर देश में एक माहौल का सृजन हुआ और लम्बे लॉकडाउन के चलते बेरोज़गारी चरम पर पहुंची, उस संकट से निजात पाने के लिए एक लम्बा अरसा चाहिए। आश्चर्य नहीं कि संयुक्त राष्ट्र की आई.एस. संबंधी रपट को मुसलमानों को बदनाम करने की साज़िश बताया जाना लगे। आखिर यह काम पहले होता ही रहा है। ऐसे तत्वों को बेनकाब और हतोत्साहित करने की सख्त ज़रूरत है। इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की रपट यह भी कह रही है कि अफगानिस्तान में अलकायदा की एक टोली में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के सदस्य सक्रिय हैं और वे इस क्षेत्र में आतंकी हमलों की साज़िश रच रहे हैं। इधर कोरोना की जांच कर रही मशीनों और उनकी विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।