आंकड़ों का गुड़ गोबर

भा रत का हर आदमी दुनिया का सातवां आदमी है। इज़रायल के बाद दुनिया में भारत वह दूसरा देश है, जिसने आबादी पर नियंत्रण करने के लिए परिवार नियोजन को सरकारी नीति के रूप में घोषित किया। अपनी इस प्रगतिशीलता की हम प्रशंसा कर सकते हैं लेकिन तनिक परिणाम भी देख लीजिए पचहत्तर बरस के इस नियंत्रक प्रयास के बावजूद आज हालत यह हैं  कि हम दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को पछाड़ने जा रहे हैं। एक अरब पैंतीस करोड़ का आंकड़ा तो हम पार कर गये। उम्मीद है कि दुनिया का हर पांचवां आदमी भारतीय हो जाएगा और सातवां चीनी। 
खैर, अधिक आबादी की भीड़ का लाभ यह होता है कि जब देश की नाकामयाबी की गणना करनी हो तो सीधा आंकड़ा गिनने की बजाय प्रतिशत दर से कर लो। पराजय की तस्वीर इतनी भयावह नहीं लगेगी।  अब देखो न कोरोना महामारी के नियंत्रण में हम चारों खाने चित्त गिरे हैं। पहले प्रचार किया जा रहा था कि इस वायरस का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार ने ठीक समय पर कदम उठा लिए। इतना बड़ा देश है, इतनी आबादी, लेकिन सरकार ने सटीक समय पर पूरा देश बंद करने में लेटलतीफी नहीं की। टाल मटौल नहीं की। पूरा देश एक दम बंद कर दिया गया, और वह भी चार चरणों तक। इसी से कोरोना प्रकोप फैलने में देर लगी। अब देख लो एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी में केवल सोलह-सत्तरह लाख संक्रमित हुए। प्रतिशत की दर देखो तो दुनिया भर के देशों में दर्जन भर देशों से हम पीछे चल रहे हैं। 
लेकिन असल संख्या और  संक्रमण बढ़ने की तेज़ी देखो तो यह दुनिया का तीसरा देश बन जाता है। पाकिस्तान जैसे देश हमसे अच्छी हालत में हैं। हालत की बात करते हो इतने निराशावादी न बनो। भारत में इस रोग से मरने वालों की दर तो निरतंर कम हो रही है। देखो घटते-घटते सवा दो प्रतिशत पर आ गयी। लेकिन लो फिर वही प्रतिशत का दिलासा। असली आंकड़े देखो तो हमारे जैसे संक्रमित देश रूस में हमारी तुलना में मरने वालों की असली संख्या हमसे कहीं कम है। माशा अल्लाह! केवल आंकड़े देखें तो हमारी मौतें   यूरोप के देशों से कम नहीं। लो कर लो घी को बर्तन।  एक ही तस्वीर को रुख बदल कर देखने का यह प्रयास महामारी की भयावहता मापने कि लिए ही क्यों करते हो? पंचवर्षीय योजनाओं की इस असफलता, भ्रष्टाचार में वृद्धि भुखमरी में तरक्की या आत्महत्याओं में वृद्धि। यहां देख लो, प्रतिशत असफलता अथवा विसंगति कम नज़र आती है। सही आंकड़े तो चौंका देते हैं।  इसलिए बेहतर यही है कि अपना निकम्मापन छिपाना हो तो प्रतिशत में छिपाओ और अपनी सफलता का बखान करना हो तो असली आंकड़ों में बखानो।
पति देव दारू पीकर सामान्य समय से चार घंटे बाद अर्थात् आधी रात दो बजे वापस लौटे तो अपनी श्रीमती जी की अदालत में स्पष्टीकरण देते हुए कितने भोले लगते हैं, ‘अजी क्या हुआ मात्र पन्द्रह प्रतिशत ही तो विलम्ब से आया हूं।’ वाह प्रतिशत।  लेकिन इतना ही नहीं बन्धु, आंकड़ों का प्रतिशत ही वह हथियार है, जिससे आप राजनीति से लेकर समाज तक में अपनी शोभा दुगनी या विरोधी को मलियामेट कर सकते हो। यही हाल आजकल देश में चल रहा है। जनता चिल्ला रही है कि इन कठिन दिनों में आकाश छूती महंगाई ने हमारा हुलिया बिगाड़ कर रख दिया। परचून कीमतें इतनी तेज़ी से बढ़ीं कि इन्होंने पिछले दशक के रिकार्ड पस्त कर दिये। अब इनकी वृद्धि दर पांच प्रतिशत से लेकर तेरह प्रतिशत है। पांच प्रतिशत खाद्य सामग्री में और तेरह प्रतिशत तक रोज़मर्रा के फल-सब्ज़ियों की कीमत में। लेकिन इसका मुकाबला करने वाला इन्हीं कीमतों में वृद्धि को शून्य प्रतिशत से भी नीचे बता सकता है। अन्तर केवल इतना होगा कि वह थोक कीमतों के परिवर्तन की बात करेगा, जबकि आप परचून कीमतों की बात कर रहे हैं। 
फिर पानी भरे गिलास को आधा खाली या आधा भरा हुआ बता अलग-अलग राग अलापने वाले कम नहीं। चुनाव करीब आ रहे हैं। अब सत्ता पक्ष बताएगा कि उसने अपने कार्यकाल में कितने प्रतिशत नई नौकरियां पैदा कीं और सत्तापेक्षी कहेगा कि उनके इलाके में बेरोज़गारी में कितने  प्रतिशत वृद्धि हुई।   लीजिए साहिब, यह सच तो अन्धों का हाथी हो गया, इन साहिबान के लिए। कानून व्यवस्था का निगाहवान थानेदार बताता है कि उसने पिछले बरस की तुलना में कितने प्रतिशत अपराधी अधिक पकड़े समाज का ठेकेदार आप को अपराधों की प्रतिशत और वृद्धि बता और भी अधिक डरा देता है। आप डरेंगे तभी तो वह तारणहार बन कर अपनी शोभा का झण्डा बुलंद कर सकेगा। जय आंकड़ा शास्त्र की।  लेकिन आंकड़ों की असल संख्या और प्रतिशत वृद्धि की तुलना का भ्रमजाल तोड़िये। सच बताइए कि अपनी फसल का इस साल भी उचित दाम न मिलने के कारण जो किसान मंडी के चौराहे पर फंदा लगा कर मर गया, उसकी दारुण व्यथा कम नहीं थी चाहे इस साल इन अभागों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम नहीं। 
   लीजिए इधर कोरोना भी इस बरस परीक्षाएं नहीं दे रहा तो क्या औसत प्रतिशत के आधार पर पिछले बरस जो फेल हो गया, उसे इस बरस भी यही भाग्य दे दें, चाहे इस बीच उसने पढ़-पढ़ कर अपनी आंखें फोड़ ली हों। प्रतिशत के रस्से से संख्या को बांध तो लो, लेकिन एक अकेले नेह भरे दिए को हमेशा ही पंक्ति को नहीं दिया जा सकता, बन्धु।