आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति 

वैशविक परिदृश्य में कुछ घटनाक्रम ऐसे होते हैं जो अलग-अलग स्थान और अलग-अलग समय पर घटित होते हैं लेकिन कालांतर में अगर उन तथ्यों की कड़ियां जोड़कर उन्हें समझने की कोशिश की जाए तो गहरे षड्यंत्र सामने आते हैं। इन तथ्यों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सामान्य से लगने वाले ये घटनाक्रम असाधारण नतीजे देने वाले होते हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में संबंधित समूह, स्थान या जाति के इतिहास से छेड़छाड़ करके उस समूह, स्थान या जाति का भविष्य बदलने की चेष्टा की जाती है। आइए, पहले ऐसी ही कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं।
घटनाक्त्रम 1. 2018, स्थान राखीगढ़ी
लगभग 6500 साल पुराने एक कंकाल के डी.एन.ए. के अध्य्यन से यह बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गई कि आर्य बाहर से नहीं आए थे बल्कि वे भारतीय उपमहाद्वीप के स्थानीय अथवा मूल निवासी थे। यहीं उन्होंने धीरे धीरे प्रगति की, जीवन को उन्नत बनाया और फिर इधर-उधर फैलते गए। इस शोध को देश विदेश के 30 वैज्ञानिकों की टीम ने अंजाम दिया था जिसका दावा है कि अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडेमान तक के लोगों के जीन एक ही वंश के थे।
घटनाक्रम 2. 19 वीं शताब्दी 1850 में आर्य आक्रमण सिद्धांत दिया गया जिसमें कहा गया कि आर्य भारत में बाहर से आए थे (कहां से आए, इसका कोई स्पष्ट जवाब किसी के पास नहीं है। कोई मध्य एशिया, कोई साइबेरिया, कोई मंगोलिया तो कोई ट्रांस कोकेशिया कहता है) और उन्होंने भारत पर आक्रमण करके यहां के मूल निवासियों (जनजातियों) को अपना दास बना लिया। यानी आज भारत में रहने वाले लोग यहां के मूलनिवासी नहीं हैं, केवल यहां की जनजातियां यहां की मूल निवासी हैं।
घटनाक्रम 3: 15 वीं शताब्दी : 1492 में कोलम्बस भारत की खोज में निकला और अमरीका पहुंच कर उसी को भारत समझ बैठा। वहां उसे अमरीका के स्थानीय निवासी मिले जिनका रंग लाल था। चूंकि वो उस धरती को भारत समझ रहा था, अत: उसने उन्हें ‘रेड इंडियन’ नाम दिया। असल में यही रेड इंडियन अमरीका के मूल निवासी हैं। लूट के इरादे से आए कोलम्बस ने उन पर खूब अत्याचार किए। धीरे-धीरे यूरोप के अन्य देशों को भी अमरीका के बारे में पता चला और कालांतर में स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन ने भी अमरीका पर कब्जा किया। ब्रिटेन ने तो वहां अपनी 13 कॉलोनियां स्थापित कर ली थीं। 1776 से लेकर 1783 तक अमरीका के मूल निवासियों ने अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ी जिसके बाद ये 13 कॉलोनियां आज का संयुक्त राज्य अमरीका बना।
घटनाक्रम 4. : कुछ संगठनों द्वारा 1992 में कोलम्बस के अमरीका में आने के 500 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में वहां एक बड़ा जश्न मनाने की तैयारी की जा रही थी लेकिन अमरीका के मूल निवासियों ने कोलम्बस के अत्याचारों के दृष्टिगत इस आयोजन का विरोध किया गया। 
घटनाक्रम 5. : इसी के चलते 1994 में 9 अगस्त को आदिवासी दिवस अथवा ‘ट्राइबल डे’ अथवा मूल निवासी दिवस मनाने की शुरुआत हुई। इसका लक्ष्य था ऐसे प्रदेश या देश के मूल निवासियों को उनके अधिकार दिलाना जिन्हें अपने ही देश में दूसरे दर्जे की नागरिकता प्राप्त हो। सरल शब्दों में आक्रांताओं द्वारा उन पर किए गए अत्याचारों के कारण उनकी दयनीय स्थिति में सुधार लाने के कदम उठाना।
घटनाक्रम 6. : भारत के आदिवासी इलाकों में आदिवासियों के सामाजिक उत्थान और कल्याण के नाम पर उनके धर्मांतरण की घटनाओं में इजाफा होना। कुछ तथ्य :1951 में अरुणाचल प्रदेश में एक भी ईसाई नहीं था, 2011 की जनगणना के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश में 30 प्रतिशत से ज्यादा ईसाई थे। मेघालय में 75 प्रतिशत, मिज़ोरम में 87 प्रतिशत, नागालैंड में 90 प्रतिशत, सिक्किम में 9.9 प्रतिशत, त्रिपुरा में 4.3 प्रतिशत और केरल में 18.38 प्रतिशत ईसाई आबादी है जो धीरे धीरे बढ़ रही है।
ये घटनाएं विश्व के इतिहास की सामान्य घटनाएं प्रतीत हो सकती हैं लेकिन अगर इनके परिणामों पर दृष्टि डालें तो लगता है कि ये सामान्य नहीं हो सकतीं क्योंकि आज जब भारत के झारखंड ,ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश जैसे आदिवासी बहुल प्रदेशों में कुछ संगठनों द्वारा जोर-शोर से आदिवासी दिवस को मनाने की परम्परा शुरू कर दी गई है तो यह विषय गम्भीर हो जाता है। खास तौर पर तब जब ऐसे आयोजनों के बहाने इस देश की जनजातियों से उनके अधिकार दिलाने की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हों और एक सुनियोजित तरीके से उनके अंतर्मन में सरकार के प्रति असंतोष का बीज बोने का षड्यंत्र रचा जाता हो। ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि जब इन जनजातियों की समस्याओं के नाम पर एक ऐसे आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाती है जिसके परिणामस्वरूप यह  ‘असंतोष’ केवल किसी जनजाति का सरकार के प्रति विद्रोह तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि कहीं कहीं यह सामाजिक आंदोलन का रूप ले लेता है तो कहीं यह असंतोष धर्मांतरण और अलगाववाद का कारण बन जाता है। 
कहा जा सकता है कि आदिवासी अथवा जनजातियों को उनके अधिकार दिलाने की मुहिम दिखने वाला ‘आदिवासी दिवस’ नाम का यह आयोजन ऊपर से जितना सामान्य और साधारण दिखाई देता है, वो उससे कहीं अधिक उलझा हुआ है। भारत का मानना है कि यहां रहने वाले सभी लोग मूलनिवासी हैं और इनमें से कुछ समुदायों को ‘अनुसूचित’ चिन्हित किया गया जिन्हें सामाजिक, आर्थिक, न्यायिक और राजनीतिक समानता दिलाने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसके अतिरिक्त मूल निवासियों के जिन अधिकारों की बात की जा रही है, वे अधिकार भारत का संविधान भारत के हर नागरिक को प्रदान करता है। इसलिए भारत के संदर्भ में किसी आदिवासी दिवस का कोई औचित्य नहीं है। इसके बावजूद भारत में इस दिवस को विशेष महत्व देने का प्रयास किया जा रहा है। इसी क्रम में कुछ संगठन प्रधानमंत्री से इस दिन पर अवकाश की घोषणा करने की अपील भी कर रहे हैं। इस प्रकार के कृत्य नि:संदेह उनके उद्देश्य के प्रति संदेह उत्पन्न करते हैं।