एहतियात अभी भी बहुत ज़रूरी है!

अ नलॉक-3 बढ़ते रिकवरी दर और गिरते मृत्यु दर की वजह से लोग लापरवाह होते जा रहे हैं, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्देश्य से किये गये अनलॉक के माहौल में सावधानी, सतर्कता व एहतियात पहले से अधिक बरती जाये क्योंकि नये कोरोना वायरस का खतरा अभी टला नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी खत्म होने की घोषणा नहीं की है। दरअसल, चौकस रहने की ज़रूरत इस दृष्टि से ज्यादा है क्योंकि कोविड-19 अजीबोगरीब बीमारी है, बल्कि पहेली सी बन गई है जिसका समाधान अभी किसी के पास नहीं है यानी कोई भी निश्चितता के साथ नहीं कह सकता कि कौन इससे बीमार पड़ेगा, कौन नहीं पड़ेगा। कौन ठीक हो जायेगा, कौन जीवन से हाथ धो बैठेगा। यह भी तय नहीं है कि कौन सुविधारहित सरकारी अस्पतालों में मात्र 410 रुपये की दवाओं का सेवन करने के बाद उछलता-कूदता घर लौटे, और कौन महंगे प्राइवेट अस्पताल में 15-20 लाख रुपये खर्च करके ताबूत में बंद होकर श्मशान या कब्रिस्तान की राह ले। सब कुछ अनिश्चित है और अभी इसकी वैक्सीन भी तैयार नहीं हुई है।
विमल कुमार मेरठ की एक कुकिंग गैस एजेंसी में डिलीवरी मैन है यानी उसका काम घर-घर कुकिंग गैस सिलेंडर पहुंचाना है। यह काम वह पूरी लॉकडाउन अवधि के दौरान करता रहा है और उन क्षेत्रों में भी जिन्हें स्थानीय प्रशासन ने हॉटस्पॉट घोषित किया। उसके पास न उचित सुरक्षा मास्क है, न ही कोई अच्छा सैनेटाइजर और उसका छोटा सा घर घनी मलिन बस्ती में है जहां सोशल डिस्टेंसिंग चाहकर भी नहीं अपनायी जा सकती थी। लॉकडाउन भी सिर्फ  कागजों पर ही था। संक्षेप में यह कि विमल कुमार के कोविड-19 से संक्रमित होने के पूरे खतरे मौजूद थे लेकिन वह परिवार सहित पूर्णत: स्वस्थ है। दूसरी ओर अभिनेता अमिताभ बच्चन के पास कोरोना वायरस से सुरक्षित रहने के तमाम साधन थे। अच्छी आर्थिक स्थिति की वजह से काम पर जाने की भी कोई मजबूरी नहीं थी, लेकिन फिर भी वह कोविड-19 पॉजिटिव हुए। 
अब अन्य बड़े नामों, विशेषकर नेताओं के पाजिटिव होने की खबरें लगातार आ रही हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद देश के गृहमंत्री अमित शाह, तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष एस देव सिंह कोविड-19 पॉजिटिव हो गये हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने भी ट्वीट करके अपने कोविड-19 पॉजिटिव होने की सूचना दी है। उत्तर प्रदेश में छह मंत्री कोरोना वायरस पॉजिटिव हैं। यह सोचने की बात है की तमाम सावधानियों के बावजूद नेताओं में पॉजिटिव होने की संख्या क्यों बढ़ रही है? केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपने आधिकारिक निवास स्थान व कार्यालय से ही काम कर रहे थे यानी कहीं बाहर नहीं निकल रहे थे। इसके बावजूद उनका संक्रमित हो जाना इस बात का ही संकेत है कि कोविड-19 का फैलाव बहुत अधिक हो गया है। 
गौरतलब है कि 55 वर्षीय शाह ने अपने ट्वीट के जरिये अपने संक्रमित होने की खबर दी और पिछले कुछ दिनों में जो लोग उनके सम्पर्क में आये थे, उन्हें टैस्ट कराने व आइसोलेट होने की सलाह दी। शाह को गुड़गांव के किसी प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जिसका नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है। संक्रमित होने या न होने की तरह ठीक होने या न होने के संदर्भ में भी कोई निश्चितता नहीं है। देश के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में उपचार की जो लचर स्थिति है, वह किसी से छुपी हुई नहीं है। यू-ट्यूब व फेसबुक पर लापरवाही व अनियमितताओं के वीडियोज की भरमार है, लेकिन फिर भी अधिकांश रोगी ठीक होकर घर लौट रहे हैं। दूसरी ओर तमामतर श्रेष्ठ उपचार व्यवस्था के उपलब्ध होते हुए भी उत्तर प्रदेश की तकनीकी शिक्षा मंत्री व दो बार सांसद रह चुकीं कमल रानी वर्मा कोविड-19 से जंग हार गईं। 
2 अगस्त की सुबह लखनऊ के अस्पताल में उनका निधन हो गया। उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से मरने वाली वह तीसरी राजनीतिज्ञ हैं। उनसे पहले लखनऊ के डिप्टी मेयर अभय सेठ व पूर्व मंत्री घुरा राम का कोविड-19 से निधन हुआ। सावधानी बरतने की इसलिए भी ज़रूरत है क्योंकि इस समय भारत में संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 3 अगस्त को सुबह 8 बजे जो डाटा अपडेट किया, उसके अनुसार पिछले 24 घंटों में संक्रमितों की संख्या में 53,979 का इजाफा होकर कुल संख्या 18 लाख को पार करते हुए 18,04,702 हो गई और अब तक 38,161 लोग कोरोना के चलते मौत की नींद सो चुके हैं। गौरतलब है कि पिछले पांच दिन से प्रतिदिन पचास हज़ार से अधिक संक्रमित मामले सामने आ रहे हैं। 
चिंता की बात यह है कि संक्रमण व मृत्यु की खबरें अब देश के सभी राज्यों से मिल रही हैं यानी अब केवल दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद आदि मेट्रोपोलिटन ही हॉटस्पॉट नहीं हैं बल्कि छोटे शहर भी कोविड-19 की चपेट में आ रहे हैं। कुछ राज्यों ने कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की बात भी कही है, लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ  मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) व स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से इसकी पुष्टि नहीं हुई है। 
नये कोरोना वायरस को लेकर लापरवाह न होना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि विशेषज्ञों का अनुमान है कि जिन जगहों पर इस बीमारी को नियंत्रित कर लिया गया है, जैसे केरल, दिल्ली आदि, वहां संक्रमण की दूसरी लहर भी आ सकती है, जैसे कि वुहान (चीन) में आयी हुई है। इसके अतिरिक्त कोविड-19 को लेकर अब तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है। कोई इसे प्राकृतिक कह रहा है तो कोई लैब निर्मित और ऐसी रिपोर्टें भी आयी हैं जिनमें कोरोना को वायरस की जगह बैक्टीरिया बताया गया है। यह वास्तव में क्या है? किसी के लिए कम तो किसी के लिए अधिक घातक क्यों है? इस प्रकार के प्रश्नों का किसी के पास कोई उत्तर नहीं है। इसलिए यह भी तय नहीं हो पाया है कि इसमें कौन सी दवा अच्छा काम करती है। कुछ लोग एंटीबायोटिक्स से भी ठीक हुए हैं जबकि वायरस पर ये दवाएं काम नहीं करती हैं, और कुछ लोग वेंटिलेटर का सहारा लेकर भी नहीं बच पाए हैं। 
इस अनिश्चितता के कारण ही वैक्सीन आने में देर हो रही है, हालांकि विश्व की 141 लैब्स में वैक्सीन विकसित करने के प्रयास जारी हैं, जिनमें से 12 तो ट्रायल के तीसरे चरण में हैं  लेकिन वैक्सीन कब आयेगी, इसे लेकर अभी भी सिर्फ  अनुमान ही हैं। इसलिए बेहतर यही है कि लापरवाह न हों, अपनी तरफ  से पूरी सावधानी बरतें।   

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