अब आएगा रोज़गारपरक शिक्षा का दौर

केन्द्र सरकार को जो काम शुरुआत में ही करना चाहिए था, उसे सरकार ने अब शुरू किया है। देश में पढ़ाकू बेरोजगारों की जब अथाह फौज तैयार हो गई, तब जा कर सरकार को यह याद आया कि इस तरह से पढ़ाकू फौज के तैयार होने से बेरोजगारी विस्फोटक हो जाएगी और इसी का परिणाम है कि सरकार ने नई शिक्षा नीति में व्यवसायिकता को महत्वपूर्ण और अनिवार्य बनाया है। देश में इससे पहले 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी। 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे यानी 34 साल बाद देश में एक नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है। पूर्व इसरो प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने इसका मसौदा तैयार किया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने स्वीकृति दी। सबसे खास बात यह कि नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक आमूलचूल बदलाव किए गए हैं।नई शिक्षा नीति में पांचवीं क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सैकेंडरी लेवल से होगी हालांकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। साल 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100 प्रतिशत जीईआर के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है। यही नहीं, अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा। इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। स्कूल पूर्व पाठ्यक्रम के 10+2 ढांचे की जगह 5+3+3+4 की नई पाठ्यक्रम संरचना लागू की जाएगी जो क्रमश: 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें अब तक दूर रखे गए 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है। नई शिक्षा नीति में प्री-स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी। इसके तहत छात्रों की शुरुआती चरण की पढ़ाई के लिए तीन वर्षों की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है। अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पांचवीं कक्षा को रखा गया है। इसके बाद मिडिल स्कूल यानि 6-8 कक्षा में सब्जेक्ट का इंट्रोडक्शन कराया जाएगा। सभी छात्र केवल तीसरी, पांचवीं और आठवीं कक्षा में परीक्षा देंगे। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पहले की तरह जारी रहेगी, लेकिन बच्चों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा। एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र ‘परख’ (समग्र विकास के लिए कार्य-प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) एक मानक-निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा। एनसीईआरटी 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (एनसीपीएफईसीसीई) के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित करेगा। स्कूलों में शैक्षणिक धाराओं, पाठ्येतर गतिविधियों और व्यावसायिक शिक्षा के बीच खास अंतर नहीं किया जाएगा। सरकार ने काफी सोच-विचार के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। इसके लिए इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इन्टर्नशिप करवाई जाएगी। इसके अलावा म्यूजिक और आर्ट्स को बढ़ावा दिया जाएगा। इन्हें पाठ्यक्रम में लागू किया जाएगा। उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा। लॉ और मेडिकल शिक्ष को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा।  पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम लागू किया गया है।  इसे ऐसे समझ सकते हैं कि आज की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आप आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। इससे उन छात्रों को बहुत फायदा होगा जिनकी पढ़ाई बीच में किसी वजह से छूट जाती है। नई शिक्षा नीति में छात्रों को यह आज़ादी भी होगी कि अगर वो कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाखिला लेना चाहें तो वे पहले कोर्स से एक खास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकते हैं और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं। उच्च शिक्षा में कई बदलाव किए गए हैं। जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं, उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं, वे तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे लेकिन जो रिसर्च में जाना चाहते हैं, वे एक साल के एमए के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी कर सकते हैं। उन्हें एमफिल की ज़रूरत नहीं होगी।