मानव इतिहास की अति अमानवीय घटना है हिरोशिमा और नागासाकी

6और 9 अगस्त, 1945 का वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन जब 75 वर्ष पूर्व दूसरे विश्व युद्ध में अमरीका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर शृंखलाबद्ध परमाणु बम फैंक कर मानवीय इतिहास की अति-वहशीपूर्ण कार्रवाई की थी। यह एक ऐसा जन-घातक कांड था कि बम फेंकते ही तेजधार आग की लपेटों से प्रफुल्लित और सुन्दर शहर मिनटों में ही जल कर राख बन गए। हिरोशिमा में दो लाख और नागासाकी में 80 हज़ार से अधिक बच्चे, महिलाएं और पुरुष मारे गये। मौतों से अधिक लोग विकलांग हो गए। बमों के फटने से आग की तरह निकली किरणों ने लोगों के शरीर छलनी कर दिए। इन परमाणु बमों के फटने से जो ज़हरीला वातावरण बन गया, उसके प्रभाव से साधारण आबादी को जानलेवा बीमारियां लग गईं और गर्भवती माताओं के नवजात बच्चे टेढ़े-मेढ़े, गूंगे, बहरे और विकलांग पैदा हुए। साम्राज्यवादी अमरीका ने विश्व को अपनी धौंस दिखाने के लिए जानी नुकसान करने के लिए अधिक जनसंख्या वाले शहरों में बमबारी करने का समय सुबह का चुना, जब बच्चे स्कूलों में जा रहे थे और उनके अभिभावक अपने कामों पर गए हुए थे। मानवीय हनन् होते समय स्थिति यह थी कि बमों की भयानक तबाही से लोगों के बचने और बचाने के एक तरह से सभी रास्ते बंद हो गए थे। अमरीका की इस क्रूरतापूर्ण कार्रवाई से अधिकतर मौतें बेगुनाह मासूम बच्चों की हुई थीं।हकीकत यह थी कि विश्व भर में उभर रही फासीवादी ताकत ‘हिटलर’ एक तो समाजवादी प्रबन्ध का अंत करने के लिए सोवियत निज़ाम को तबाह करना चाहता था और दूसरा विश्व में अपनी ताकत दिखा कर गुलाम देशों की मंडियों का विश्व स्तर पर पुन: विभाजन करवाना चाहता था। उस समय विश्व में स्थिति यह थी कि रूस की क्रांति के बाद समाजवादी सिद्धांत वाली व्यापारिक  मंडी भी विश्व के मानचित्र पर बड़ी तेज़ी से उभर चुकी थी। साम्राज्यवादी लुटेरों को समाजवादी मंडी की न्यायपूर्ण नीति की विश्व-व्यापी लोकप्रियता किसी भी स्थिति में फिट नहीं बैठती थी। रूस समाजवादी नीति पर आधारित कम लाभ और गरीब तथा विकास कर रहे देशों से व्यापार करता था। रूस अकेला व्यापार से कमाई  ही नहीं करता था, अपितु वह जहां व्यापारिक सांझ डालता था, वहां उन देशों को अपने उद्योग स्थापित करवाने में उनको हुनर भी सिखाता था। साम्राज्यवादी को रूस की यह नीति बड़ी खटकती थी। रूस का व्यापारिक कारोबार फैलने से विश्व में दो नीतियों के व्यापारिक ढंगों से दो नये समीकरण पैदा हो गए थे। इस स्थिति में अमरीका ने दो पक्षियों को एक तीर से मारने वाली नीति अपनाई। अमरीका एक तरफ विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी को उकसाता भी था कि समाजवादी विचारों को रोकना बहुत ज़रूरी है और दूसरी तरफ हिटलर के मारे जाने को भी देखना चाहता था। वह इस कारण कि कहीं हिटलर साम्राज्यवादी गुट का प्रमुख न बन जाए। हिटलर के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को देख कर अमरीका को मजबूरन  युद्ध में रूस की सहायता करनी पड़ी। सोवियत यूनियन की देश भगत लाल सेनाओं ने इस कड़े संघर्ष में हिटलर की ताकत को कुचल दिया। जर्मन और उसके समर्थक लगातार हारते गए। दरअसल युद्ध भी समाप्त होने वाला ही था, हिटलर समर्थक जापानी सेना भी हथियार डालने के लिए तैयार हो गई थीं। हिटलर युद्ध हार चुका था। बिल्कुल युद्ध के खत्म होने के नज़दीक अमरीका ने अपने समर्थकों से विचार-विमर्श के बिना ही देश को अपनी परमाणु शक्ति दिखाने हेतु हिरोशिमा और नागासाकी के आम नागरिकों पर बमबारी करके लाखों बेकसूर लोगों को मार दिया। अमरीका की इस घिनौनी कार्रवाई की विश्व भर में कड़ी निंदा हुई। इस विश्व युद्ध में पांच करोड़ से अधिक मानवीय जानें गईं। दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद विश्व भर में परमाणु हथियार बनाने की निरन्तर होड़ अब तक जारी है। परमाणु हथियार इतने विकसित और जमा हो गए हैं कि इनका कुछ हिस्सा चलने से ही धरती से सभी किस्म का जीवन, वनस्पति पल भर में ही भस्म हो सकता है।आधुनिक पूंजीवादी युग की दास्तां यह है कि कार्पोरेट जगत देश भर की हथियार बनाने वाली कम्पनियों पर टेढे-मेढे ढंग से काबिज़ है, जबकि धरती के प्राकृतिक स्रोत तेल, गैस, कोयला, पहाड़, जंगल, पानी आदि पहले ही उसने कब्ज़े में लिए हुए हैं। विश्व भर के युद्धक साज़ो-सामान और प्राकृतिक स्रोतों पर काबिज़ कार्पोरेट एकाधिकार भविष्य में मानवीय समाज के लिए बड़ा घातक सिद्ध हो सकता है। एक खुशहाल समाज के लिए और विश्व में अमन हेतु यह कार्पोरेट एकाधिकार खत्म करना बहुत ज़रूरी है। विश्व भर में हथियार बनाने और खरीदने पर जितनी धन-राशि खर्च की जाती है अगर उस धन-राशि में से कुछ हिस्से से मनुष्य की मूलभूत ज़रूरतें खाद्य, घर, स्वास्थ्य और शिक्षा की पूर्ति की जाए तो समाज खुशहाल हो सकता है। खुशहाल और अमन भरपूर समाज में कभी भी हिरोशिमा और नागासाकी जैसा हृदय विदारक खूनी कांड घटित हो ही नहीं सकता।

-बाबा मोहन सिंह भकना भवन,
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