एक वर्ष के बाद

एक वर्ष के समय में रावी, जेहलम एवं चिनाब में से बहुत सा पानी बह चुका है। इतिहास में एक वर्ष कोई बहुत अधिक समय नहीं होता परन्तु जब किसी मामले से जन-भावनाएं जुड़ी हों, जब रोटी-रोज़ी के लाले पड़े हों, जब ज़ुबांबंदी की गई हो, तब एक वर्ष बड़ा समय लगने लगता है। एक वर्ष पूर्व जम्मू-कश्मीर में केन्द्र की ओर से बड़ा प्रशासनिक परिवर्तन किया गया था। विगत 70 वर्ष से इस प्रदेश को प्राप्त विशेष दर्जा समाप्त करने की घोषणा की गई थी। इसके साथ ही इस राज्य को दो भागों में बांट दिया गया था। जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को दो भिन्न-भिन्न केन्द्र शासित राज्यों में बदल दिया गया था।यह बड़ा फैसला था जिसने एक बार तो सभी को आश्चर्यचकित करके रख दिया था। देश के विभाजन के समय अस्थायी रूप में दिया गया यह विशेष दर्जा स्थायी रूप में बदल गया था। भारतीय जनता पार्टी जो पहले जनसंघ के नाम से जानी जाती थी, ने शुरू से ही जम्मू-कश्मीर को दिये गये इस विशेष दर्जे का विरोध किया था। अपने चुनाव घोषणा-पत्रों में भी उसने निरन्तर इस बात को दोहराया था। जब केन्द्र में भाजपा की सरकार आई तो उसने अपने किये इस वायदे को पूरा कर दिया। समय के व्यतीत होने के साथ इस प्रदेश का मामला इतना पेचीदा हो गया था जिसका हल निकालना सहल नहीं था। देश के विभाजन से लेकर ही पाकिस्तान के पक्ष को इसलिए मनफी नहीं किया जा सकता था क्योंकि आज भी जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में है। तत्कालीन भारतीय सरकारों ने इसे सुलझाने के अनेक यत्न किये परन्तु यह मामला दो देशों में न रह कर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर गया था। बड़ी संख्या में पाकिस्तान से प्रशिक्षण एवं शस्त्र प्राप्त करके आतंकवादियों की ओर से इस क्षेत्र को निरन्तर रक्त-रंजित किया जाता रहा है। हज़ारों लोग इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। भारत सदैव पाकिस्तान पर यह आरोप लगाता रहा है कि वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देकर इसकी अखंडता को आघात पहुंचाने का यत्न कर रहा है। दूसरी ओर पाकिस्तान ने कभी भी इस बात से इन्कार नहीं किया। उसकी सरजमीं पर आज भी भारी संख्या में ऐसे लोगों का जमावड़ा है जो नित्य-प्रति कश्मीर को हथियाने एवं भारत को रक्त-रंजित करने की योजनाएं तैयार करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य भी अनेक कारणों के दृष्टिगत जहां घाटी के लोगों में भारत के प्रति उदासीनता बढ़ती गई, वहीं लद्दाख के निवासियों को सदैव यह शिकायत रही कि उन्हें दशकों से दृष्टिविगत किया जाता रहा है। जम्मू क्षेत्र के अधिकतर लोग सदैव भारत के साथ जुड़ने की ही भावना व्यक्त करते रहे हैं। पिछले दशकों का इतिहास बताता है कि इस प्रदेश में कभी भी सरकारें स्थिर नहीं हो सकीं। अपने-अपने कारणों के दृष्टिगत इस प्रदेश के लोग भी आपस में बटे रहे हैं। अधिकतर समय यहां हिंसा का तांडव होता रहा है। एक वर्ष पूर्व धारा 370 को हटाने के संबंध में देश एवं दुनिया में इसके पक्ष और विपक्ष में बड़ी प्रतिक्रियाएं प्रकट की गई थीं। चाहे आज भी यह क्षेत्र सैनिक छावनी बना हुआ है परन्तु इसके बावजूद इसकी भीतरी एवं बाहरी चुनौतियां अभी भी कायम हैं। अब एक वर्ष बीतने के बाद कुछ ऐसे गम्भीर पक्ष उभर कर सामने आये हैं जिनकी ओर केन्द्र सरकार को प्रत्येक पक्ष से ध्यान देने की आवश्यकता है। आज चाहे फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला तथा सज्जाद लोन को लम्बी नज़रबंदी के बाद रिहा कर दिया गया है परन्तु अभी भी प्रशासन की ओर से दर्जनों ऐसे बड़े नेता एवं युवा कार्यकर्ता नज़रबंद हैं जिन्हें रिहा किया जाना समय की मांग है। इसके साथ ही जम्मू एवं कश्मीर को राज्य का दर्जा भी पुन: बहाल किये जाने की ज़रूरत है। प्रदेश में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए तथा राजनीतिक पार्टियों को अपने क्षेत्र में विचरण करने की पूरी आज़ादी मिलनी चाहिए, तभी यहां निचले धरातल से ऊपरी स्तर तक लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव करवाने की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी। इसके साथ-साथ बड़ी आवश्यकता इस क्षेत्र की चिरकाल से पिछड़ी हुई आर्थिकता को स्थिर करने और इस क्षेत्र में सभी तरह की गतिविधियों को बढ़ाने की है। समय की मांग के अनुसार यदि ऐसे कदम उठाये जाते हैं तो यह इस क्षेत्र के लोगों में बड़ा विश्वास पैदा करने में सहायक हो सकेंगे तथा ये प्रदेश के अच्छे भविष्य के भी ज़ामिन हो सकते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द