शिक्षा नौकरी मांगने वाली नहीं, देने वाली होनी चाहिए

साढ़े तीन दशक के लम्बे सोच विचार के बाद अब मोदी सरकार द्वारा पेश की गई शिक्षा नीति का प्रशस्ति गायन सरकारी प्रकोष्ठ कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि अभी घोषित हुई शिक्षा नीति पिछली शिक्षा नीति से बहुत बड़ा प्रस्थान है। यह अधिक लोचशील, व्यावहारिक और रोज़गार परक है। अतीत में झांकते हैं तो पाते हैं कि जब पिछली शिक्षा नीति घोषित हुई थी, उसे मूलभूत अथवा बेसिक शिक्षा नीति कहा गया था। तब भी दावा किया गया था कि इसे अकादमिक घेरों से निकाल कर ऐसी व्यावहारिक शिक्षा देने वाली नीति बनाई है, जो छात्रों को सफेद कालर वाली नौकरियों का दास नहीं रहने देगी। उद्यम का विकास करेगी।  यह नई शिक्षा नीति की घोषणा पिछली नीति से बढ़-चढ़ कर दावे कर रही है। अब स्कूल स्तर से ही नौजवानों को रोज़गार परक व्यावसायिक शिक्षा दी जाएगी। अभी एक वैबिनार में मोदी जी ने भी कहा कि भारत के नौजवानों को ऐसी नई शिक्षा दी जाएगी कि वे रोज़गार मांगने की जगह रोज़गार देने वाले बन जाएंगे।बात सुनने में बहुत अच्छी लगती है, और वह भी एक ऐसे देश में जिसकी आधी आबादी काम मांगते नौजवानों की हो। ऐसे देश में कि जहां कोरोना महामारी से पहले ही बेकारी की दर पिछले पैंतालिस बरस के शीर्ष पर अर्थात् 6.1 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी। फिर आई कोरोना महामारी व पूर्णबंदी के चार चरणों में शहरों का उखड़ता व्यवसाय, लोगों की लगी लगाई छूट गई नौकरियों, में बदल गया। अनुमान के मुताबिक देश के गांवों से आये बारह करोड़ प्रवासी श्रमिक पूर्णबंदी के कारण काम से उखड़ गये। दस करोड़ के करीब गांवों की ओर वापस चल दिये परन्तु वहां कोई वैकल्पिक रोज़गार के साधन नहीं थे। सरकार पचास हज़ार करोड़ रुपये का सेवा रोज़गार अनुदान दे आंसू पोंछना चाहती है। गांवों में उचित ठौर नहीं मिला। अब देश के विकसित राज्यों में खेती का धान बीजने का खरीफ सत्र शुरू हो गया। सरकार ने सूक्ष्म, लधु और मध्यम उद्योगों के लिए बीस लाख करोड़ रुपये की अनुदान अनुकम्पा घोषित कर दी। उदार साख नीति की घोषणाएं रिज़र्व बैंक से आने लगीं। लो कामगार मझदार में खड़ा है। वह अपनी धरती अपने गांवों में वैकल्पिक रोज़गार की वय्वस्था का इंतज़ार करे या शहरों में लौट कर फिर उसी पुरानी ज़िन्दगी की राह टटोले। इस बीच आ गई नई शिक्षा नीति की घोषणा, जो दावा कर रही है कि बेकार युवा शक्ति को इस योग्य बना देगी कि वे घरों से उखड़ कर द्वार-द्वार नौकरी मांगते न दिखें बल्कि नौकरियां देने के काबिल हो जाएंगे। लक्ष्य बहुत अच्छा है निर्जीव होती युवा शक्ति को आत्म-विश्वास से भर देने वाला, लेकिन अभी तक नई शिक्षा नीति ने जो तेवर बदला है, उससे देश की शिक्षा को कम्प्यूट्रीकृत कर देने का तेवर है। शिक्षा को ऑनलाइन करने का रास्ता है और प्रत्यक्ष शिक्षा और ज्ञान आदान-प्रदान की जगह वैबिनार का विकल्प है। लेकिन भारत जैसे देश में दावा तो नौजवानों को नौकरी देने योग्य बनाने का है, लेकिन शिक्षा के आधुनिकीकरण और रोज़गार परक बनाने के जो नीतिगत तेवर हैं, क्या उन्होंने देश की अर्थ-व्यवस्था की मूल प्रकृति की पहचान की हैं? कोरोना महामारी के इन दिनों में एक बात स्पष्ट हो गई कि जब अर्थ-व्यवस्था को चौदह क्षेत्रों में से ग्यारह ने ऋणात्मक विकास दिखाया, उनकी विकास दर शून्य से नीचे चली गई, तब केवल हमारे देश की मूलत: कृषि व्यवस्था, खेती-बाड़ी और उससे जुड़ी सक्रियता ही थी जिसने देश को बचाया। कृषि में रबी सत्र में गेहूं की फसल और खरीफ में अब धान बीजने के लिए बढ़ता क्षेत्र बता रहा है कि इसने देश को इन बुरे दिनों में दुर्भिज्ञ ग्रस्त होने से बचाया है। विकास दर को शून्य तक नहीं जाने दिया और इसे 1.2 प्रतिशत तक टिकाये रखा। नई शिक्षा नीति के मानचित्र में नये रंग अवश्य भरे जाएं लेकिन अगर उसको नयी पीढ़ी को नौकरी मांगने नहीं, देने वाली बनाना है तो उसे कृषि क्रांति की ओर लेकर जाना होगा। देश में कृषि क्रांति की बातें आधी सदी से हो रही हैं। कभी हरी, कभी सफेद और कभी पीली और अब नीली क्रांति। लेकिन सब क्रांतियों का युवा पीढ़ी का गुड़ गोबर नारेबाज, भ्रष्ट व्यवस्था और पलायन करती हुई युवा पीढ़ी ने कर दिया। अब आधुनिक शिक्षण प्रशिक्षण का तेवर कृषि क्रांति आधारित  कुछ यूं बदलो कि उसके साथ ही कृषि आधारित मूलभूत उद्योगों का विकास भी हो जाए। यह नहीं कि कच्चा माल हमारा और विदेशी उसका प्रसंस्करण करके दुगने दाम हमें ही बेचें। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की विकास क्रांति का सपना देखने में कोई हानि नहीं लेकिन यह विकास बड़े-बड़े उद्योगों और देशी-विदेशी धनाढ्य घरानों का दुमछल्ला बन कर नहीं होगा। दिन रात अभूतपूर्व प्रगति के इन नारों में देश के बुनियादी उद्योगों का विकास नहीं हो रहा। नई नीति, नये शिक्षण प्रशिक्षण के साथ इनकी गिरती दर को रोकना होगा। कृषि और कृषि आधारित उद्योगों को जीवन दान देना होगा, तभी देश की युवा पीढ़ी नौकरी के लिए हाथ फैलाने की जगह नौकरी देने के काबिल हो सकेगी।