ढोल का पोल

अमृतसर, तरनतारन ज़िलों और बटाला में 30 जुलाई को हुए दुखद शराब कांड, जिसमें 113 के लगभग व्यक्ति मारे गये और अन्य कईयों की आंखों की रोशनी भी चली गई, के 9 दिनों के बाद 7 अगस्त को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने तरनतारन का दौरा किया। वह पीड़ित परिवारों से मिले और प्रत्येक प्रभावित परिवार को 5 लाख की राशि देने की घोषणा की। उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि ऐसा भयानक कांड करने वाले दोषियों को कड़ी सज़ाएं दी जाएंगी और उनकी सम्पत्तियां भी कुर्क की जाएंगी। गत सप्ताह भर से पंजाब की गलियों, बाज़ारों में इस कांड की गूंज सुनाई देती रही है। विपक्षी पार्टियों ने इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप स्थान-स्थान पर प्रदर्शन किये और धरने भी दिए। अधिकतर नेता अपनी-अपनी पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल लेकर राज्यपाल से भी मिले हैं। इस कांड की जांच सी.बी.आई. या हाईकोर्ट के किसी जज से करवाने की मांग के साथ-साथ मुख्यमंत्री को भी इस्तीफा देने के लिए कहा गया है। इन पार्टियों की युवा शाखाओं और कार्यकर्ताओं ने इन स्थानों से संबंधित विधायकों और मंत्रियों के घरों के समक्ष धरने भी दिये हैं। जहां दिन-प्रतिदिन इस मामले को लेकर सरकार के विरुद्ध माहौल गर्म किया जा रहा है, वहीं मंत्रियों और विधायकों द्वारा संयुक्त रूप में यह दोष लगाने शुरू कर दिए गए हैं कि विपक्षी पार्टियां जानबूझ कर माहौल को खराब कर रही हैं। दूसरी तरफ प्रशासन ने आरोपियों को पकड़ने के लिए पूरी सक्रियता ज़रूर दिखाई है। अब तक इस संबंधी डेढ़ हज़ार के लगभग मुकद्दमे दर्ज किए गए हैं। हज़ार के लगभग गिरफ्तारियां की गई हैं। छापामारी कर हज़ारों लीटर शराब और बड़ी संख्या में अल्कोहल तथा स्पिरिट पकड़ी गई है। मैथानोल और लाहन की बड़ी खेपें भी कब्ज़े में ली गई हैं। स्थान-स्थान पर चलती अवैध शराब की कुछ भट्ठियां भी पकड़ी गई हैं परन्तु सोचने वाली बात यह है कि ऐसी सक्रियता सरकार ने पहले क्यों नहीं दिखाई? गत 3 वर्ष से भी अधिक समय से राज्य में कांग्रेस सरकार बनी हुई है। लोगों ने अकाली-भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली से निराश होकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया था। उस समय मुख्यमंत्री सहित बड़े कांग्रेसी नेताओं ने बड़े बड़े-बड़े वायदे किए थे। उनमें से एक वायदा राज्य में फैले नशों के कारोबार को पूरी तरह से खत्म करने का भी था। यहां हम किए गए अन्य वायदों की बात नहीं करते परन्तु इस बात की पड़ताल की जानी बनती है कि तीन वर्षों के समय में सरकार इस क्षेत्र में अपना कितना प्रभाव दिखाने में सफल रही है? इस पूरे समय में व्यापक स्तर पर किए जा रहे  इस अवैध धंधे के समाचार भी आते रहे हैं।तालाबन्दी के दौरान ही शराब की फैक्टरियों से बिना सरकारी टैक्स के बड़ी मात्रा में शराब चोर रास्तों द्वारा लोगों तक पहुंचाई जाती रही है। उससे पूर्व कई स्थानों पर शराब की अवैध फैक्टरियों को भी पकड़ा गया था। राज्य में अवैध शराब बनाने वाली भट्ठियों का उठता धुआं हर कोई देखता रहा है। सुबह के समय या खास तौर पर सायं के  धुंधलके में इस धंधे में व्यस्त हज़ारों ही व्यक्ति रूड़ी मार्का या अलग-अलग रसायनों से तैयार की गई कच्ची शराब गांवों व शहरों में बेचते रहे हैं। सरकार बनने के बाद पहले-पहले तो सिंथैटिक और अन्य नशों को नकुले डालने के लिए बड़े यत्न किए गए थे। पुलिस की विशेष टीमें भी बनाई गई थीं परन्तु बाद में इन मामलों के विस्तार समक्ष आने से यह ताना-बाना इतना उलझा दिखाई दिया कि सरकार और प्रशासन ने इससे आंखे फेर लीं और यह काला धंधा व्यापक स्तर पर चलता रहा। इससे प्रशासन, पुलिस और छोटे-बड़े राजनीतिज्ञों के किसी न किसी रूप में तार जुड़े रहे। इस धंधे में लगे व्यक्तियों को पूरा पक्ष-पोषण किया जाता रहा।इसलिए इसका प्रसार लगातार बढ़ता रहा। इसलिए अब  कुछ सक्रियता दिखाने पर भी अवैध शराब की इतनी बड़ी खेपें समक्ष आ रही हैं। नि:सन्देह इसको लोगों के हितों को दृष्टिविगत करने वाली काफी देर से चलती आ रही राजनीति का ही एक हिस्सा कहा जा सकता है। चाहे आज इस कांड संबंधी कुछ राजनीतिज्ञों पर अंगुलियां उठाई जा रही हैं। आबकारी और पुलिस विभाग को भी कोसा जा रहा है। यह बात ठीक भी है परन्तु दशकों से चल रहे निरन्तर इस धंधे हेतु किस-किस को कोसा जाएगा? यह ऐसे प्रश्न हैं, जिनका हमारी आज की राजनीति और राजनीतिज्ञों को गम्भीरता से जवाब देना होगा। बिना बड़ी प्रक्रिया के पहले की तरह ही की जा रही नारेबाज़ी अपने समाज से एक और धोखा ही साबित होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द