संकटों को अवसरों में बदलने से ही मिलती है सफलता

कहते हैं कि मनुष्य अपने मन की सोच के अनुसार अपना काम करने की दिशा तय कर लेता है, मतलब यह कि परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल लेता है। जो ऐसा नहीं  कर पाते, वे समय को भलाबुरा कहने और अपने भाग्य को कोसने लगते हैं। विलियम शेक्सपियर की कालजई रचनाएं उस समय फैली महामारी के दौरान अकेलेपन को अवसर में बदलने का परिणाम थीं, इसी प्रकार वैज्ञानिक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण, ऑप्टिक्स और कैलकुलस की खोज भी उस समय की महामारी में अकेलेपन को हराते हुए की थी। आज जो यह दुनिया भर में कोरोना के कारण हालात हैं, उसमें जिन्होंने वक्त की नज़ाकत समझते हुए अपने को बदल लिया, वे आगे चलकर बहुत नाम, पहचान, पैसा कमाने वाले हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
साहित्य और कला
यह एक सच्चाई है कि जब तक कहानी, उपन्यास, नाटक और फिल्मों जैसी रचनात्मक कृतियों की प्रशंसा, आलोचना नहीं होती, तब तक रचनाकार को संतोष नहीं मिलता और जब उसे अपनी रचना की अच्छाई या बुराई सुनने को मिलती है तो उसके लिए उससे बड़ा कोई पुरस्कार नहीं होता। अब क्योंकि ऑडिटोरियम, सिनेमा हाल और ऐसी जगहों पर आना-जाना संभव नहीं, जहां श्रोता और दर्शक जमा हो सकें, इसलिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अनेक ऐसे मंच सामने आए जहां अपनी बात कही जा सके और दूसरों की सुनी भी जा सके। ऐसा ही एक मंच ‘चाय वाय और रंगमंच’ के नाम से मुम्बई की एक संस्था कोकोनट थिएटर ने फेसबुक के ज़रिए उपलब्ध कराया जो अप्रैल के अंतिम सप्ताह से शुरू होकर अगस्त के पहले सप्ताह तक प्रतिदिन शाम को एक निश्चित समय पर थियेटर और वहां से निकलकर आए रंगमंच और  सिनेमा के प्रसिद्ध कलाकारों के न केवल अनुभव साझा करता रहा है, बल्कि अभिनय की बारीकियों, कलाकारों के चयन की प्रक्रिया, सेट बनाने, मेकअप की ज़रूरत, प्रकाश और ध्वनि से उपयुक्त प्रभाव पैदा करना, वेशभूषा और जो कुछ भी एक प्रस्तुति के लिए आवश्यक होता है, उसके विवरण और व्याख्या से इस अनूठे कार्यक्रम को प्रस्तुत करता रहा है।इसमें एक घंटे का समय एक व्यक्ति को अपनी बात रखने और दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए निर्धारित था। इस कार्यक्रम में भाग लेने वालों की संख्या बता पाना तो संभव नहीं, क्योंकि फेसबुक तो विश्वव्यापी है लेकिन जिसने भी इसे देखा होगा, उसे अवश्य ही बहुत सी ऐसी जानकारियां मिली होंगी जिनका इंतज़ार उसे रहता होगा। इसमें जिन लोगों ने अपनी बात कही उनमें शबाना आज़मी, शत्रुघ्न सिन्हा, सुभाष घई, इला अरुण, श्रेयस तलपड़े, राजपाल यादव, रीता गांगुली, राकेश बेदी सहित एक सौ दस ऐसी हस्तियां शामिल थीं, जिन्होंने रंगमंच को उसका वैभवशाली वर्तमान प्रदान किया। यह कार्यक्रम अपने-आप में एक तरह का ट्रेनिंग सैंटर बन गया, जहां बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इसी तरह  सेमिनार की जगह ले चुके वेबीनार के माध्यम से बहुत से विषयों पर विशेषज्ञों के विचार जानने और समझने तथा अपनी शंकाओं के समाधान का भी एक आधुनिक तकनीक पर  आधारित  मंच सुलभ हो गया है, जिसे ऑपरेट करना बहुत आसान है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
इस महामारी से निपटने के लिए जहां दुनियाभर में शोध हो रहे हैं, वहां जीवन को और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिदिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर विकसित नए उपकरण भी सामने आ रहे हैं। मिसाल के तौर पर पहले जिस वेंटीलेटर को अस्पताल में अंतिम उपचार के रूप में देखा जाता था, अब वह बहुत सामान्य सा उपकरण लगने लगा है। इसे बनाने के लिए कम्पनियों में होड़ लग रही है। इसी तरह पहले सैनेटाइज़र का इस्तेमाल बहुत विशेष परिस्थितियों में किया जाता था लेकिन अब यह रोज़ाना के काम आने वाली ज़रूरी वस्तु बन गया है। हमारी वैज्ञानिक प्रयोशालाएं इस बीमारी का इलाज ढूंढने के अतिरिक्त ऐसे रसायन, यन्त्र और फार्मूले विकसित करने में लगी हैं, जिनसे खेतीबाड़ी, बागवानी करना लाभदायक हो और जल, वन और पर्यावरण का संरक्षण भी हो। कुदरत ने नदी, नालों से लेकर समुद्र तक और खुले मैदान से लेकर पर्वत शिखरों तक को स्वच्छ और मनोहारी बना दिया है। इन प्राकृतिक संसाधनों को ऐसा ही बनाए रखने के लिए विज्ञान तो अपनी भूमिका निभा ही रहा है पर हम सब के लिए भी यह एक सबक है कि प्रकृति से छेड़छाड़ करने का परिणाम कितना घातक हो सकता है।
उद्योग और व्यापार
इस महामारी ने औद्योगिक नीतियों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के तौर तरीकों को भी उलट पलट दिया है। जिन उपायों को अपनाने से परहेज़ करते थे, अब वे ही सुगम और व्यावहारिक हो गए हैं। जैसे कि ऐसी मशीनों के इस्तेमाल का विरोध होता रहा था, जिनसे कामगारों की ज़रूरत कम होती हो लेकिन अब रोबोट से भी काम लेना ज़रूरी होता जा रहा है ताकि कम से कम लोग ही पूरा काम कर सके। इससे बेरोज़गारी बढ़ने और नौकरियों के अवसर कम हो जाने का खतरा तो बढ़ा है लेकिन साथ ही सोच बदलने तथा नए विकल्प तलाशने का मौका भी मिला है।
अंत में
इस महामारी ने कविता, चित्रकला के ज़रिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर दिया है। ऐसी ही एक रचना का आनंद लें।

इस कोरोना ने
कितने घर फूंके, कितने घर तोड़े हैं
इसने हम सबका, कैसे, भरोसा तोड़ा है
अपने ही घर में हमें, कैद कर छोड़ा है
अपनों को अपनों से, दूर कर छोड़ा है
जाने किस भेस में, आ जाये कोरोना
इस बात के डर से, पड़ रहा है जीना
आदमी ही आदमी से, घबरा रहा है
हर तरफ  कैसा ये, खौफ  छा रहा है
गुमां था जिन पर, कि वो हैं हमारे
कोरोना ने कर दिया, सबको किनारे
पहले बिमारी में, होती थी तिमारदारी
अब तो देखने से ही, बढ़ती है बिमारी
अकेले ही गुज़रती है, दिन रात सारी
इस महामारी की, है ये मजबूरी,
करदी है इसने, अपनों से दूरी 
कोरोना से लड़ने की, है जिद्द हमारी
हम सभी पड़ेंगे, कोरोना पर भारी

-रचनाकार फूलचंद