विरोध के स्वर

पंजाब में विगत लगभग साढ़े 3 वर्ष से कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार सत्तारूढ़ है। जब से यह सरकार सत्ता में आई है, विवादों एवं आलोचनाओं ने इसका पीछा नहीं छोड़ा। विधानसभा में भी आम आदमी पार्टी एवं अकाली दल (ब) के सदस्य भिन्न-भिन्न मामलों पर अपना विरोध प्रकट करते रहे हैं परन्तु सदन में कांग्रेस विधायकों की बहु-संख्या होने के कारण विरोध के स्वर धीमे ही सुनाई देते रहे हैं। प्राय: सरकार पर इस कारण अंगुलियां उठती रही हैं कि वह अपने किए वायदों को आधा-अधूरा ही पूरा कर सकी है। चाहे किसानों को उनके ऋण माफी संबंधी समय-समय पर चैक भी बांटे जाते रहे परन्तु यह कदम भी इस वर्ग को संतुष्ट नहीं कर सका।जितने ऋण माफ करने का उनके साथ वायदा किया गया था, वह क्रियात्मक रूप में पूरा नहीं हो सका। इसलिए उन्हें यह प्रतीत होने लगा कि चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी की ओर से किये गये वायदे पूरे न करके उन्हें धोखे में रखा गया है। पिछले कई दशकों से अनेक कारणों के दृष्टिगत प्रदेश की समकालीन सरकारों की आर्थिकता डावांडोल बनी रही है। सरकारें लम्बी अवधि से भारी ऋण के तले ही दबी रहीं। इस पक्ष से इस सरकार की स्थिति भी गम्भीर है। इसलिए विकास कार्य तेजी नहीं पकड़ सके।  प्रदेश आवश्यक प्राथमिक सुविधाओं से काफी वंचित दिखाई देता रहा है। वायदे के अनुसार यहां बहते नशे के दरिया को भी बांधा नहीं जा सका, न ही आवश्यक सामाजिक कार्यों में किसी प्रकार लोगों की भागीदारी ही करवाई जा सकी है। यह शिकायत कांग्रेसी कतारों के भीतर भी बरकरार रही है कि जन-प्रतिनिधियों  की पूछ-पड़ताल कम हो रही है तथा अफसरशाही का बोलबाला रहा है। यदि स्थिति यहां तक भी रहती, तो भी कुछ ढाढस बना रहता परन्तु इसी काल में पार्टी के अधिकतर निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों पर भी अंगुलियां उठना शुरू हो गई हैं। जन-हितों से निजी लालसाएं बहुत बढ़ गई हैं। अधिकतर प्रतिनिधियों में निजी लाभ प्राप्त करने की होड़ लग गई है। पूर्व सरकार की भांति ही रेत-बजरी एवं शराब का अवैध कारोबार सीमाएं लांगते हुए दिखाई दिया है। इस संबंध में विपक्षी पार्टियों एवं लोगों की आवाज़ें उठती रही हैं, परन्तु प्रशासन की ओर से उन पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। हालात ये बन गए कि पार्टी के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे। नवजोत सिंह सिद्धू जैसे व्यक्ति को सरकार से किनारा करने के लिए विवश होना पड़ा। पार्टी के भीतर उठने वाली आवाज़ों को चाहे दबाने का यत्न किया जाता रहा परन्तु सत्ता के गलियारों में धुआं निरन्तर उठते हुए दिखाई देता रहा। कोरोना महामारी के दौरान जन-प्रतिनिधियों में किसी प्रकार से लोगों की भागीदारी के संबंध में राजनीतिक उत्साह देखने को नहीं मिला। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी अपनी ही सरकार की खुलेआम आलोचना करते दिखाई दिए। अब यह धुआं और तीव्र होते दिखाई दे रहा है। पिछले दिनों हुए दुखद अवैध शराब कांड ने जहां सरकार की चिंताओं में वृद्धि की है, वहीं विपक्षी पार्टियां इस मामले को लेकर पूरी तरह मैदान में उतर आई हैं। इसी समय दो पूर्व पार्टी अध्यक्षों एवं राज्यसभा के सदस्यों ने तो एक प्रकार से विद्रोह का ध्वज ही उठा लिया है। प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो ने पिछले दिनों राज्यपाल के साथ भेंट करके उन्हें जो पत्र सौंपा है, उसने पार्टी और सरकार दोनों की कठिनाइयों को और बढ़ा दिया है। जिस प्रकार के आरोप इन नेताओं ने अपनी ही सरकार पर लगाए हैं उनसे प्रतीत होता है कि वह भी एक प्रकार से विपक्ष में ही जा खड़े हुए हैं। इसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप सुनील जाखड़ के नेतृत्व में पार्टी के भीतर से उनके विरुद्ध जो बयानबाज़ी की जाने लगी है, उसने जहां पार्टी में भारी हलचल पैदा कर दी है, वहीं सरकार की चिन्ताओं में भी वृद्धि हुई है। ऐसी स्थिति में सरकार की कार्यशैली पर और भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है जो सरकार की छवि को और धूमिल करने में सहायक होगा। ऐसे में प्रदेश के लोग निराशा की स्थिति में और भी भौंचक्क हो गए दिखाई दे रहे हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द