मीरा कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहती है बिहार कांग्रेस 

राष्ट्रीय जनता दल तथा लोक जनशक्ति पार्टी बिहार विधानसभा चुनावों की तारीख को स्थगित करने की मांग कर रही हैं। आर.जे.डी., विशेष तौर पर लालू प्रसाद का परिवार, इस मामले पर बंटे हुए हैं। लालू इस विवाद को सुलझा सकते थे परन्तु इस समय वह अभी भी जेल में हैं। दूसरी तरफ बिहार के कांग्रेसी नेता पार्टी हाईकमान को यह मनाने में व्यस्त हैं कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को बिहार में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में आगे लाया जाए और वह आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व करें। उन नेताओं का मानना है कि प्रौढ़ दलित नेता तथा स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम की बेटी नीतिश कुमार को लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव से अधिक कड़ी टक्कर दे सकती हैं। वर्तमान समय में नीतिश कुमार की लोकप्रियता का ग्राफ सबसे नीचे है। बिहार में अब यह माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री महामारी के साथ निपटने में असफल रहे हैं। हालांकि, यदि मीरा कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाता है तो कांग्रेस को पड़ोसी राज्यों में भी लाभ मिलेगा, विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के उप-चुनावों में। आर.जे.डी. से गठबंधन के प्रश्न पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि यदि आर.जे.डी. मीरा कुमार को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने को तैयार है तो वे गठबंधन करके ही चुनाव लड़ेंगे, नहीं तो कांग्रेस अन्य रास्ता अपना सकती है। 
अमर सिंह की शख्सियत
राज्यसभा सदस्य अमर सिंह का गत 1 अगस्त को गुर्दे खराब होने के कारण सिंगापुर के एक अस्पताल में 64 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिसके बाद ‘सियासी फिक्ंिसग’ आसान लगने लगी है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस की विद्यार्थी इकाई से की थी, परन्तु उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव के साथ दोस्ती के बाद बड़ा प्रभाव बना लिया था। उन्होंने अपनी नैटवर्किंग निपुणता का प्रयोग करते हुए तरक्की की। दरअसल, अमर सिंह के प्रभाव में ही समाजवादी पार्टी के प्रमुख ने एक देसी समाजवादी  होते हुए भी बालीवुड की कला रसिक हस्तियों तक पहुंच बनाई। अमर सिंह की अनिल अम्बानी से भी अच्छी जान-पहचान थी। इसके अतिरिक्त अमर सिंह के सोनिया गांधी के साथ भी अच्छे संबंध थे। जब यू.पी.ए.-1 की सरकार के समय अमरीका के साथ परमाणु समझौते के मामले पर वामपंथियों ने गठबंधन छोड़ दिया था तो अमर सिंह का सरकार गिरने से बचाने में बड़ा योगदान था। चाहे मुलायम सिंह अमर सिंह के सबसे नज़दीकी राजनीतिज्ञ थे परन्तु फिर भी उनमें अक्सर लड़ाई हो जाती थी और अमर सिंह को दो बार पार्टी से निकाला भी गया था। 
ज्योतिरादित्य तथा कांग्रेस की दशा
मध्य प्रदेश में किस्मत के सितारे न तो कांग्रेस के पक्ष में हैं और न ही अकेले पड़ गये ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा उनके समर्थकों के पक्ष में हैं। पहले, कमलनाथ तथा दिग्विय सिंह ने मध्य प्रदेश में ऐसी राजनीति खेली कि सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा का दामन थाम लिया। अब, दिग्विजय सिंह का पुत्र जयवर्धन सिंह कमल नाथ के पुत्र नखुल सिंह के साथ लड़ रहा है ताकि कांग्रेस की भावी पीढ़ी की लीडरशिप का फैसला किया जा सके। इसके अतिरिक्त प्रियंका गांधी वाड्रा तथा राहुल गांधी के करीबी तथा कमल नाथ की सरकार में मंत्री रहे जीतू पटवारी के समर्थकों ने नारा दिया है, ‘न राजा, न पटवारी, अब की बार जीतू पटवारी।’ कांग्रेस में युवा नेताओं में सख्त लड़ाई चल रही है और वरिष्ठ नेता इस लड़ाईर् के समाप्त होने का इन्तज़ार कर रहे हैं ताकि लड़ाई के विजेता पर दांव खेला जा सके। दूसरी तरफ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जिन्होंने इस उम्मीद में भाजपा का दामन थामा था कि उनको जल्द ही मोदी की सरकार में जगह मिलेगी परन्तु अभी तक ऐसा नहीं हो सका। सिंधिया के समर्थक सोच रहे  हैं कि वे जल्द ही असैंबली में पुन: प्रवेश करेंगे परन्तु कोविड-19 के कारण उप-चुनावो स्थगित कर दिए गए हैं। दूसरी तरफ मोदी मत्रिमंडल का विस्तार 5 अगस्त के राम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम के कारण स्थगित कर दिया गया था। 
यू.पी.ए. कार्यकाल पर निशाना
अब जब राहुल गांधी के समर्थकों ने पार्टी को कमजोर करने के लिए संयुक्त प्रतिशील गठबंधन की सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंत्रियों को ज़िम्मेदार ठहराया है तो कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी 2004-2014 की कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के बचाव में उतर आए हैं और आरोप लगाया है कि यह भिन्न-भिन्न पार्टियां द्वारा कांग्रेस को बदनाम करने की मुहिम है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई राज्यसभा सदस्यों की एक बैठक में नये सदस्य राजीव सातव ने कांगे्रस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा यू.पी.ए. कार्यकाल पर आरोप लगाते हुए 2019 की हार के लिए मंथन करने की मांग का विरोध किया। हालांकि, कांग्रेसी नेता मुनीश तिवारी ने लीडरशिप   के मुद्दे का समाधान करने पर ज़ोर दिया।