पागल हो जाऊंगा मैं!

फरवरी में मैं कुछ दिन लुधियाना रहने गया। महल नुमा भव्य कोठी व आगे पीछे घूमते नौकरों के बावजूद मेरा मन नहीं लगा। कनाडा से वाया चीन होकर एक बाप बेटा आए हुए थे। एक दिन बाप और दूसरे दिन बेटा मुझे लम्बी सैर पर ले गये। दोनों ने दिल में दबाकर रखी हुई एक बात बताई ’आप्पां तां टॉयनाल गोलियां दा स्टाक रखिया..... जदों शरीर ने लल्ला भब्बा कीता....खाके मर जाणा....।’ मैं बात सुनकर स्तब्ध रह गया। मैं तो समझता था कि कनाडा फलों और फूलों का देश है व वहां डॉलराें की वर्षा होती है । कनाडा में सिर्फ  स्माइल होती है, स्ट्रैस नहीं। मैंने बाप बेटे को हौसला दिया व प्रांजिल पाटिल, अरुणिमा सिन्हा व कुलविंदर कौर की कहानी सुनाई। प्रांजिल पाटिल भारत की प्रथम दृष्टि बाधित आई.ए.एस. अधिकारी है। बचपन में आँख में पेंसिल लगने के कारण उसकी रोशनी चली गई। अरुणिमा कृत्रिम टांग के सहारे माउंट ऐवरेस्ट पर जा  चढ़ी। पंजाब की बेटी कुलविंदर कौर जज है। स्कूल के दिनों में टोका मशीन ने उसको दिव्यांग बना दिया था । 
फरवरी तक मैंने भी बड़े बड़े प्रवचन दिए। मार्च में कोरोना कहर ने दस्तक दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकाएक यह कह दिया, ‘जो जहां है, वहीं रहे।’ देखो मित्रो, सफेद दिन हों या काली रात मैं कभी डरा नहीं, न ही मैंने सत्य को कभी छोड़ा। वास्तविक सत्य यह है कि मुझे प्रोफैसर जसविन्दर भल्ला ने डरा दिया। कॉमेडियन भल्ला ने एक विडियो में कहा, ‘बचेगा वो जो डरेगा।’ मेरा मज़ाक मत उड़ाना....प्लीज़। 
मैं कोरोना कहर से बेहद आतंकित हो गया। मैंने सर्वप्रथम दोनों गरीब नौकरानियों की छुट्टी कर दी। कर्फ्यू के दौरान सिर्फ दोस्ती की गेंडा मार्का फिनायल से झाड़ू पोंछा खुद करना शुरू किया। जिस दिन झाड़ू पोंछा हो जाता, ब्रेकफास्ट छूट जाता। जिस दिन ब्रेकफास्ट बनता, झाड़ू पोंछा रह जाता। जिस दिन लिखने लगते झाड़ू पोंछा और ब्रेकफास्ट दोनों रह जाते । कोरोना के आतंक ने एक टब वाली उलझन भी पैदा करदी।  फल सब्जियों की धुलाई कई दिन सर्फ  से की, फिर एक दिन डॉक्टर की सलाह के पश्चात फलों और सब्जियों को गर्म पानी व सिरके में धोना शुरू किया। मॉस्क व सेनेटाइजर का चैप्टर बड़ी मुश्किल से समझा था कि योग गुरु ‘पेट कटा शा’   ने एक नया आदेश दे दिया। रात को इलाइची, अजावाइन, दार चीनी, सूंड, मुलट्ठी, लौंग , तुलसी इत्यादि को एक किलोगा्रम पानी में भिगो कर रखो । सुबह सिम गैस पर उबालो..... जब 250 ग्राम रह जाए तो पी लो। कोरोना घर में प्रवेश कर ही नहीं सकता। मुश्किल से सामान एकत्र करके काढ़ा तैयार करना सीखा था कि एक प्रख्यात डॉक्टर ने  ‘घोटने का कमाल’ करने की सलाह दी। डॉक्टर ने बताया कि घोटने का कमाल तो कोरोना को मोहल्ले में ही नहीं आने देगा। मैंने रात को मखाने , खसखस, बादाम, अखरोट, काली मिर्च को भिगोकर रखना शुरू किया। जब तक काढ़ा तैयार, मैं घोटने से तमाम चीजों का रगड़ लेता हूं। प्रत्येक दिन काढ़े के पूर्व घोटना प्रशाद खा रहा हूं। कोरोना का टीका अभी आया नहीं मगर कोरोना कर्फ्यू के दौरान मित्र बाबू राम जम्मू वाले एक कैनी सरसों के तेल की दे गए। उनकी सलाह मानते हुए मैंने पंद्रह मई तक धूप स्नान किया। तेल लगाकर धूप में बैठने से विटामिन डी मिलता है जो शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है । पिछले दिनों मेरे पुराने जानकार ‘श्री श्री भुख दा फूफड़’ का फोन आया। उन्होंने कहा कि कोरोना से बचाव का उनके पास  बड़ा ही चमत्कारी देसी उपचार है।  अगले ही दिन मैंने उनके दरवाजे पर जाकर दस्तक दे दी । उन्होंने मुझे दो किलोग्राम देसी गाय का घी दिया, और कहा, बेशक बाज़ार में बिना मॉस्क के घूमो। भीड़ में डड्डू-छड़प्पे लगाओ। बस, स्नान के बाद यह घी नाक, धुन्नी व मल वाले स्थान पर मलना है । भेंट मात्र 2500/- वो भी सिर्फ  आपके लिए। मेरे मन को सबसे बड़ी चोट सरकारी छूतछात के सैलाब से लगी है। बैंक, कार्यालय, तहसील,अस्पताल,रेलवे स्टेशन, डाकघर कहीं भी चले जाओ, आदमी को ‘ट्रकॉलोजी’ इंजैक्शन लग रहा है । सरकारी कर्मचारी यह समझते हैं कि आने वाला पक्का कोरोना पॉजिटिव है। एक जिंदगी, 36 झंझट । इधर जिंदगी के हालात ऐसे हो गये हैं कि जैसे कुत्ता कपास में फंसा हुआ हो। अत्यंत मानसिक परेशानी में किसी अपने को आमंत्रित करने के लिए जब भी फोन करो, कोविड 19 कथा शुरू हो जाती है। फोन की रिंग आने-जाने से पूर्व मिनट-डेढ़ मिनट की लैक्चर-घुट्टी पीना पड़ती है। बड़ी कोफ्त होती है, परन्तु कुछ भी नहीं कर सकते।’कोरोना कहर का एक लाभ जरूर हुआ है। मैंने सौ प्रतिशत शुद्ध सच बोलना सीख लिया है। मिलावट की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं। मैंने एम.ए. लोक प्रशासन की है। मैं आभारी हूं मास्टर नानक सिंह जी का जिन्होंने आठवीं की बोर्ड की परीक्षा में मुझे खूब नकल करवाई। अगर मास्टर हरदीप सिंह वड़ैच न होते तो मैं कभी भी दसवीं की परीक्षा पारित नहीं कर सकता था। मैं आभारी हूं  प्रोफेसर हेमंत शर्मा, चद्रमोहन महाजन जिन्होंने धक्का लगा लगा कर एम. ए. करवाई। मित्रो! अगर पर्चियों के बिना सत्तर वर्षों में पर्चे हुए होते तो महामारी में इतना अप्रबंधन न होता। मैरिट तो बहुत पीछे है यहां। मेरे जैसे एम. ए. वाले ’ ऐवें’ ‘भोंपू’ बजा रहे हैं।

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