...ताकि रोज़गार के अभाव में किसी को पलायन न करना पड़े

माह नवम्बर-दिसम्बर 2019 के बाद चीनी कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुए हालात के कारण अन्य राज्यों में रह रहे श्रमिकों को अपने पैतृक गांव व परिवार याद आए। गांव में व्यक्ति की जड़ें होती हैं। राज्य सरकारों ने ऐसे कामगारों के लिए जीविकोपार्जन के लिए अनेक विकल्प खोल दिए तथा उन्हें वापस रेल व बसों के द्वारा बुलाया गया। स्थिति सुधरने पर पुन: वे उसी काम या अन्य काम पर वापस जाना चाहते हैं तो वे इसके लिए स्वतंत्र हैं। यह प्रत्येक राज्य सरकार का कर्त्तव्य व दायित्व है कि कोई श्रमिक इसलिए अन्यत्र (परदेस) न जाए कि उसे अपने गांव में रोजगार का अभाव या कोई अन्य कठिनाई थी। यह श्रमिक शक्ति वही है जिसके आधार पर रहते हुए ही पंजाब व हरियाणा के खेत लहलहाते हैं तथा मुम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत, फरीदाबाद आदि शहरों में औद्योगिक पहिया घूमता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने स्पष्ट किया है कि इस शक्ति का प्रयोग प्रदेश के आर्थिक विकास में किया जाएगा। वह कृषि क्षेत्र व औद्योगिक इकाइयों में इस शक्ति के कौशल का प्रयोग करने की कार्य योजना बना रहे हैं। मुख्यमंत्री जी को यह भरोसा है कि सभी वापस आए श्रमिक गांव में रह कर ही संतुष्ट रह सकें तथा वांछित रोजगार प्राप्त कर सकें परन्तु गांव में ही रुकना उनके लिए बिल्कुल बाध्यकारी नहीं होगा। यदि प्रदेश की श्रमिक शक्ति दूसरे राज्यों में जाकर उत्पादन व विकास कार्य करती है तो करे। इससे देश का ही विकास होगा क्योंकि दूसरा राज्य भी भारत का अभिन्न अंग है। अपने गांव वापस लौटे श्रमिकों के पास अभी रोजगार, आवास तथा भोजन की तात्कालिक समस्या प्रशासन व गांव के प्रधान मिल कर करें। सरकारी व गांव के लोग ऐसे श्रमिकों की जरूरतों का यदि ध्यान ढंग से रख पाएंगे तो सभी कठिनाइयों को दूर किया जा सकेगा। वापस आए ऐसे श्रमिकों को अपनी खेती व खलिहानों को पूरे मनोयोग से संभालना चाहिए।अप्रैल-मई 2020 में गांव वापस आए श्रमिकों के सामने स्वयं के परिवार, मोहल्ला व गांव स्तर पर ही विभिन्न प्रकार के विवाद उत्पन्न होने शुरू हो गए हैं तथा कुछ विवाद पुलिस के पास भी पहुंच रहे हैं। सरकारें विभिन्न उपायों के माध्यमों से ऐसे श्रमिकों हेतु रोजगार उत्पन्न करवाने की भरसक कोशिश कर रही हैं। श्रमिकों की स्किल मैपिंग करके उनकी योग्यता व कुशलता का लेखा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश की पांच लाख औद्योगिक इकाइयों ने लगभग 5 लाख श्रमिकों की मांग की है। इसके अलावा कृषि, मनरेगा व कुटीर व निजी उद्योग भी अच्छे विकल्प साबित हो रहे हैं जिनको अपनाकर वापस आए श्रमिक सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इसमें सरकार भी सहयोग दे रही है। सरकार के आश्वासन, मंशा और योजना पर अविश्वास करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता है। अभी श्रमिक मनरेगा योजना में बाढ़ नियंत्रण, जल स्रोतों, जल संरक्षण, नदियों का जीर्णोद्धार, सिंचाई व वृक्षारोपण, भूमि का समतलीकरण इत्यादि विकास कार्यों में ही रोजगार प्राप्त कर सके हैं। मनरेगा के अंतर्गत रोजगार देने के मामले में उत्तरप्रदेश को देश में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। प्रत्येक श्रमिक को प्रतिदिन 201 रुपये मानदेय दिया जाता है तथा मनरेगा में सौ मानव दिवस सृजित करने की व्यवस्था है परन्तु अभी औसत रूप से 45 मानव दिवस ही सृजित किए जा सके हैं। इस परिस्थिति में श्रमिकों को आर्थिक सहारा प्रदान कर पाना बहुत कठिन हो गया है। सरकार शीघ्र ही 45 के स्थान पर 8० मानव दिवस सृजित करने के भरसक प्रयास कर रही है। केन्द्रीय रोजगार गांरटी परिषद के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित के अनुसार मनरेगा से कृषि व कुटीर उद्योगों को जोड़ा जाना भी आवश्यक है। तभी ग्रामों का भला हो सकेगा। उत्तरप्रदेश सरकार इन श्रमिकों के लिए माइग्रेशन कमीशन का गठन भी कर रही है जिसमें कुशलता के आधार पर श्रमिकों का पंजीकरण होगा जिससे किसी भी श्रमिक का उत्पीड़न न हो सके। मुख्यमंत्री योगी जी का मानना है कि ये हमारे लोग हैं, इसलिए अब कोई राज्य वापस इन्हें बुलाना चाहे तो इनके सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के साथ ही सारे अधिकार उन राज्यों को सुनिश्चित करने होंगे। उत्तरप्रदेश खुले दिल से अपने प्रवासी श्रमिक भाई-बहनों का गृह प्रदेश में ही आजीविका के वायदे के साथ स्वागत कर रहा है। श्रमिकों के लिए अब आगे देखने का समय है। उन्होंने यह भी स्वयं तय करना निश्चित कर लिया है कि क्या वे अपने स्वयं के गांव में रह कर इतना भी नहीं कमा सकते जितना कि वे परदेस में कमाते थे? सरकार इन सबका पंजीकरण करवा कर श्रमिकों के कौशल का सम्मान करते हुए प्रदेश के विकास में उनका सहयोग प्राप्त करने के लिए कृत संकल्पित है।