रेल पटरियों पर दौड़ने लगी किसान बेहतरी की उम्मीद 

7 अगस्त, 2020 को देश की पहली किसान ट्रेन महाराष्ट्र में देवलाली से बिहार स्थित दानापुर के लिए रवाना हुई। इस ट्रेन का लंबे अर्से से इंतजार किया जा रहा था। यह वही किसान ट्रेन है, जिसका वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में उल्लेख किया था। देश की यह पहली किसान ट्रेन फल और सब्जियां ढोयेगी। हालांकि फलों की ढुलाई करने वाली कई विशेष ट्रेनें पहले से ही चल रही हैं, लेकिन यह ट्रेन इस मायने में विशिष्ट है  क्योंकि यह उस योजना का हिस्सा है जिस पर चलकर 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य है। 
गौरतलब है कि हिंदुस्तान चीन के बाद दुनिया में दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा फल और सब्जियां उत्पादक देश है। इस साल जून में कृषि मंत्रालय द्वारा अनुमान लगाया गया था कि फलों और सब्जियों का सकल उत्पादन 320.48 मिलियन टन यानी 32 करोड़ टन से ज्यादा होगा, जो कि पिछले साल के मुकाबले करीब 3 फीसदी ज्यादा है। इसकी वजह अच्छे मानसून की भविष्यवाणी है। भारत में जितनी सब्जियाें और फलों का उत्पादन होता है, अगर इतना ही उत्पादन अमरीका के किसान करें तो उन्हें भारतीय किसानों के मुकाबले करीब 700 फीसदी से ज्यादा आर्थिक लाभ हो।कहने का मतलब यह कि भारत में किसान सिर्फ  इसलिए गरीब नहीं हैं कि वे उत्पादन कम करते हैं बल्कि गरीबी के कई कारण हैं जिनको अगर दूर कर दिया जाए तो सचमुच भारतीय किसानों की आर्थिक आय में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इसकी शुरुआत बाजार से पहले समाज के भीतर से करना होगा। उसकी वजह यह है कि चीन में सब्जियां उगाने वाले किसान न सिर्फ  आर्थिक दृष्टि से अच्छी स्थिति में हैं बल्कि उनका सामाजिक स्तर भी दूसरे लोगों से बेहतर है जबकि भारत में इसके उल्टा है। भारत में सब्जी उगाने वाले किसान अगर स्थितियां सही रहें तो कमाई भले कुछ बेहतर कर लें, लेकिन सब्जियां उगाने वाले किसानों का सामाजिक स्तर, पारम्परिक गेहूं, धान और गन्ना उत्पादन करने वाले किसानों से नीचा रहता है। यह एक ऐसी सामाजिक विकृति है जिसके कारण सर्वाधिक नकदी आय देने वाली सब्जियों के उत्पादन से उच्च जाति के किसान कतराते रहे हैं। वास्तव में हमारे यहां किसानों की आर्थिक दुर्दशा के कई सारे समीकरण हमारी सामजिक व्यवस्था से जाकर जुड़ते हैं। बहरहाल मौजूदा केंद्र सरकार ने अगले दो सालों के भीतर किसानों की आय को दोगुना करने का जो संकल्प लिया है, उस प्रक्रिया में यह किसान ट्रेन उम्मीदों की एक नयी रफ्तार बनकर किसानों की जिंदगी को बदल सकती है। फिलहाल यह ट्रेन एक महीने के ट्रायल पर चलेगी और इसकी फ्रीक्वेंसी साप्ताहिक होगी, लेकिन अगर इसे अच्छा रिस्पोंस मिला तो यह ट्रेन सप्ताह में कई दिन या फिर हर दिन भी चल सकती है। इस ट्रेन में महाराष्ट्र से अंगूर, प्याज, केले और कुछ और स्थानीय फल, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आएंगे जबकि पान, मखाना और कई तरह की ताजा सब्जियों के अलावा मछलियां बिहार से महाराष्ट्र जाएंगी। यह ट्रेन, स्पेशल पार्सल ट्रेन की तरह होगी। इसमें किसान और व्यापारी अपनी इच्छा के अनुरूप रियायती भाड़े पर माल का लदान कर सकेंगे। इसका भाड़ा किस कदर रियायती होगा, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ट्रक से माल भिजवाने में प्रति क्ंिवटल जो दर आती है, उस दर के करीब एक चौथाई भाड़ा इस ट्रेन में वसूला जायेगा। इस ट्रेन का इस्तेमाल करने के चलते किसान मंडी कानून के तमाम झंझटों से मुक्त हो जाएंगे। यह ट्रेन किसानों को आढ़तियों और बिचोलियों के शोषण से भी मुक्त करेगी।  इसलिए यह ट्रेन पूरी तरह से रेल की पटरियों पर दौड़ती हुई कोल्ड स्टोरेज होगी यानी इसमें लदी सब्ज़ियां कई दिनों तक बिल्कुल तरोताज़ा रहेंगी। अगर यह पहली किसान ट्रेन सफल रहती है तो अगले एक दो साल में ऐसी सैकड़ों ट्रेनें देश के एक कोने से दूसरे कोने तक के लिए चल सकती हैं, जिससे किसानों का उत्पादन सीधे उन लोगों तक पहुंचेगा, जो वास्तविक खरीदार हैं। अगर सब कुछ सही रहता है, किसान ट्रेन उम्मीद के मुताबिक सफल होती है तो ऐसी सैकड़ों नयी ट्रेनों के लिए रास्ता खुल जायेगा और इस रास्ते के साथ ही किसानों की आय में भी वृद्धि का बड़ा रास्ता खुल जायेगा। इसके चलते फल और सब्जियां उत्पादन करने वाले किसान भी दुग्ध क्रांति और नीली क्रांति के  हिस्सेदार किसानों की तरह ही लाभान्वित होंगे।

 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर