प्रेम और भक्ति के पोषक कृष्ण

 श्री कृष्ण को प्रेम और भक्ति का पोषक कहें तो गलत नहीं होगा। उनके जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी का पर्व बहुत ही आस्था व विश्वास के साथ मनाया जाता है। मथुरा नगरी में  कंस के कारागार में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए थे। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि  थी। चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है। अष्टमी दूसरे दिन से पूर्व की आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।   अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा जबकि वैष्णवों के मत के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अगले दिन मनाई जाती है  क्योंकि वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं। वैष्णव वे लोग हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बतलाए गए नियमों के अनुसार विधिवत दीक्षा ली होती है। ये लोग अधिकतर अपने गले में कण्ठी माला पहनते हैं और मस्तक पर विष्णुचरण का टीका लगाते हैं। इन वैष्णव लोगों के अलावा सभी लोगों को धर्मशास्त्र में स्मार्त कहा गया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वे सभी लोग, जिन्होंने विधिपूर्वक वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है, स्मार्त कहलाते हैं। इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करना चाहिए। उपवास वाले दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें। हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से छिड़ककर कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें। साथ ही भगवान श्री कृष्ण और माता देवकी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमश: लेते हुए विधिवत पूजन करें। यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है, उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा कि न देवकी होगी, न उसका कोई पुत्र होगा।वासुदेव  ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैं इसकी आठवीं संतान को स्वयं तुम्हें सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहां आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन  होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। तब कंस ने देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मारना शुरू कर दिया।परन्तु जब भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव  ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और देवी का रूप धारण कर बोली, मुझे मारने से क्या लाभ? तुझे मारने वाला तो जन्म ले  चुका है। कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर श्री कृष्ण ने कंस को मारकर अपने नाना उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया। जन्माष्टमी पर देश के सभी मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियां सजाई जाती हैं।  भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।