आज़ाद भारत की ‘आज़ाद महिला’

हर वर्ष 15 अगस्त को हम आज़ादी दिवस का जश्न मनाते हैं। अपने बच्चों को आज़ादी की लड़ाई की गाथाएं सुनाते हैं, शहीदों की कुर्बानियों को याद करते हैं, ध्वज लहराते हैं, लेकिन समाज की हालत को देखते हुए हर आज़ादी दिवस के मौके पर कुछ सवाल स्वत: हमारे सामने आ खड़े होते हैं। जैसे कि क्या हम सचमुच आज़ाद हैं, क्या हमारी नारी आज़ाद है?  महिला के संदर्भ में आज़ाद शब्द सुनते ही हर किसी के मन में इसके भिन्न अर्थ निकलते हैं। कुछ लोग इसे नकारात्मक अर्थों में देखने लगते हैं। आज़ादी से यह अभिप्राय नहीं है कि नारी अपनी मन-मर्जी करे, जो दिल में आए करे। अपितु आज़ाद महिला  से अभिप्राय है कि समाज में महिला को उसका समुचित स्थान मिले, उसके अधिकार मिलें, उस पर होते अत्याचार खत्म हों। अपने स्वप्न पूरे करने के लिए उसके पास रास्ते हों। वह निडर होकर बिना किसी झिझक के घर की चारदीवारी से बाहर निकले और ऊंची मंज़िलों को  बिना रुकावटों के हासिल करे। 
लेकिन इन पक्षों के संबंध में समाज पर नज़र डालें तो 74वें आज़ादी दिवस पर भी महिला की स्थिति अधिक सुधरते हुए दिखाई नहीं देती। उसके विरुद्ध दिन-प्रतिदिन अपराध बढ़ते जा रहे हैं। दिन हो या रात, एक महिला अकेले पैदल चले या स़फर करे, हर समय मन में डर रहता है कि सही-सलामत अपनी मंज़िल पर पहुंचेगी कि नहीं। छोटी बच्चियों से लेकर बड़ी उम्र की महिलाओं तक कोई भी सुरक्षित नहीं। भरे बाजार, भरी गाड़ियों यहां तक कि भरे होटलों में भी महिला  का शोषण होता है, और इन्साफ की प्रतीक्षा इतनी लम्बी होती है कि हिम्मत टूट जाती है। इतनी कठिनाइयां आती हैं कि कई बेचारी तो डर के मारे अपना मुंह तक नहीं खोलतीं। कुछ लोग पाठ-पूजा और दान आदि करने में तो कमी नहीं छोड़ते लेकिन महिला को निम्न नज़र से देखते हैं। असली दान और पाठ-पूजा यह है कि जब महिला को हर कोई इज़्ज़त, आदर  और पूरा मान-सम्मान प्रदान करे। 
अक्सर यह भी देखा जाता है कि अगर कोई लड़की समाज में अपना स्थान बनाने का प्रयास करती है तो उसके बारे यह कहा जाता है कि वह बहुत आज़ाद विचारों वाली है और स्वतंत्र रहना चाहती है। आज़ाद शब्द को अधिकतर नकारात्मक तरीके के साथ प्रयोग किया जाता है, लेकिन चाहिए तो यह कि घरों में, समाज में लड़की को बचपन से  आज़ादी के साथ विचरण करने की शिक्षा दी जाए और इसके लिए घर में समुचित माहौल बनाया जाना चाहिए। आज़ादी के साथ विचरण  करने का अर्थ है महिला अपने-आप को अच्छे ढंग के साथ अभिव्यक्त कर सके, मानसिक तौर पर मज़बूत हो, अपने अंदर आगे बढ़ने की ताकत रखे और अपने पांव पर खड़ी हो तथा अवरोधों के बिना अपने स्वप्न पूरे कर सके। जब समाज के हर घर में, हर कोने में इस बात का दीप जलेगा तो वास्तविक अर्थों में भारत आज़ाद होगा लेकिन लगता है, ऐसा होने के लिए तथा महिला को अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए अभी बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। समाज द्वारा वास्तविक स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के लिए अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा।