रक्षा क्षेत्र में आत्म-निर्भरता की ओर भारत

घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के नज़रिए से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगाने की बड़ी घोषणा की है। इसी साल दिसम्बर से दिसम्बर 2025 तक इस घोषणा पर चरणबद्ध ढंग से अमल होगा। आयात किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, मिसाइलों, पनडुब्बियों और हैलिकॉप्टरों का निर्माण अब भारत में होगा। इस मकसद की पूर्ति के लिए आगामी 5-7 साल में घरेलू रक्षा उद्योग को करीब चार लाख करोड़ रुपए के ठेके मिलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ मंत्र के आह्वान के तहत रक्षा मंत्रालय अब रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में स्वदेशी निर्माताओं को बड़ा प्रोत्साहन देने की तैयारी में आ गया है। दरअसल अभी तक देश तात्कालिक रक्षा खरीद के उपायों में ही लगा रहा है, लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में दीर्घकालिक रणनीति के अंतर्गत स्वदेशी रक्षा उपाय इसलिए ज़जरूरी हैं, क्योंकि एक समय रूस ने हमें क्रायोजनिक इंजन देने से इन्कार कर दिया था। दूसरी तरफ  धनुष तोप के लिए चीन से जो कल-पुर्जे खरीदे थे, वे परीक्षण के दौरान ही खराब हो गए थे। 
पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान से युद्ध की स्थिति बने होने के कारण अनुमान है कि भारत 2025 तक रक्षा सामग्री के निर्माण व खरीद में 1.75 लाख करोड़ रुपए (25 अरब डॉलर) खर्च करेगा। वैसे भी भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा सामग्री उत्पादन कम्पनियों के लिए सबसे आकर्षक बाज़रों में से एक है। भारत पिछले आठ वर्षों में सैन्य हार्डवेयर के आयातकों में शामिल है। इन रक्षा ज़रूरतों की पूर्ति के लिए अमरीका, रूस, फ्रांस चीन और इज़रायल इत्यादि देशों पर भारत की निर्भरता बनी हुई है, जिसमें उल्लेखनीय कमी आएगी। 2015 से 2019 के बीच सऊदी अरब के बाद भारत दूसरे नम्बर पर हथियारों की खरीद करता है। बावजूद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के सेना के पास सभी तरह की सामग्रियों में कमी का खुलासा होता रहा है। कुछ सामानों के घटिया होने की जानकारियां भी मिलती रही हैं। चीन से खरीदी गई रक्षा सामग्रियां तो अत्यंत घटिया निकली हैं। चीन से लद्दाख सीमा पर संघर्ष के हालात के चलते भारत ने करीब 38,900 करोड़ रुपए के 21 मिग, 29 जेट, 12 सुखोई लड़ाकू विमान और देसी मिसाइल प्रणाली व राडार खरीदने की स्वीकृतियां दी हैं। इसके पहले रक्षा क्रय परिषद् भी लड़ाकू विमान और हथियार खरीदने की मंजूरी दे चुकी है। फ्रांस से जिन 36 लड़ाकू राफेल विमानों की खरीद का बड़ा सौदा हुआ है, उसकी पांच विमानों की पहली खेप अम्बाला के सैनिक अड्डे पर उतर चुकी है। भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों को 101 उपकरणों पर लगाए गए प्रतिबंध से प्रोत्साहन मिलेगा। नतीजतन हमारे जो नवाचारी वैज्ञानिक उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली के लिए अत्याधुनिक रॉकेट, मिसाइलें, उपग्रहों और क्रायोजनिक इंजन तक का निर्माण करने में सफल हो चुके हैं, वे रक्षा संबंधी हथियार विकसित करने में भी सफल होंगे। बौद्धिक कल्पनाशीलता को पंख मिलते हैं, तो हम कालांतर में इन हथियारों का निर्यात भी करने लग जाएंगे।  
हम जानते हैं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 2016 में एक साथ 104 उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करके विश्व-इतिहास रचा था।  दुनिया के किसी एक अंतरिक्ष अभियान में इससे पूर्व इतने उपग्रह एक साथ कभी नहीं छोड़े गए थे। इस प्रक्षेपण से इसरो की वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूरी दुनिया में धाक जम गई है। यह उपलब्धि इसरो ने अनेक वैश्विक चुनौतियों का सामना करते हुए पाई थी। बावजूद इसके चुनौतियां कम नहीं रही थीं क्योंकि एक समय ऐसा भी था, जब अमरीका के दबाव में रूस ने क्रायोजनिक इंजन देने से इन्कार कर दिया था। दरअसल प्रक्षेपण यान का यही इंजन वह अश्व-शक्ति है, जो भारी वजन वाले उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने का काम करती है। फिर हमारे पीएसएलएसवी मसलन भू-उपग्रह प्रक्षेपण यान की सफलता की निर्भरता भी इसी इंजन से संभव थी। हमारे वैज्ञानिकों ने दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दिया और स्वेदेशी तकनीक के बूते क्रायोजनिक इंजन विकसित कर लिया। अब इसरो की इस स्वदेशी तकनीक का दुनिया लोहा मान रही है। अमरीका ने हमारे रॉकेट रोहिणी-75 के प्रक्षेपण को बच्चों का खिलौना कहकर उपहास उड़ाते हुए कहा था  ‘भारत कभी भी रॉकेट नहीं बना सकता है।’ अमरीकी सीनेट ने दावा किया था कि अमरीका भारतीय भूमि से किसी भी उपग्रह का प्रक्षेपण नहीं कराएगा लेकिन वैज्ञानिकों के जुनून और ज़िद ने अमरीका के कथनों को झुठला दिया। आज न केवल भारत रॉकेट बनाने में सक्षम हुआ है, बल्कि इसको संचालित करने वाला क्रायोजनिक इंजन भी बना लिया है। नतीजतन अमरीका ही नहीं, अनेक विकसित देश भारत से अपने उपग्रह प्रक्षेपित कराने के लिए पंक्ति में खड़े हैं। 
इसके पहले भारत स्वदेशी तकनीक से परमाणु पनडुब्बी आईएनएस ‘अरिहंत’ का निर्माण 2009 में शुरू करके 2013 में इसे समुद्र में जलावतरण भी कर चुका है। इस स्वदेशी परमाणु चालित पनडुब्बी अरिहंत का परमाणु रिएक्टर चालू होना हमारी स्वदेशी तकनीकी क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में बड़ा कदम था। यह उपलब्धि भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों और इस परियोजना से जुड़े तकनीकी व रक्षा विशेषज्ञों के संयुक्त प्रयास का परिणाम थी। इससे हमारी सैन्य क्षमताओं में आश्चर्यजनक बढ़ौतरी हुई है। इस उपलब्धि के हासिल हो जाने के बाद हम समुद्र के भीतर से दुश्मन देशों पर हमला करने में सक्षम हुए हैं। यह आयुध-युक्त पनडुब्बी पांच हज़ार किमी तक मार करने वाली परमाणु मिसाइल को पानी के भीतर से ही निशाने पर छोड़ सकती है। गोया, यह तकनीक हमारी रक्षा प्रणाली में मील का पत्थर साबित हुई है। इसी तरह स्वदेशी विमानवाहक पोत ‘विक्रांत’ का भी जलावतरण हो चुका है। परमाणु पनडुब्बी निर्माण के क्षेत्र में अमरीका, चीन,  फ्रांस, रूस और ब्रिटेन के बाद भारत छठे देश की कड़ी में शामिल हो गया है।