कब थमेगी बच्चों के साथ दुष्कर्म की दरिंदगी ?

ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ चीजें कभी बदलती ही नहीं । महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध यौन हिंसा पर नियंत्रण पाना अब तो असंभव सा लगने लगा है। दिसम्बर 2012 में दिल्ली में एक चलती बस में एक लड़की (जिसे मीडिया ने निर्भया नाम दिया) के विरुद्ध ऐसा वीभत्स यौन अपराध हुआ था कि पूरे देश की आत्मा कांप उठी थी। इसके खिलाफ  जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए और फलस्वरूप जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए आपराधिक कानून में संशोधन किया गया, जिसके तहत निर्भया के दोषियों को लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद इस साल फांसी दे दी गई। इसी तरह पिछले साल हैदराबाद में एक महिला डाक्टर से दुष्कर्म व हत्या के चार आरोपियों को गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों बाद पुलिस ‘एनकाउंटर’ में मार गिराया गया था। इन आरोपियों को फांसी व ‘एनकाउंटर’ के जरिये मौत की सज़ा देने से यह आशा पनपी थी कि अब महिलाओं के खिलाफ  अपराधों में कुछ तो कमी आयेगी, लेकिन नहीं। अपराध भी बढ़े हैं और क्रूरता व दरिंदगी भी, जैसा कि दिल्ली की एक ताज़ा घटना से स्पष्ट होता है।बाहरी दिल्ली के पश्चिम विहार क्षेत्र में 4 अगस्त की शाम को एक 12-वर्षीय लड़की अपने घर पर अकेली थी। उसके गरीब माता-पिता व बड़ी बहन मजदूर हैं। सब अपने काम पर गये हुए थे। तभी एक बदमाश उसके घर में जबरन घुसा और बच्ची पर यौन हमला करने के बाद उसे किसी नुकीली चीज़ से बुरी तरह से पीटा, जिससे उसके मुंह व पेट पर गंभीर चोटें आयीं और कई हड्डियां भी टूट गईं। बच्ची के पूरे शरीर पर दांतों से काटे जाने के निशान हैं। वह एम्स में जिंदगी व मौत के बीच झूल रही है। इस बच्ची की चिंताजनक स्थिति देखकर दिल्ली के ही गांधीनगर की घटना याद आ गई जिसमें दो युवकों ने पांच वर्ष की ‘गुड़िया’ के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने के बाद उसे बंद कमरे में मरने के लिए छोड़ दिया था। दिल्ली पुलिस ने पश्चिम विहार की इस घटना के दो दिनों बाद 33 साल के आरोपी कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया है। वह मंगोलपुरी का रहने वाला है। पुलिस का कहना है, आरोपी पर पहले भी चार आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें एक हत्या, एक हत्या का प्रयास और दो चोरी के हैं। पुलिस का कहना है, आरोपी के मुताबिक वह लूट के इरादे से आया था, लेकिन बच्ची ने उसे देख लिया, जिस वजह से उसने इस वारदात को अंजाम दिया। पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की धारा 307 और पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की है। लड़की इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जिन्दगी और मौत से जूझ रही थी।  उसकी हालत बेहद चिंताजनक है।अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि वीभत्सता की यह इकलौती घटनाएं नहीं है। देशभर से बच्चों के विरुद्ध पिशाचीय यौन अपराधों की निरंतर खबरें मिल रही हैं। मसलन, जिला हापुड़ (उत्तर प्रदेश) के गढ़ मुक्तेश्वर क्षेत्र से 6 अगस्त को एक 6-वर्षीय बच्ची को अगवा करके उसके साथ हिंसक दुष्कर्म किया गया। फिर अपराधी ने उसे मरने के लिए छोड़ दिया। बच्ची को एक दिन बाद अगवा होने के स्थान से दो किमी दूर रिकवर किया गया। बच्ची के पूरे जिस्म पर चोटों के निशान हैं, जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उसके साथ किस हद तक दरिंदगी की गई। बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी, जब एक मोटरसाईकिल सवार उसे उठाकर ले गया। चश्मदीदों के अनुसार बच्ची ने कोई विरोध नहीं किया, जिससे हमलावर के परिचित होने का अनुमान है,लेकिन संदिग्ध को पकड़ने में पुलिस इस लेख के लिखे जाने तक नाकाम ही थी। बच्चों के खिलाफ  यौन अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? समाज में नैतिकता का पतन इसकी बड़ी वजह है। बच्चों के विरुद्ध यौनाचार मामलों में अधिकतर परिचित व रिश्तेदार ही शामिल होते हैं और ज्यादातर मामलों को परिवार की कथित इज़्ज़त की दुहाई देकर दबाने का प्रयास रहता है, इसलिए अमूमन वही अपराध सामने आते हैं जिनमें हिंसा व क्रूरता शामिल होती है। आज समाज कहां तक गिर गया है, इसे परवीन शाकिर के इस शेर से बखूबी समझा जा सकता है : ‘जो लोग माहौल के ज़हर से व़ािकफ  हैं, अपने बच्चों को घर से निकलने नहीं देते’। इस स्थिति में परिवर्तन तभी संभव है जब परिवार की तथाकथित इज्ज़त की परवाह किये बिना बच्चों के विरुद्ध सभी यौनाचार मामलों को रिपोर्ट किया जाये। बीमारी को जब खुलकर बताया जाता है, तभी उसका उपचार संभव होता है। साथ ही इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कमी पुलिस व अदालत के स्तर पर भी है। पुलिस की लापरवाही के बारे में सब जानते हैं, दोहराने की ज़रूरत नहीं, लेकिन यह भी तथ्य है कि अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम करने और उन्हीं की ही सुरक्षा में लगी पुलिस के पास आम जनता के लिए समय व पर्याप्त बल कहां है। दिल्ली में 60,000 पुलिस कर्मियों की कमी है। दूसरी तरफ  फास्ट कोर्ट के प्रावधान के बावजूद अदालतों में अक्सर मामला इतने लम्बे समय के लिए लटका रहता है कि इन्साफ  मज़ाक बनकर रह जाता है।

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