चीन के इशारे पर हो रही नक्शेबाज़ी की राजनीति

चीन के इशारे पर पहले नेपाल और अब पाकिस्तान भी नक्शेबाजी की राजनीति पर उतर आया है। 4 अगस्त, 2020 को पाकिस्तान ने अपना एक ऐसा तथाकथित नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें भारत के राज्य गुजरात के कुछ इलाकों और केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के क्षेत्रों को बेतुके ढंग से पाकिस्तान का हिस्सा बताया गया है। भारत ने पाकिस्तान की इस हरकत पर कड़ी प्रतिक्रिया की है। भारत ने साफ  तौर पर कहा है कि पाकिस्तान का यह कदम राजनीतिक इरादे से की गई बेहूदगी की पराकाष्ठा है। इस तरह के बेतुके कदमों की कभी कोई कानूनी मान्यता नहीं होती और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता। पाकिस्तान ने यह सब कितने प्रायोजित ढंग से किया, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि  प्रधानमंत्री इमरान खान ने कैबिनेट की बैठक में पहले जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को अपना हिस्सा बताया और उसके कुछ ही देर बाद पाकिस्तान के नये राजनीतिक नक्शे को पेश कर दिया। इमरान खान के मुताबिक उनके द्वारा पेश इस नक्शे को देश के सभी राजनीतिक दलों और पाकिस्तान के आमजनों का समर्थन हासिल है। यही नहीं, यह भी कहा गया कि अब पाकिस्तान की अकादमिक दुनिया में यही नया नक्शा मान्य होगा यानी स्कूलों में बच्चों को इसी भ्रामक नक्शे के जरिये पढ़ाया जायेगा। हालांकि उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि आमजनों के समर्थन को पाकिस्तान की सरकार ने किस तरह हासिल किया है। क्या इसके लिए कोई रैफरेंडम हुआ है? या इस पर कोई सार्वजनिक बहस के बाद कोई सार्वजनिक मत संग्रह हुआ है? दरअसल यह पाकिस्तान की हताशा का नतीजा है, जो उसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खत्म होने की तिलमिलाहट में दिखायी है। गौरतलब है कि पाकिस्तान ही नहीं, भारत में भी अनेक लोगों को यह आशंका थी कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाये जाने के बाद जम्मू और कश्मीर में भारी उथल-पुथल होगी। लोग सड़कों पर निकल आएंगे और कानून तथा व्यवस्था की स्थिति हाथ से निकल जायेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां तक कि जम्मू कश्मीर के लोगों ने कोई कड़ा प्रतिरोध भी नहीं किया, और लद्दाख में तो इस निर्णय की पिछले सालभर से खुशियां मनायी जा रही हैं। इस सच्चाई को देखकर आतंकवादी ही नहीं, पाकिस्तान की सरकार और उसके अनेक सियासतदां भी परेशान हो गये हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि वे क्या करें क्योंकि यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि पाकिस्तान के ज्यादातर सियासी जमावड़ों की कश्मीर की बदौलत ही रोजी रोटी चलती है। अब चूंकि कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है और वहां सुरक्षा के जबरदस्त और सजग बंदोबस्त हैं जिस कारण अप्रिय घटनाएं नहीं हो रही हैं। आतंकवादी पस्त हैं और जनता धीरे धीरे मुख्यधारा की तरफ  लौट रही है। यह सब देखकर भारत के अनेक विरोधी बौखला गये हैं। वे किसी न किसी रूप में जम्मू-कश्मीर को तनाव की आग में झुलसते हुए देखना चाहते हैं लेकिन फिलहाल उनकी यह मंशा पूरी नहीं हो रही। नतीजतन अब इस तरह के विवाद को हवा देने के लिए भारत सरकार के विरुद्ध कश्मीरियों को उकसाने के लिए पाकिस्तान नयी नयी और इनोवेटिव हरकतों को ढूंढने में लगा है। पाकिस्तान और नेपाल दोनों पर ही हाल के सालों में चीन का नियंत्रण काफी ज्यादा बढ़ा है। पाकिस्तान की तो मजबूरी है कि वह जिस तरह के आर्थिक संकट से गुज़र रहा है, उस कारण वह चीन के शिकंजे से बच ही नहीं सकता लेकिन नेपाल भुलावे में है। जब से नेपाल में कम्युनिस्टों की सरकार है, वे चीन के नज़दीक आने की भरपूर कोशिश में लगे हैं, भले इसके लिए भारत के साथ सदियों पुराने सांस्कृतिक रिश्तों तक की बलि देनी पड़े। यही वजह है कि नेपाल और पाकिस्तान दोनों ही चीन के साथ अपनी मज़बूत दोस्ती को बनाये रखने के लिए भारत के साथ बड़े हास्यास्पद ढंग से पेश आ रहे हैं। कुछ दिन पहले नेपाल ने भी अपना नया राजनीतिक नक्शा पास किया था, जिसमें काला  पानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा जैसे भारतीय इलाकों को अपना बताया गया। नेपाल सरकार के इस उकसाऊ नज़रिये को नेपाल की दूसरी राजनीतिक पार्टियों से भी समर्थन हासिल है, जिस तरह पाकिस्तान द्वारा भारत के कुछ क्षेत्रों को अपने नक्शे में दिखाने का समर्थन वहां की सरकार को अपने अधिकतर विपक्षी राजनीतिक पार्टियों से हासिल है।वास्तव में नेपाल हो या पाकिस्तान, यहां की तमाम राजनीतिक पार्टियां अगर अपनी सरकार की इन बेहूदा हरकतों के साथ हैं तो उसका कारण यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। कोई पार्टी नहीं चाहती कि जनता के राष्ट्रवादी उन्माद का समर्थन के रूप में फायदा उन्हें न मिले। इसलिए दोनों ही देशों की तमाम राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी सरकारों की कुटिल हरकतों का समर्थन कर रहे हैं। इन्हें डर है कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो शायद उनका राजनीतिक वजूद ही खत्म हो जायेगा। लेकिन इससे न तो दोनों देशों की सरकारों को और न ही इन देशों की सियासी पार्टियों को कोई फायदा होने वाला है सिवाय जगहंसाई के। पूरी दुनिया जानती है कि चीन भारत को नीचा दिखाने के लिए हर तरह की चालबाज हरकतें कर रहा है। अब चूंकि चीन पिछले तीन महीनों की अपनी आक्रामकता के नतीजे देख चुका है। चीन को समझ में आ गया है कि भारत सरकार उसके किसी भी आक्रामक रवैये से डर नहीं रही। इसलिए तिलमिलाते हुए चीन ने कर्ज से लदे इन पड़ोसियों को भारत के खिलाफ  मोर्चाबंदी के लिए तैयार किया है। जाहिर है, इन दोनों देशों की सरकारें अपने अपने सियासी फायदों के लिए तथा बिगड़ती आर्थिक स्थिति से राहत पाने के लिए चीन की इस साज़िश का हिस्सा बन रही हैं। लेकिन इन दोनों देशों को यह नहीं मालूम कि वे भारत को अनावश्यक अपना दुश्मन बनाकर क्या खो रहे हैं। विस्तारवादी चीन एक दिन मौका मिलने पर इन्हें भी अपने विस्तारित ड्रैगन लैंड का हिस्सा बना लेगा। अपने तात्कालिक स्वार्थों के लिए इन देशों की सरकारें भारत से ऐसे-ऐसे मुद्दों पर पंगा ले रही हैं, जो अपने आपमें कोई मुद्दा नहीं हैं। नेपाल और पाकिस्तान दोनों ही इस बात को जानते हैं कि नक्शेबाजी की इस राजनीति से वे न तो अपने देश और न ही अपनी आम जनता का कोई फायदा कर सकते हैं। वे सिर्फ  इससे अपने देशवासियों को वरगला भर सकते हैं, और वे यही कर रहे हैं।        

 
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