कष्टकारी भी हो सकता है अधिक हिचकी आना

दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं, जिसे हिचकी न आती हो।  कहा जाता है कि जब कोई किसी को याद करता है या जिसे याद किया जाता है, उसे हिचकी आती है लेकिन चिकित्सा या विज्ञान के क्षेत्र में इस बात का कोई महत्त्व नहीं है। चिकित्सक मानते हैं कि हिचकी का सामान्यत: आना कोई बीमारी नहीं परन्तु बार-बार आना और काफी समय तक आते रहना एक बीमारी मानी जाती है।शरीर में डायाफ्राम पेशी के संकुचन अर्थात् ’स्पेमेडिक कन्ट्रेक्शन के कारण जो वायु खींची जाती है, उसी से हिक-हिक की आवाज आती है, जिसे हिचकी या ’हिकफ‘ कहा जाता है। डायाफ्राम संकुचन गैस्ट्रिक या गैस के प्रभाववश होता है। रक्तशून्यता, रक्तस्राव, अतिपरिश्रम, भय, क्र ोध तथा शरीर से जलीय पदार्थ या जीवद्रव्य के निकल जाने से भी हिचकियां आती हैं। इसके अतिरिक्त कालरा या हैजा जैसी बीमारी के होने तथा मस्तिष्क में किसी प्रकार की कमी होने से भी हिचकी की बीमारी हो जाती है। लिवर व आंत की बीमारी में भी हिचकी रोग हो जाता है। इन सभी कारणों के अलावा टायफाइड की अंतिम अवस्था में भी हिचकी आती है, जो आँतों में प्रदाह व सूजन के कारण उत्पन्न होती है। यह खतरनाक होती है। इसमें धमन क्रि या बाधित हो जाती है जिसमें आंत की क्रि याशीलता रूक जाती है या स्तब्ध हो जाती है। हिचकी के रोग में पाचन क्रि या खराब हो जाती है।बार-बार हिचकी की बीमारी का संबंध मन से गहरा माना गया है। कभी-कभी असफलता के क्षणों में, जो प्रेम के कारण भी हो सकती है, भी हिचकी आती है। हिचकी की उग्रता किसी भी औषधि से कम नहीं होती। चिकित्सक एकमत होकर शल्य चिकित्सा ही हिचकी का एकमात्र उपचार बताते हैं। साधारण-सा लगने वाला हिचकी का रोग वास्तव में बड़ा ही कष्टकारी होता है। हिचकी उठने पर लापरवाही नहीं करनी चाहिए। हिचकी की उग्रता कष्टकारी एवं जानलेवा हो सकती है। अत: हिचकी की प्रारम्भिक अवस्था में ही उपचार कराना हितकर होता है। हिचकी प्रारम्भ होते ही एक गिलास शुद्ध पानी पी लेना चाहिए।

(स्वास्थ्य दर्पण)