आज के लिए विशेष बहुपक्षीय शख्सियत थे बलराम जी दास टंडन

हर महान व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ खास गुण होते है। ये चाहे जन्म से या फिर अनुभव से प्राप्त होते हैं। कड़ी मेहनत,  दूरदर्शिता, विनम्रता, दृढ़ता और राष्ट्रीयता जैसे गुण मेरे ससुरजी स्व. बलरामजी दास टंडन में व्याप्त थे। आज के समय में हर व्यक्ति हर चीज़ तेजी से करना या पाना चाहता है। यह फास्ट फूड, फास्ट कम्युनिकेशन, फास्ट  यात्रा इत्यादि का युग है । लेकिन महान व्यक्ति कभी भी फास्ट फार्वड मोड में नहीं बन सकते। एक महान व्यक्तित्व के निर्माण हेतु, उनके चरित्र, उनके व्यक्तित्व आदि में आज भी पुरानी कहावत ‘सहज पके सो मीठा होए’ लागू होती है। जैसे की एक घर कई ईंटों से बनता है ऐसे ही एक राष्ट्र सभी नागरिकों को मिलाकर बनता है लेकिन ईंटों के अलावा, घर के बीम और खंभे भी महान भूमिका निभाते हैं। ठीक इसी तरह स्वतंत्रता सेनानियों ने हज़ारों लोगों को एकजुट किया और देश को स्वतंत्र बनाने का बीड़ा उठाया। इतिहास इन सब घटनाओं का गवाह है और जो भी रुचि रखता है वह इसे पढ़ सकता है। जो दस्तावेज नहीं है, वह यह है कि ये लोग जो अपने देश के लिए लड़े थे वे किस मिट्टी के बने थे? उन का व्यक्तित्व कैसा था? वे कैसे इतने सहनशील, प्रभावशाली और देशभक्त बने? उनकी मातृभूमि के प्रति प्रतिबद्धता, अपने परिवार के प्रति उनके प्रेम से बहुत ऊपर थी। उन के मन का भाव यह था, ‘सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं!’छोटी-छोटी बातों से इन्सान के चरित्र का पता चलता है। हर परिस्थिति में वह अपनी मानसिक और शारीरिक स्वस्थता के लिए रोज़ाना प्रार्थना व व्यायाम, सैर ज़रूर करते थे। वे कभी बिजली या पानी को ज़ाया होते देखते तो खुद सभी लाइट के स्विच बंद करते, गिलास में उतना पानी लेते जितना आवश्यक हो, नहाने में भी कम से कम पानी इस्तेमाल करते, भोजन कभी जाया नहीं करते इत्यादि। वह समय के बहुत पाबंध थे, कभी किसी प्रोग्राम मैं देरी से नहीं पहुँचते थे। वे कभी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते थे। किसी ज़रुरतमंद व्यक्ति की यथासंभव सहायता अवश्य करते थे। मंत्री होते हुए एक अवसर पर एक सफाई कर्मचारी ने उन्हें कुछ अपशब्द कह दिए। किसी ने उन्हें सलाह दी कि इसे नौकरी से निवृत कर दिया जाए लेकिन उन्होंने उसे समझाकर छोड़ दिया और बोले कि ‘अपनी कलम की ताकत से मैं किसी की ज़िन्दगी बना सकता हूँ, यह मेरा सौभाग्य है, लेकिन किसी की ज़िन्दगी तबाह करना मेरी फितरत नहीं!’ 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें 19 महीनों के लिए जेल में रखा गया था। उस समय के दौरान उन्होंने कहा कि उन्होंने दाल और बाटी मार कर गोलाकार रोटी बनाने का तरीका इजाद किया। वह अन्य कैदियों के साथ शतरंज और वालीबॉल खेलते थे। उन्होंने एक दूसरे को भूगोल, राजनीति विज्ञान पढ़ाया। गौरतलब यह है कि उन्होंने जो भी अवसर मिला उसे गवाया नहीं और इस में भी बहुत कुछ सीखा और सिखाया। उन्होंने अनुशासन और देश भक्ति के अपने सिद्धांतों को कभी भुलाया नहीं। उन्होंने उस समय का उपयोग अपने मजबूत कौशल के लिए किया। वह हमेशा नए विचारों को दिलचस्पी से सुनते थे और बड़ी स्पष्टता से अपने विचार समझाया करते थे। पिताजी केवल भारतीय कपड़े व जूते पहनने पर ज़ोर देते थे। वह हमेशा अपने बच्चों के साथ हिंदी या पंजाबी में बातचीत करते थे। वह अंगे्रज़ी जानते थे, परन्तु उन्हें अपनी मातृ-भाषा पर गर्व महसूस होता था और वह इस भावना को अपने परिवार से सांझा करते रहते थे। वह कहते थे कि अंग्रेज़ों ने भारतीयों को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश की। अंग्रेज़ों ने भारतीयों के दिलो-दिमाग में यह बैठा दिया कि जो लोग अंग्रेज़ी नहीं बोल सकते वो पिछड़े हुए हैं। भारतीय वेश भूषा, खाने के व्यंजन, त्यौहार, संस्कार, रीति-रिवाज़ सब को एक मज़ाक का विषय बना दिया लेकिन आज की तारीख में भारतीय संस्कृति की हर चीज़ जैसे की हाथ जोड़ कर नमस्कार करना, योग, आयुर्वेद, तुलसी-नीम का सेवन, गाय के दूध की एहमियत, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि का गुण-गान विश्व भर में हो रहा है। पिताजी कहते थे कि आप की संस्कृति आप की मां की तरह है, उसका आदर-सम्मान करें। इसके साथ-साथ दूसरों की संस्कृति को नीचा न दिखाओ। आज जब मैं अपने बच्चों और उनके दोस्तों और अन्य युवाओं को देखती हूं तो मुझे आश्चर्य होता है कि वर्तमान युवा पीढ़ी देश, विदेश के मामलों में शामिल होने के लिए कितनी जागरूक और उत्सुक है। अगर आप किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लॉग-इन करते हैं, तो आप यह देखकर चकित रह जाएंगे कि युवाओं की आवाज़ कितनी बुलंद है! वह हर चीज पर अपनी राय रखते हैं, न केवल देश, बल्कि दुनिया भर के विषयों पर भी। वह भारत-चीन संबंधों, सुशांत सिंह राजपूत, प्रधानमंत्री मोदी, चीन में बनी चीज़ों के बहिष्कार आदि सभी के बारे में राय रखते हैं। यह भारत को और सशक्त बनाने का समय है। यह भारत को आत्म-निर्भर बनाने का समय है। यदि आप किसी भूखे को मछली देते हैं तो आप उसकी सिर्फ  एक दिन की भूख मिटाते हैं, परन्तु यदि आप उसे मछली पकड़ना सिखा देते हैं तो आप उसके लिए जीवन भर के भोजन का इंतजाम कर देते हैं। पिताजी के बताये रास्ते पर चलते हमने उनके देहांत के पश्चात, बलरामजी दास टंडन चैरिटेबल फाउंडेशन का निर्माण किया। इस माध्यम से हम कई विधवाओं को मासिक राशन दे रहे हैं और उन्हें कुछ सिलाई, ब्यूटी पार्लर का काम आदि सिखाने की भी व्यवस्था कर रहे हैं। कोरोना बीमारी के चलते करीब 1 लाख मास्क, कुछ पी.पी.ई. किट्स और कई ज़रुरतमंदों को राशन भेजा गया है। उनकी दूसरी पुण्य तिथि 4 अगस्त, 2020 पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे. पी.   नड्डा, एक वेबिनार को संबोधित करके टंडन जी के पीछे के महामानव के बारे में बताएंगे ।आज भारत की युवा पीढ़ी को जो अवसर मिला है कि इसका फायदा अवश्य उठाना चाहिए, जिन्होंने देश के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। उनके जीवन से अवश्य कुछ सीखें। हमारे बुज़ुर्ग एक चलती फिरती पाठशाला थे, अपनी करनी से बहुत कुछ सिखा गए।
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