पंजाब में अवैध शराब की ब्रिकी का मामला पहुंचा अदालत

पंजाब में दो ‘पूर्व’ राजनीतिज्ञों पूर्व विधायक तरसेम जोधां तथा हरगोपाल सिंह द्वारा नकली शराब मामले पर डाली गई जनहित याचिका पर माननीय न्यायाधीश जस्टिस अल्का सरीन ने इसे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है क्योंकि माननीय न्यायाधीश को शायद यह लग रहा है कि मामला अदालत में राजनीतिक लड़ाई के रूप में लाया गया है। अदालत ने कहा है कि राजनीतिक जंग यहां पर मत लड़ो, परन्तु दोनों व्यक्तियों के वकील बलतेज सिंह सिद्धू ने कहा है कि दोनों केस दायर करने वाले विधायक तो रहे हैं परन्तु 1997 के बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा। यह मामला राजनीतिक तौर पर नहीं बल्कि गंभीर मामला होने के कारण हाईकोर्ट की ओर रुख किया गया है। अपीलकर्ताओं के वकील ने पंजाब सरकार की वकील रमीज़ा हकीम के यह कहने पर कि मामले में लगातार कर्रवाई हो रही है, के जवाब में कहा कि नवम्बर 2008, मई 2019 तथा तालाबंदी के बाद भी एफ.आई. आर. दर्ज हुई हैं, परन्तु प्रत्येक मामले में कार्रवाई सिर्फ मज़दूरों पर की गई है, जबकि मामले से जुड़े सरगना पुलिस की पकड़ से बाहर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह कैसे संभव है कि नकली शराब की इतनी बड़ी फैक्टरियां मज़दूर चला रहे हों? 
यह भी नहीं कि नकली शराब से मौतें कोई पहली बार हुई हैं। ऐसा पंजाब तथा देश में कई बार हो चुका है। पिछली अकाली सरकार के कार्यकाल में भी 2012 में बटाला में 16 मौतें हुई थीं। उस समय भी मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये देने की घोषणा हुई थी, जांच शायद आई.जी. पुलिस स्तर पर हुई थी, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसा पहले हुआ था तो अब भी हो गया तो क्या है? यह अब भी सरकार के माथे पर कलंक है। लोगों के घरों में मौत का सन्नाटा पसरा है। राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना खेल खेल रही हैं। सत्तारूढ़ पार्टी हर्जाना भर कर, जांच शुरू करवाकर बात को ठंडा करना चाहती है और विपक्षी पार्टियां सी.बी.आई. जांच का शोर मचा कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती हैं। ऐसे मामले की जांच तो अदालतों को खुद-ब-खुद ही अपने हाथों में   लेनी चाहिए, क्योंकि सभी को पता है कि यह मामले राजनीतिक, अफसरशाही तथा गुनाहगारों के गठजोड़ के बिना नहीं चल सकते। नकली शराब की मौतों की ताज़ा शुरुआत 29 जुलाई को हुई परन्तु खन्ना की नकली शराब फैक्टरी इससे लगभग 3 महीने पहले पकड़ी गई। फिर राजपुरा के पास भी एक नकली शराब फैक्टरी पकड़ी गई। क्या हुआ? सबको पता है कि कुछ निचले स्तर के लोग पकड़ लिए गए। अब भी लाहन तथा रूढ़ी मार्का शराब बनाने वाले पकड़े जा रहे हैं, क्या पुलिस को पहले इनके बारे कोई सूचना नहीं थी या राजनीतिक संरक्षण में यह काम चल रहा था? फिर यह आरोप अपनी जगह पर हैं कि कानूनी शराब की डिस्टलरियां में से भी हज़ारों लीटर शराब बिना टैक्स दिए निकलती रही है, परन्तु कोई कार्रवाई नहीं होती। अधिकारियों को कोई सज़ा नहीं मिलती, जो इसके लिए ज़िम्मेदार होते हैं। क्या किसी अधिकारी का तबादला या निलम्बन सज़ा है? नहीं यह तो उसे बचाने का एक ढंग है। देखें कब मिलता है पंजाब तथा देश को कोई ऐसा रहनुमा जो रातो-रात अमीर होने की चाह रखने वाले खूंखार सोच वाले कातिलों से देश तथा प्रदेश को छुटकारा दिला सके। 
दिल-ना-उम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है।
लम्बी ही गम की शाम मगर शाम ही तो है।
सरकारी खज़ाने से हर्जाना गुनाह है
हैरानी की बात है कि कोई अपनी गलती करके आत्महत्या करता है तो उसके परिवार को 5-10 लाख रुपये हर्जाना तथा नौकरी, यदि कोई नकली तथा दो नम्बर की शराब पीकर मरता है, तो उसके परिवार को सरकारी खज़ाने से हर्जाना। क्या भारत तथा पंजाब के कानून में आत्मघाती कोई शहीद का दर्जा रखता है? क्या नकली या दो नम्बर की शराब तथा नशे खरीदने वाला देश या प्रदेश के लिए कोई अच्छा काम करके मरता है कि उसकी मौत के बाद मेहनतकश लोगों द्वारा कमा कर दिए टैक्स को लुटा दिया जाए, नहीं बिलकुल नहीं। हां, यह अफसोसजनक है कि गरीब लोग रातो-रात अमीर होने वालों के लालच में सस्ती शराब या नशे खरीद कर मौत के मुंह में चले जाते हैं और पीछे परिवार के लिए जीवन नारकीय बन जाता है। इसलिए आवश्यक है कि उनको गरीबी, भुखमरी और मूर्खता में से निकालने के लिए सहायता दी जाए। परन्तु यह सहायता किसी भी कीमत पर सरकारी खज़ाने में से नहीं बल्कि नशे, शराब बेचने वालों तथा उनके संरक्षक अधिकारियों व राजनीतिज्ञों की जायदाद ज़ब्त करके उसकी बिक्री से बनाए फंड  में से दी जानी चाहिए।
दशम ग्रंथ, सिख तथा राम मंदिर 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर के भूमि पूजन समारोह में गोबिंद रामायण की बात करके सिख कौम में लम्बे समय से दशम ग्रंथ के बारे चल रही बहस को और हवा दे दी है। वैसे तो श्री मोदी ने स्वयं ही कह दिया है कि तुलसी का राम सगुण राम है और नानक व कबीर का राम निर्गुण राम है। यह अपने-आप में स्पष्ट करता है कि गुरु नानक की विचारधारा का राम जन्म-मरण से रहित परम पिता परमात्मा निरंकार है। 
गुरु नानक ने बाबर को जाबर कहा है—
पाप की जंज लै काबलहु धाइया
जोरी मंगै दानु वे लालो।
उन्होने यह भी कहा कि,
खुरासान खसमाना कीआ हिन्दुस्तान डराया। 
तथा 
एती मार पई कुरलाणै तैं की दरदु न आया। 
बिलकुल स्पष्ट है कि गुरु जी ने बाबर के अत्याचार के बारे में परमात्मा तक को शिकायत कर दी। बाद में औरंगज़ेब के अत्याचार को रोकने के लिए श्री गुरु गोबिंद सिंह ने सरबंस कुर्बान कर दिया और अत्याचार के विरोध की लहर में से सिख धर्म उपजा। ज़ुल्म कोई भी करे, सिख का फर्ज मज़लूम के साथ खड़े होना है।  अब फिर गोबिंद रामायण की बात से दशम ग्रंथ के बारे में बहस शुरू हो गई है। इसलिए अकाली दल बादल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल जो इस समय क्रियात्मक तौर पर शिरोमणि कमेटी पर काबिज हैं, के पास एक अवसर है कि वह अपनी छवि सुधारने के लिए हिम्मत करें और शिरोमणि कमेटी को निर्देश देकर निष्पक्ष माने जाने सिख विद्वानों, इतिहासकारों तथा निष्पक्ष धार्मिक शख्सियतों जिनका प्रत्यक्ष राजनीति या पदों के लालच से कोई संबंध न हो, की एक समयबद्ध कमेटी बना कर यह फैसला लेने के लिए कहें कि दशम ग्रंथ की हैसियत सिख धर्म के लिए क्या है? इसमें से कौन-सी वाणी श्री गुरु  ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं से तालमेल रखती है और कौन-सी सिख धर्म के आधारभूत सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत है। यदि स. सुखबीर सिंह बादल राजनीतिक मजबूरियों के कारण यह साहस नहीं करते तो यह अवसर जत्थेदार अकाल तख्त साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह के पास भी है कि वह अपने-आप को कौम का जत्थेदार साबित करते हुए इस बारे में सिख पंथ की कोई फैसला लेने में मदद करें ताकि इस मामले का समाधान किया जा सके। नहीं तो कहीं हालत वही न हो कि, 
‘लम्हों ने खता की है, सदियों ने सज़ा पाई।’

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