लखनऊ की वीरांगना ब़ेगम हज़रत महल

स्वतंत्र महासंग्राम में अपनी आहुति देने वालों में जहां क्रांतिकारियों का अविस्मरणीय योगदान रहा है, वहीं हमारे देश की जानीमानी वीरांगनाओं के योगदान भी कम नहीं रहा है। आजादी की लड़ाई में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर ऐनी बेसेंट आदि अनेक वीरांगनाओं ने अपने अद्भुत साहस और बलिदान का परिचय देते हुए यह सिद्ध किया कि महिलाएं भी किसी से कम नही हैं। आजादी की इन दीवानियों में अवध के अंतिम राजा उर्फ नवाब जो बाद में लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के नाम से मशहूर हुए थे, की बेगम हजरत महल का नाम भी उल्लेखनीय है। सन् 1857 ई. में लखनऊ के आसपास के जिले शामिल हो कर अवध का राज्य कहलाते थे। पूर्व फैजाबाद इसी राज्य की राजधानी कहलाती थी। साधन संपन्न अवध राज्य पर जब अंग्रेजों की कुदृष्टि पड़ी तो उन्होंने इसे भी अपने शासन में मिलाने की नीयत से फरवरी 1856 ई. में अवध के नवाब वाजिद अली शाह को पहले भ्रष्ट व भोग विलासिता में लिप्त रहने का झूठा आरोप लगाकर बदनाम किया। फिर उन्हें शासन के अयोग्य घोषित करके एवं राज्य में अव्यवस्था का बहाना बना कर अवध को अपने शासन में मिला लिया और नवाब वाजिद अली शाह को कैद कर मटियाबुर्ज (कलकत्ता) भेज दिया। बाद में अंग्रेजों ने अवध पर धीरे-धीरे पूरी तरह कब्ज़ा कर लिया। नवाब वाजिद अली शाह को कैद करने के बाद उनके परिवार की ताकत कम करने के लिए पीछे से उनकी बेगमों व परिवार के सदस्यों को यातनाएं देना शुरू कर दिया। परिवार के सदस्य चोरी छुपे अंग्रेजों के जुल्मों से नवाब को अवगत कराते रहते। नवाब ने इस संबंध में अंग्रेजों के आला अफसरों को कई शिकायती पत्र भी भेजे लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गयी। दिन-ब-दिन अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता ही गया व जनता में उनके प्रति विद्रोह की चिंगारियां भड़कने लगीं। इसी बीच मेरठ के सैनिकाें ने 10 मई 1857 ई. को विद्रोह कर दिया और विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गये। अंग्रेजी सत्ता के पांव उखड़ने के बाद अवध की गद्दी पर नवाब वाजिद अली शाह के ग्यारह वर्षीय पुत्र बिरजिस कदर को बैठाया गया और नवाब की सबसे प्रेयसी पत्नी हजरत बेगम महल जो उसकी मां थी, को बेटे की ओर से शासन चलाने का हुक्म मिला जिसे 15 जुलाई 1857 को बेगम ने स्वीकार कर लिया। बेगम हजरत महल ने धैर्य से सत्ता संभालने के बाद एक स्वातंत्र्य वीरांगना की हैसियत से क्र ांतिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी सत्ता को जबरदस्त चुनौती दी। बेगम के प्रमुख सलाहकार के रूप में अली मोहम्मद खां को भी नियुक्त किया गया।  बाद में बेगम हजरत महल ने दिल्ली के बादशाह से अपनी नई सरकार के लिए स्वीकृति प्राप्त करने हेतु अपने राज्य के नुमाइन्दे दिल्ली भेजे जहाँ से बादशाह ने तुरन्त इस सरकार को स्वीकृति प्रदान कर दी। अवध की ताकत से जोश पाकर बनारस, इलाहाबाद, रायबरेली, गोरखपुर व आजमगढ़़ में भी हिंसक क्रांतियां हुईं व अंग्रेजी सत्ता को च्युत कर दिया गया। बेगम हजरत महल ने अंग्रेजाें के खिलाफ लामबद्ध होने हेतु कई राजाओं को क्र ांति में शामिल कर लिया।  इसी बीच बेगम हजरत महल की किस्मत ने पलटा खाया। नवाब वाजिद अली शाह की अन्य बेगमों ने हजरत महल के विरुद्ध षड्यन्त्र रचा दिया और बेगम के सलाहकार व मौलवी के बीच आपसी टकराव शुरू हो गया। इससे क्र ांतिकारियों के संगठन को गहरा आघात लगा। अंग्रेजों ने जबरदस्त जंग के जरिये लखनऊ पर पुन: कब्जा जमा लिया। अंग्रेजों ने बेगम से हथियार डाल संधि करने को कहा, पर वे न मानी और अपने पुत्र बिरजिस को लेकर दल बल समेत मार्च, 1858 ई. में नेपाल प्रस्थान कर गईं। वहां भी बेगम हजरत महल चुप नहीं बैठीं और शीघ्र ही मेंहदी हसन व रायबरेली के राजा बेनी माधव को साथ लेकर नेपाल की तराई क्षेत्र में अंग्रेज सेना पर टूट पड़ी। इस घमासान युद्ध में अंग्रेज बुरी तरह हार गये और बेगम नेपाल की ओर बढ़  गईं। अंग्रेजों ने नेपाल नरेश महाराणा जंग बहादुर से बेगम को नेपाल से निकालने को कहा पर नरेश ने बेगम व उनके पुत्र को शरण दे दी परन्तु उनके साथियों को सेना समेत बाहर जाने का आदेश दे दिया। बेगम ने यह प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए कहा, नेपाल नरेश, मैं आपका साथ देने हेतु तैयार हूँ लेकिन अंग्रेजों से समझौते के मैं खिलाफ हूँ।  इस प्रकार बेगम व उनके साथी क्रांतिकारियों की शक्ति क्षीण पड़ गयी क्योंकि नेपाल नरेश ने बेगम को राज्य से खाद्य आपूर्ति बंद करवा दी थी। इससे बेगम, उनके सैनिक तथा जानवर लम्बे समय तक भूख की पीड़ा को सहन न कर सके।  आज़ादी की दीवानी, लखनऊ की वीरांगना बेगम हजरत महल को आजादी के इतिहास में सदैव याद रखा जायेगा, जिसने अपने शौहर नवाब वाजिद अली शाह के कैद होने के बाद भी आखिर तक अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं की और उनसे टक्कर लेती रहीं। (युवराज)