फिल्मों में देश-प्रेम के बदलते रूप

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे अपनी मातृभूमि से प्यार न हो। यही वजह है कि अक्सर फिल्मों में भी देश प्रेम की भावना को दर्शाया जाता रहा है।  बॉलीवुड की इन फिल्मों ने जहां समाज में देशभक्ति का अलख जगाने का काम किया, वहीं यह भी सच है कि स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को ज्वालामुखी बनाने में भी देशभक्ति की फिल्मों ने अहम रोल अदा किया। इन फिल्मों में देशभक्ति की भावना इतनी प्रखर होती थी कि ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलने लगती। देशभक्ति फिल्मों से समाज में देश प्रेम के प्रति जागरूकता देखकर अंग्रेजी हुकूमत ने 1918 में ब्रिटिश सिनेमेटोग्राफी एक्ट के तहत इस तरह की फिल्मों पर पाबंदियां भी लगाईं। 1921 में जब कोहिनूर फिल्म कंपनी ने ‘भक्त विदुर‘ बनाई तो इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाया गया।तानाशाह हुकूमत की बंदिशों के बावजूद देश प्रेम की भावना जगाती फिल्में लगातार बनती रहीं और दर्शकों की वाहवाही भी उन्हें खूब मिलती रही। बच्चों के लिए बनी फिल्म ‘बूट पालिश’ और ‘जागृति’ में भी राष्ट्रवादी भावनाएं थीं। राष्ट्र के लिए जीवन कुर्बान करने वाले सच्चे नेताओं पर आधारित फिल्मों से लोग आज भी प्रेरणा लेते हैं। एक समय था जब हिंदी फिल्मों में देश प्रेम का मतलब अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाना या देश की सरहद पर जाकर दुश्मन से लड़ना होता था। 1943 में बनी फिल्म ‘किस्मत’ को यों तो देशभक्ति की फिल्मों में नहीं जोड़ा जा सकता मगर इस फिल्म का एक गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिंदुस्तान हमारा है...‘ को खासी लोकप्रियता मिली। इस गीत के जरिए सीधे-सीधे ब्रिटिश हुकूमत को ललकारा गया था। सोहराब मोदी की ‘सिकंदर’ और फिल्मिस्तान की ‘शहीद’ को दर्शकों ने सिर-आंखों पर बिठाया। शांताराम की फिल्म ‘डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ में भारतीयता को बेहतर ढंग से फिल्माया गया था। 1964 में आई फिल्म ‘हकीकत‘ में बलराज साहनी और धर्मेंद्र फौजी के किरदार में थे जो सरहद पर जाकर देश के दुश्मनों का बहादुरी से सामना करते हैं। उस दौर में ऐसी कई फिल्में आईं जिसमें पड़ोसी देशाें से हुई जंग की कहानी को दिखाया गया। मनोज कुमार की ऐसी फिल्मों की तो एक लंबी लिस्ट है जिसमें उन्होंने देशभक्त का किरदार निभाया। इनमें ‘शहीद‘, ‘क्र ांति’, ‘पूरब और पश्चिम’ और ‘उपकार’ सबसे यादगार फिल्में हैं। ‘उपकार’ में तो उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान जय किसान’ को चरितार्थ करते हुए किसान और जवान(सिपाही) दोनों का किरदार निभाया। दरअसल, वो दौर आज़ादी के ठीक बाद का था। आज़ादी के मिल जाने के बाद भी लोगाें के जेहन में अंग्रेजों से लड़ने की भावना मिटी नहीं पाई थी। इसलिए ऐसे विषय दर्शकों के दिलों को छू जाते थे। यही वजह थी कि इन फिल्मों को दर्शकों का जबरदस्त रिस्पांस मिला लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है।फिल्मी कहानियों में देश भक्ति दूसरे रूपों में उभरती है। इसके साथ इसके नायक भी अब अपना रूप बदल चुके हैं। अब समय बदल गया है। देश को आजाद हुए आधी सदी से ज्यादा समय बीत चुका है। इसीलिए अब फिल्मों में अंग्रेजों को अपना लोहा मनवाने वाले क्रांतिकारियों की कहानी दर्शकों को कुछ खास पसंद नहीं आती। आमिर खान की ‘मंगल पांडे’ की असफलता इस बात की तस्दीक करती है। यही वजह है कि अब फिल्मों में देश प्रेम का स्वरूप बदलता जा रहा है। अब देश में ही बैठे दुश्मनों के खिलाफ आवाज उठाने वाले विषयों पर बनने वाली फिल्में दर्शकों को ज्यादा अपील करती हैं। आमिर की ‘रंग दे बसंती‘ में सेना के विमानों के कलपुर्जों की खरीद में होने वाली धांधली के खिलाफ आवाज उठाने वाले कॉलेज के कुछ दोस्तों की कहानी थी। इस फिल्म को दर्शकों ने बहुत पसंद किया।विद्या बालन की ‘नो वन किल्ड जेसिका‘ एक ऐसे आंदोलन की कहानी थी जिसमें सिस्टम और रसूखदार लोगों के खिलाफ जनता को एकजुट होते हुए दिखाया गया। यह एक रियल इंसीडेंट पर बेस्ड फिल्म है। इस फिल्म को भी बॉक्स ऑफिस पर काफी अच्छा रिस्पांस मिला। अब सुनने में आया है कि समाज सेवक और गांधीवादी अन्ना हजारे की जिंदगी और उनके द्वारा किए गए आंदोलनों पर भी फिल्म बनने जा रही है।  एक समय था जब फिल्मों में देश के सिपाहियों को ही देशभक्त के रूप में ज्यादा दिखाया जाता था। ‘सरफरोश’ में आमिर खान हों जो देश में छिपे बैठे आतंकवादियों का पर्दाफाश करते हैं। इन सभी फिल्मों में नायकों को सच्चे देशभक्त के रूप में पेश किया गया, जो देश की आन पर कोई आंच नहीं आने देना चाहते। हाल ही में रिलीज ‘दबंग-2‘ में भी सलमान का यही रूप देखने को मिला।  आजकल फिल्मों में कुछ इतर मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं जिनमें देशप्रेम तो उभर कर आता है पर बिल्कुल अलग रूप में। शाहरूख खान की फिल्म ‘स्वदेश‘ इसका एक उदाहरण है। इसमें हीरो मोहन भार्गव(शाहरूख खान) नासा की अपनी नौकरी छोड़ कर अपनी दाई मां के गांव में बस जाता है और वहां की अंधेरी झोपड़ियों में रोशनी लेकर आता है।  फिल्म ‘चक दे इंडिया’ का कबीर खान (शाहरूख खान) खेल के मैदान में अपने पर लगे ‘देशद्रोही‘ के इल्जाम को हटाने के लिए महिला हॉकी टीम को वर्ल्ड चैंपियन बनाता है। ऑस्कर अवार्ड की आस जागने वाली फिल्म ‘लगान‘ का भुवन(आमिर खान) क्रि केट मैच में अंग्रेजों को मात दे कर लगान माफ कराता है। फिल्मों में बदलते इस देशप्रेम के रूप को दर्शक बहुत पसंद कर रहे हैं। इसलिए फिल्ममेकर्स भी लगातार नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में फिल्मों में देशप्रेम के कई नए रूप और देखने को मिले।