बासमती की काश्त बढ़ने में झंडा रोग और एम.एस.पी. का न होना बड़ी समस्या 

बासमती पंजाब की अहम फसल है। इसकी फसली-विभिन्नता के पक्ष से विशेष अहमियत है। धान की काश्त का रकबा कम करने में यह एक सफल फसल है। बासमती को पानी को आवश्यकता धान के मुकाबले बहुत कम है। कई पूसा बासमती-1509 जैसी नयी विकसित किस्में तो बरसात के पानी से ही पक जाती हैं। चाहे इसकी काश्त प्रत्येक वर्ष थोड़ी सी बढ़ती रही है परन्तु बड़े पैमाने पर इस में वृद्धि नहीं हुई। गत वर्ष 6.29 लाख हैक्टेयर रकबे में इसकी काश्त की गई थी। इस वर्ष कृषि तथा किसान भलाई विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार एरी के अनुसार बासमती की काश्त लगभग 6.60 लाख हैक्टेयर रकबे में हुई है। लक्ष्य 7 लाख हैक्टेयर रकबे का रखा गया था और सम्भावना 7.50 लाख हैक्टेयर रकबा इस फसल में आना था। बासमती की अंतर्राष्ट्रीय मांग को देखते हुए काश्त के लिए योजनाकार रकबा दोगुणा करना चाहते हैं। आल इंडिया राईस एक्सपोर्टज़ एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और बासमती के प्रसिद्ध एक्सपोर्टर विजय सेतिया के अनुसार रकबा दोगुणा तो नहीं, प्रयासों तथा सही नीति अपनाकर 9-10 लाख हैक्टेयर तक पहुंच सकता है। अब पंजाब की बासमती की विदेशों में भी गुणवत्ता मानी जाती है और इसकी मांग हर वर्ष बढ़ रही है। घरेलू मंडी में भी खपत में वृद्धि हुई है। पानी की ज़रूरत कम होने तथा बासमती की मांग बढ़ने के बावजूद काश्त अधीन रकबे में अनुमानित वृद्धि नहीं हो रही, क्यों? एक तो बसमती की एम.एस.पी. नहीं और किसानों को सुनिश्चित कीमत मिलने की उम्मीद नहीं। एम.एस.पी. तय करने की मांग कई वर्षों से की जा रही है। 
बासमती की काश्त के लिए रकबा न बढ़ने का दूसरा कारण बासमती की काश्त में झंडा रोग (बकाने) बीमारी का आना है। बासमती की काश्त बढ़ाने में यह बीमारी एक बहुत बड़ी समस्या है। इसका हमला उत्पादन का काफी नुक्सान करता है। गत कुछ वर्षों के दौरान अबोहर, फाज़िल्का, फरीदकोट, कपूरथला, गुरदासपुर और अमृतसर लगभग सभी ही बासमती पैदा करने वाले क्षेत्र में झंडा रोग फसल पर आया।  भारतीय कृषि खोज संस्थान (आई.सी.ए.आर.) के निदेशक तथा बासमती के प्रसिद्ध ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि इस रोग के आने का कारण किसानों की ओर से बीज तथा पौध की शोध करना है। अगेती काश्त करने वाले किसानों के खेतों में भी इस रोग का हमला अधिक देखा गया है। झंडा रोग एक फंफूद से लगने वाली बीमारी है। बीमारी वाले बीज का प्रयोग करना इस बीमारी का मुख्य कारण है। आम तौर पर किसान बीज को तो शोध लेते हैं परन्तु पौध की जड़ें ट्राईकोडर्मा हाज़र्ीएनम के साथ नहीं ट्रीट करते। झंडा रोग को काबू करने के लिए बीज को शोध के अतिरिक्त पौध की जड़ों की शोध करना भी अत्यावश्यक है और जड़ें ट्राईकोडर्मा हाज़र्ीएनम के घोल में 6 घंटे डुबो कर फिर लगानी चाहिए। 
इस वर्ष राज्य के 7 ज़िलों में बासमती की काश्त का रकबा कम हुआ है। फाज़िल्का में 21000 हैक्टेयर, गुरदासपुर में 7100 हैक्टेयर तथा अमृतसर में 2000 हैक्टेयर तक काश्त अधीन रकबे में कमी आई है। कृषि तथा किसान भलाई विभाग ने प्रत्येक बासमती उत्पादक को जानकारी तथा नेतृत्व देने की योजनाबंदी की है। निदेशक एरी ने बासमती पैदा करने वाले ज़िलों में प्रत्येक किसान किसी न किसी कृषि विशेषज्ञ को सौंप दिया है।
 वह कृषि विशेषज्ञ उत्पादक से सीधा सम्पर्क कर गुणवत्ता वाली बासमती को सुनिश्चित करेगा और फसल की प्रत्येक बीमारी की रोकथाम के लिए  उचित कार्रवाई करेगा। निदेशक एरी ने कहा कि कुछ ज़िलों में बासमती कास्त के अधीन रकबा कम होने के बावजूद इस वर्ष राज्य में सन् 2016 के बाद सबसे अधिक रकबे पर बासमती की काश्त की गई है। सन् 2016-17 में 5.10 लाख हैक्टेयर, सन् 2017-18 में 5.46 लाख हैक्टेयर, सन् 2018-19 में 4.37 लाख हैक्टेयर तथा सन् 2019-20 में 6.29 लाख हैक्टेयर रकबे में बासमती की काश्त की गई थी। धान की काश्त हेतु इस वर्ष रकबा कम करके 20.86 लाख हैक्टेयर रह गया है। गत वर्ष यह रकबा 22.91 लाख हैक्टेयर था।