प्रकृति का संरक्षण है कोरोना काल का संदेश 

कोरोना महामारी से लगभग सम्पूर्ण विश्व की अर्थ-व्यवस्था प्रभावित हुई है। प्राय: विपत्तियां आती हैं, और समाज को चेतावनी व संदेश देकर जाती हैं। आवश्यकता है धैर्य व संकल्प के साथ आगे बढ़ने की। यह महामारी भी प्रकृति का संदेश लायी है, जिसे समझना आवश्यक है, ताकि जीवनशैली व व्यवस्था में समचित सुधार किया जा सके।  कोरोना महामारी से बचाव के लिए सावधानी रखने, कम के कम बाहर निकलने, सामाजिक दूरी बनाकर रखने पर बल दिया गया है। वास्तव में पिछले कुछ दशकों में मीडिया से प्रभावित होकर समाज की आवश्यकताएं बहुत बढ़ गयी हैं।  परिवारों में तनाव बढ़ रहा है व बुजुर्ग उपेक्षित अनुभव कर रहे हैं परन्तु यह संकटकाल आवश्यकतओं को नियंत्रित कर सादा जीवन अपनाने की सलाह देता है। इससे अनैतिक धनार्जन व जमाखोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। समाज में धन के वितरण का दायरा बढ़ेगा व समाज में खुशहाली आयेगी। 
राजनीतिक मामलों में सामाजिक शक्ति प्रदर्शन का विशेष महत्व है। प्राय: बड़े राजनेता व अन्य वी.आई.पी. दर्जनों गाड़ियों का काफिला लेकर चलते हैं और फिजूलखर्ची में धन बर्बाद करते हैं। चुनाव प्रचार में भाड़े की भीड़ जुटाने के आरोप लगते रहे हैं। कोरोना महामारी से इन पर नियंत्रण लगेगा। अब बैठकों के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग का प्रचार बढ़ेगा। उच्च शिक्षा तथा अन्य सरकारी विभागों के राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी वीडियो कांफ्रेंसिंग का प्रचार बढ़ेगा। 
भारत लगभग 135 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाला देश है। सार्वजनिक स्थलों पर प्राय: भीड़ बनी रहती है। रेल यात्रा के लिए आरक्षित टिकट प्राप्त करना बहुत कठिन होता है। अनारक्षति यात्रा में खड़े होने की भी गुंजाइश नहीं होती। बस यात्रा में भी प्राय: यही हाल होता है। अस्पतालों में रोगियों की भीड़ के कारण चिकित्सक व पैरामेडिकल स्टाफ  लाचार हो जाते हैं व इलाज बुरी तरह प्रभावित होता है। भारी संख्या में ग्रामीण रोजगार के लिए शहरों में आते हैं। वहां एक छोटे कमरे में चार-चार या पांच-पांच लोग रहते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में ऐसी ही समस्यायें हैं। निरन्तर बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए इन समस्याओं का कोई हल दिखाई नहीं देता। ऐसी परिस्थिति में सामाजिक दूरी बनाकर रखना सम्भव नहीं है। कोरोना संकटकाल जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावकारी उपाय करने लिए शासन व्यवस्था का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। 
कोरोना महामारी पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक सेवाओं को छोड़कर अन्य गतिविधियों पर लॉकडाउन महत्वपूर्ण कदम रहा है। देश में लॉकडाउन के समय कारखाने व यातायात ठप्प हो जाने से जल व वायु प्रदूषण अकल्पनीय निचले स्तर पर आ गया। नदियों का जल निर्मल हो गया व हिमालय की चोटियां सैकड़ों किलोमीटर दूर से दिखाई देने लगीं। हमारे देश में नदियों की सफाई पर सरकारी योजनाओं में अरबों रुपयों की धनराशि खर्च होने पर भी सन्तोषजनक परिणाम न मिला। परन्तु लॉकडाउन के समय प्रकृति ने स्वयं को स्वत: दुरुस्त कर स्पष्ट कर दिया कि मानव ने विशाल जनसंख्या के भोगवादी सपनों की पूर्ति हेतु प्रकृति का अन्धाधुंध दोहन कर पर्यावरण नष्ट किया है, जो समाज के लिए घातक है।
इसी दौरान सुनसान सड़कों पर जंगली जानवर भी स्वच्छन्द विचरण करते देखे गये। सन्देश स्पष्ट है कि जनसंख्या बढ़ने से आबादी का दायरा बढ़ गया है व प्राकृतिक संसाधनों पर मानव का अधिकार बढ़ गया है। इसीलिए प्राय: मानव-पशु संघर्ष की घटनायें मीडिया में आती रहती हैं। भोजन के लिए पशु-पक्षियों पर मनुष्य की निर्भरता बढ़ गयी है। कुल मिलाकर मानव ने अप्राकृतिक रूप से पशु-पक्षियों  के क्षेत्र में अतिक्रमण किया है। चीन के वुहान शहर में कोरोना विषाणु से मानव का संक्रमित होना भी इसी का परिणाम है।   महामारी ने अनुशासन, स्वच्छता व रोग प्रतिरोधक क्षमता को महत्व दिया है। यह संकट काल सफलता के लिए धैर्य, कर्त्तव्य-निष्ठा, टीम के सदस्यों में सहयोग व समन्वय के महत्व को दर्शाता है। यह आपदा को अवसर में बदलने  व यथासम्भव आत्म-निर्भर बनने की प्रेरणा देता है। यह समाज को मानव-मूल्य, स्वास्थ्य व पर्यावरण पर विशेष ध्यान देने के लिए आह्वान करता है।