असमंजस में कांग्रेस

कभी बहुत प्रभावशाली रही राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस आज भंवर में फंसी हुई नज़र आ रही है। पिछले एक वर्ष से पार्टी के भीतर यह फैसला भी नहीं किया जा सका कि इसका पूर्ण अध्यक्ष कौन होगा? राहुल गांधी ने वर्ष 2019 में लोकसभा में पुन: हुई निराशाजनक हार के बाद इस हार की ज़िम्मेवारी अपने सिर पर लेते हुए नैतिकता के आधार पर अपना इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बयान दिया था कि वह चाहते हैं कि पार्टी का नया अध्यक्ष ़गैर-नेहरू-गांधी परिवार से होना चाहिए। इस बात की पुष्टि उनकी बहन प्रियंका गांधी ने भी की थी। 
राहुल ने अपने इस्तीफे के बाद यह भी कहा था कि वह किसी भी नये अध्यक्ष के साथ चलने के लिए तैयार रहेंगे और यह भी कि नया अध्यक्ष जहां चाहे उनको ज़िम्मेदारी सौंप सकता है। इस बात का खुलासा अब प्रकाशित हो रही एक पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक के बाहर आने से कांग्रेसी यह कह रहे हैं कि यह बात प्रियंका ने पिछले वर्ष की थी और अब हालात काफी बदल चुके हैं परन्तु यह भी विचार किया जा रहा है कि प्रियंका गांधी इस बात से पीछे नहीं हटेंगी। राहुल के इस्तीफे के बाद कोई फैसला न किये जाने के बाद कांग्रेस कार्यकारी कमेटी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी थी। उस समय यह विचार किया जा रहा था कि कुछ समय के बाद ही पार्टी अध्यक्ष का फैसला हो जाएगा। परन्तु अब अगस्त में एक वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर पार्टी के भीतर दुविधा बरकरार है तो ऐसी स्थिति ने पार्टी को और कमज़ोर ही किया है। पहले मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के नज़दीकी साथी युवा कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ब़गावत करके कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिरा दिया था और भाजपा ने पुन: वहां सत्ता पर  कब्ज़ा कर लिया था। उसके बाद राजस्थान का ड्रामा महीना भर चलता रहा और राज्य के उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट द्वारा की गई ब़गावत भारी चर्चा का विषय बनी रही। चाहे वर्तमान में इस विवाद पर काबू तो पा लिया गया है परन्तु इसने एक बार पार्टी को पुन: बुरी तरह से हिला कर रख दिया है। पंजाब में भी राज्य के पिछले दो अध्यक्षों प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो द्वारा जो ब़गावत का झंडा उठाया गया है, इस विवाद का भी शीघ्र  कहीं समाधान नज़र नहीं आ रहा, अपितु दिन-प्रतिदिन यह बढ़ता ही जा रहा है।  केन्द्रीय नेतृत्व में विरोध के स्वर उठने की सम्भावनाएं बन गई हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता संजय झा ने यह दावा किया था कि 100 के लगभग बड़े कांग्रेसी नेताओं ने निराश हो कर पार्टी की स्थिति संबंधी अध्यक्ष को एक पत्र भी लिखा था। चाहे अभी तक पार्टी के भीतर उभर कर कोई बड़ा नाम तो सामने नहीं आया परन्तु पी. चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह, गुलाम नबी आज़ाद आदि नेता प्रतिदिन अपने पंख फैलाते ज़रूर नज़र आ रहे हैं।
हम समझते हैं कि इस फैसले को लटकाये जाने में सोनिया गांधी की अपनी हिचकिचाहट अधिक नज़र आती है। इंदिरा गांधी की तरह सोनिया गांधी में भी पुत्र मोह की भावना अधिक भारी रही है। वह इस बात के लिए यत्नशील रही हैं कि राहुल गांधी पार्टी कतारों में अग्रणी खड़े दिखाई दे। ऐसी हिचकिचाहट ने ही एक वर्ष का लम्बा समय निकाल दिया है जो पार्टी के लिए और भी नुकसानदायक होता नज़र आ रहा है। आज ज़रूरत इस बात की है कि पार्टी अध्यक्ष के लिए पारदर्शी ढंग से चुनाव करवाया जाए ताकि उनमें से कोई योग्य नाम उभर कर सामने आ सके। इस समय की गई ऐसी व्यवस्था ही पार्टी के अच्छे भविष्य की जामिन हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द