यूं हुआ टेलीफोन का आविष्कार


थॉमस ए वाटसन चौदह वर्ष की उम्र में ही पढ़ाई छोड़कर बिजली की एक दुकान में काम करने लगे थें। यह दुकान ऐसे लोगों की मदद करती थी, जिसके पास किसी आविष्कार का विचार तो होता था, पर बिजली का ज्ञान न होने के कारण वे उसे बना नहीं पाते थे। ऐसे ही नवयुवक थे एलेग्जेंडर ग्राहम बैल जो बोस्टन विश्वविद्यालय में बोलने की कला सिखाते थे। इन दोनों ने मिलकर टेलीफोन का आविष्कार किया। 9 मार्च 1876 को एलेग्जेंडर ग्राहम बैल ने इसे पेटेंट करवाया और 10 मार्च को बैल ने थामस ए वाट्सट को टेलीफोन किया, मिस्टर वाटसन यहां आइए, मैं आपसे मिलना चाहता हूं। मारे खुशी के वाटसन ठीक-ठीक जवाब नहीं दे पाए। बैल ने अपने इस सहयोगी को भुलाया नहीं। सन् 1877 में बैल टैलीफोन कम्पनी के स्थापित होने पर उन्होंने वाटसन को दसवें हिस्से का साझीदार बनाया। आविष्कार के तुरन्त बाद 26 जून 1876 को फिलेडेलिफिया की शताब्दी प्रदर्शनी मे टेलीफोन को प्रदर्शित किया गया, पर इसमें किसी ने दिलचस्पी नहीं ली। ब्राजील के सम्राट ने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और बोला, ‘हे भगवान! यह तो बोलता है।’ इसके बाद तो हर ओर टेलीफोन की चर्चा होने लगी। इंग्लैड की रानी ने भी इसे देखना चाहा।  रानी को दिखाने के लिए 14 जुलाई 1877 को रानी के महल और कैंटबरी हाल के बीच टेलीफोन लाइन बिछाई गई। इसके बाद टेलीफोन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बैल ने टेलीफोन से जुड़े अनगिनत आविष्कार किये। इसके पास बीस हजार से ज्यादा पेटेंट हैं। यह प्रयोगशाला पांच नोबेल पुरस्कार भी जीत चुकी है। आज टेलीफोन और मोबाइल फोन की सफलता सबके सामने है। (उर्वशी)