दस्तक

शहर के थिएटर में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन था। इस कार्यक्रम को ज़िला सांस्कृतिक परिषद् ने आयोजित किया था और इसमें ज़िला भर से युवतियों के दल भाग लेने आए थे। इनमें कुछ कालेज की लड़कियां भी थीं। पूरे थिएटर में लोकगीतों की सुर-लहरियां गूंज रही थीं। इन लोक गीतों में पहाड़ का दर्द भी था और झरनों की मिठास भी। घाटियों की माद्कता भी थी और नदियों की कल-कल भी। वह इन सुरलहरियों के सम्मोहक में बंध गया था। तालियों की तेज़ गड़गड़ाहट ही उसे इस सम्मोहन से बाहर ले आती थी और कुछ ही क्षणों बाद वह फिर से स्वयं को इन गीतों के सम्मोहन में जकड़ा पाता।इस कार्यक्रम में एक  ऐसी युवती भी भाग लेने आई थी, जो लोकगीतों में भी अव्वल रही और ़गज़ल गायन में भी। जिसने लोक-नृत्य में भी अपनी विशेष छाप छोड़ी और मोनो एक्ंिटग में भी। उस युवती की हंसी धूप की तरह उजली थी और मुस्कुराहट बसंत की तरह मादक। उसके चेहरे पर पर्वतीय भोलापन भी था और आत्म-विश्वास की चमक भी। वह यंत्रचालित-सा उसके पास जा खड़ा हुआ।‘आपकी प्रस्तुतियां यादगार रहेंगी।’ वह अभिभूत होते हुए बोला।‘धन्यवाद।’ वह चहक उठी।‘लगता है, आप जन्मजात कलाकार हैं।’वह बस मुस्कुरा दी।‘मैं आपका साक्षात्कार लेना चाहता हूं। मैं दुनिया भर को बताना चाहता हूं कि हिमाचल में एक ऐसी गायिका भी है, जिस के सुरों के सम्मोहन में मौसम भी बंध जाता है और उदासियों की रुत्त हसरतों के प़ैगाम में बदल जाती है।’वह आश्चर्य से उसका चेहरा ताकने लगी।‘क्या साक्षात्कार के लिए कुछ पल आप निकाल पाएंगी? उसके सवाल में आग्रह भी छिपा था।’ ‘मेरे पास समय की कोई कमी नहीं है।’ वह सिर्फ इतना ही बोली। यह सुनकर वह चहक उठा था।थोड़े दिनों बाद उसने महसूस किया कि वह लड़की अपने भीतर एक पूरा समंदर समेटे है, जिसमें असंख्य सीप-मोती छिपे हैं। यह समंदर कितना गहरा है, इसका अंदाज़ा वह नहीं लगा पाया। जैसे ज्वारभाठा आने से पहले सागर की ऊपरी परत बहुत शांत लगती है, वैसे ही यह लड़की उसे बहुत शांत स्वभाव की लगी थी। कई बार साक्षात्कार करने के बावजूद वह उसके भीतर दस्तक नहीं दे पाया था। उसे लगा, प्याज़ के छिलकों की तरह वह अपनी तहों को अनावृत्त करना नहीं चाहती। उसकी आंखों में जवाब से ज्यादा सवाल होते थे और वह इन सवालों में उलझ कर रह जाता।‘मैंने एक तोता पाल रखा था। आज पिंजरा साफ करते समय वह मौका पाकर उड़ गया। पता नहीं, वह अब लौट कर आएगा भी कि नहीं।’ एक दिन उसने अपनी उदासी उसके सामने दर्ज कराते हुए कहा। ‘उस तोते को आपने खुला आकाश दे दिया। इस नेक काम के लिए तो आपको खुश होना चाहिए। मैं तो कभी इस हक में नहीं रही कि किसी के सपनों को पिंजरे में कैद कर दिया जाए।’ उसकी उदासी में शामिल होने की बजाय वह दृढ़ता से बोली।‘लेकिन मेरा तो उससे भावनात्मक नाता जुड़ गया था। उसे चूरी खिलाने के बाद ही मैं अपना भोजन करता था।’ उसने दलील दी।‘यह आपका स्वार्थ भी तो हो सकता है।’ उसने गम्भीर होते हुए कहा। वह उसके चेहरे की तरफ देखता रह गया। उसे लगा, यह लड़की किसी अलग ही मिट्टी की बनी है। उसका अपना जीवन दर्शन है। उसे यह भी लगा कि इस लड़की का अपना एक स्वतंत्र व्यक्त्वि है और उस पर कोई अपनी इच्छाएं थोप नहीं सकता। वह उसकी दलीलों से आहत नहीं हुआ बल्कि उसके शब्दों के आगे नतमस्तक होता चला गया।दिन पंख लगा कर उड़ते रहे। एक शाम जब पूरा आसामान बादलों से ढका हुआ था और हवा के तेज वेग में दरख्त सीटियां बजा रहे थे, उस लड़की ने उसके घर में दस्तक दी। उसके हाथ में कुछ किताबें भी थीं। वह उसे देख कर खिल उठा। घर में उस समय कोई नहीं था।‘वेवक्त आना बुरा तो नहीं लगा?’ उसने ड्राइंगरूम में दाखिल होते ही पहला सवाल पूछा। फिर खुद ही जवाब देते हुए बोली, ‘दिल्ली गई थी तो वहां एक पुस्तक मेले में समकालीन साहित्यकारों की कृतियां खरीदी थीं। सारी किताबें मुझे बहुत अच्छी लगीं। अगले सप्ताह आपका जन्मदिन है। आप मुझे आमंत्रित न भी करते तो भी मैं आपके यहां आती, लेकिन मुझे परसों सुबह ही शिमला जाना है। मैं दो सप्ताह वहां रहूंगी। मैं जाने से पहले आपको ये पुस्तकें भेंट करना चाहती थी। मुझे मालूम है, आप इन लेखों को पढ़ना पसंद करते हैं।’ अपने शब्दों को समेट कर वह उसका चेहरा ताकने लगी।  

(क्रमश:)