पंजाब की सभी राजनीतिक पार्टियों की कारगुज़ारी से लोग निराश

कुर्सी है तुम्हारा जनाज़ा तो नहीं है, 
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते?

देश एवं पंजाब के हालात को देख कर यह शे’अर बार-बार याद आया है। आज के दौर में कोई कुछ कर सके या न कर सके, गलत करे या ठीक, पर कुर्सी से उतरने के लिए कोई भी तैयार नहीं होता जब तक जनता उसे रद्द करके उतरने के लिए मजबूर नहीं कर देती। ़खैर देश की बात न करें, पंजाब की करें। पंजाब विधानसभा चुनावों में अभी लगभग डेढ़ वर्ष का समय शेष है। राजनीतिक स्थिति बदलने में कई बार एक रात ही काफी होती है और कई बार सिर्फ एक घटना ही किसी को लोगों के मनों में हीरो बना देती है। कई बार हीरो को ज़ीरो होते भी समय नहीं लगता। इसलिए आज ही चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करना ठीक नहीं लगता, परन्तु जो स्थिति आज पंजाब की राजनीति की है, यदि इसमें कोई करिश्मा न हुआ या कोई नया राजनीतिक ‘नायक’ सामने न आया तो पंजाब में किसी भी पार्टी को बहुमत मिलना मुश्किल हो जाएगा। 
पंजाब कांग्रेस की हालत
नि:संदेह पंजाब में कांग्रेस का शासन है परन्तु इस समय पंजाब कांग्रेस की हालत कोई अधिक अच्छी नहीं। स्थापती विरोधी रुझान शिखर की ओर बढ़ रहा है। सरकार बनने से पहले किये गये अधितकर वायदे पूरे नहीं हुए। नकली शराब की फैक्टरियों के मामले में की गयी कार्रवाई असल मुजरिमों पर पर्दा डालने का प्रभाव दे रही है। ज़हरीली शराब से मौतें सरकार के माथे का द़ाग बन गई हैं। फंडों की कमी खटक रही है। पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सैनी का रुपोश होना, बरगाड़ी, कांड को लटकाये जाना, पंजाब कांग्रेस के सांसदों का सरकार के खिलाफ बोलना, स्कालरशिप घोटाले तथा मुख्यमंत्री का स्टैंड सिर्फ साधु सिंह धर्मसोत की पोज़ीशन ही खराब नहीं कर रहा, बल्कि स्वयं मुख्यमंत्री की ओर अंगुलियां उठने का अवसर भी दे रहा है। आगामी दिनों में सिंचाई एवं जंगलात विभागों के घोटालों के सामने आने की चर्चा है। पंजाब के भीतर सभी माफिया, जिनको खत्म करने के नाम पर यह सरकार बनी थी, का और प्रोत्साहित होना पंजाब कांग्रेस का लम्बे समय से बिना ढांचे के चलना, कोरोना के मामले में मौत दर पंजाब में सबसे अधिक होना और सिविल अस्पतालों पर लोगों का डोलता हुआ विश्वास कुछ ऐसे मामले हैं, जो कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। 
देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएंगी लाशें,
ढूंढोगे तो इस शहर में कातिल ना मिलेगा।
यह सब कुछ मिल कर मुख्यमंत्री की ओर से किये गए कुछ अच्छे कामों के प्रभाव को भी खत्म कर रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा पहल करके विधानसभा में कृषि अध्यादेशों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना एक अच्छा स्टैंड है। पानी के मामले में उनका स्टैंड चाहे हमारे वास्तविक अधिकार की रायपेरियन कानून के अनुसार पंजाब में बह रहे दरियाओं पर राजस्थान और दिल्ली तो दूर की बात, हरियाणा के हक भी नहीं बनता, की तर्जमानी तो नहीं करता परन्तु फिर भी जितना स्टैंड कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ले रहे हैं, वह भी आज के हालात में उनकी हिम्मत ही माना जा रहा है। 
अकाली दल-भाजपा  गठबंधन
चाहे अकाली दल यह समझ रहा है कि कांग्रेस की खराब कार्यप्रणाली उनके लिए वरदान साबित होगी परन्तु ऐसा नहीं है। अकाली दल धार्मिक तथा राजनीतिक दोनों स्थानों पर अभी भी घिरा हुआ नज़र आता है। जो शिरोमणि कमेटी में घटित हो रहा है, वह धार्मिक तौर पर अकाली दल के लिए खतरनाक है। गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का पहला मामला अभी हल नहीं हुआ कि सैंकड़ों स्वरूपों की गुमशुदगी, उस पर की जा रही कार्यवाही तथा उसके सवाल, पूर्व मुख्य सचिव शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी हरचरण सिंह की मौत का समय व चर्चा, इस्तीफा देकर गए मुख्य सचिव रूप सिंह का बयान, दरबार साहिब के रागियों तथा मुख्य ग्रंथी के मध्य तल्ख कलामी तथा एक जत्थेदार की टिप्पणी भी अकाली दल की स्थिति ही खराब कर रही है। सुखबीर सिंह बादल द्वारा स्वरूपों के मामले में सख्त कार्रवाई करने तथा मामला खत्म करने के बारे चलते-चलते अलग-अलग चर्चाओं के बारे उनके द्वारा स्वयं स्थिति स्पष्ट न करना भी नुक्सान ही कर रहा है। 
राजनीतिक तौर पर अकाली दल के भाजपा की केन्द्र सरकार के हर फैसले के साथ खड़े होना या दिल्ली में समर्थन एवं पंजाब में विरोध की नीति भी नुक्सान कर रही है। यह ठीक है कि अकाली दल टकसाली ने अकाली दल की छवि को कोई अधिक प्रभावित नहीं किया था परन्तु सुखदेव सिंह ढींडसा के नेतृत्व वाला अकाली दल बनने से चाहे अकाली दल का अधिक कैडर तो नहीं हिला परन्तु धरातल पर अकाली दल को नुक्सान होता स्पष्ट नज़र आ रहा है। फिर अकाली दल के लिए कृषि अध्यादेशों और जम्म-कश्मीर में पंजाबी को देश निकाले के मामले पर केन्द्रीय फैसले की हानिकारक साबित हो रहे हैं। अकाली दल द्वारा केन्द्र सरकार के राज्यों के अधिकार लगातार कम किये जाने के विरोध में न बोलना भी अकाली दल की मुश्किलें बढ़ा रहा है। भाजपा अभी तक तो अकाली दल के साथ ही है। वह अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने के अभी समर्थ नहीं है। इस लिए फिलहाल चुनाव मैदान में भाजपा का भाग्य भी अकाली दल के साथ ही जुड़ा है। 
आम आदमी पार्टी की स्थिति
‘आप’ आज भी पंजाब की अधिकृत मुख्य विरोधी पार्टी है। यह भी ठीक है कि जरनैल सिंह के पार्टी प्रभारी बनने के बाद पार्टी हरकत में आई भी है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार के कार्यों का प्रचार भी पंजाब में ज़ोर-शोर के साथ हो रहा है परन्तु पार्टी का ढांचा अभी तक नहीं बना। हलका प्रभारी हटाये जाने का अच्छा प्रभाव पड़ा है। हमारी सूचना के अनुसार आगामी 1-2 सप्ताह में पार्टी के ज़िलाध्यक्ष घोषित कर दिये जाएंगे। परन्तु पार्टी के विजयी 20 विधायकों में से सिर्फ दर्जन के करीब विधायक ही पार्टी के साथ नज़र आते हैं। पार्टी अकेले सरकार बनाने की स्थिति में कहीं भी नज़र नहीं आती जबकि पार्टी के पंजाब अध्यक्ष भगवंत मान की मुख्यमंत्री के रूप में पेश किये जाने की ज़िद किसी अन्य पार्टी के साथ समझौते के रास्ते का पत्थर भी बन सकती है। फिर पार्टी का आधार 2017 से सिकुड़ा ही लगता है परन्तु 2022 अभी दूर है। 
अन्य पार्टियां 
अन्य पार्टियों में अकाली दल डैमोक्रेटिक का आधार चाहे धीरे-धीरे दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है परन्तु अभी तक उसके लिए एक लम्बा रास्ता तय करना शेष है जबकि लोक इन्साफ पार्टी, खैहरा-संधू ग्रुप, वामपंथी पार्टियां कुछेक क्षेत्रों या जिलों तक ही सीमित हैं। बसपा अध्यक्ष जसवीर सिंह गढ़ी बहुत मेहनत कर रहे हैं। पार्टी पूरे पंजाब में है भी, परन्तु अकेले चुनाव लड़ कर जीतना बहुत दूर की बात है। अकाली दल मान खालिस्तान के निशाने पर कायम है। इसलिए किसी के साथ समझौते के कोई आसार नहीं हैं। अकाली दल टकसाली भी कुछेक सीटों तक सीमित पार्टी है। 
केन्द्र और कैप्टन
पहले-पहले यह प्रभाव बनने लग पड़ा था कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह कांग्रेस हाईकमान से अधिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों का समर्थन करते हैं। 2016 में केन्द्रीय एजैंसी इन्फोर्समैंट डायरेक्टर (ई.डी.) द्वारा फेमा नियमों के उल्लघंन के मामले में उनके बेटे रणइन्द्र सिंह को बुलाया जाता था। मामला अदालत में चला गया था परन्तु लगता था कि यह ठंडे बस्ते में है। यह मामला मुख्यमंत्री के बेटे रणइन्द्र सिंह पर आयकर विभाग की शिकायत पर दर्ज था कि उन्होंने विर्जन आईलैंड में कथित रूप में ट्रस्ट मालिक होने के बारे झूठ बोला था। इसमें जकरांडा ट्रस्ट, मुलवाला होल्ंिडग लिमिटिड तथा आलवर्थ वैंचर का ज़िक्र थी और एच.एस.बी.सी. जनेवा में मिडल ईस्ट जैसी संस्थाओं के माध्यम से किया वित्तीय आदान-प्रदान न बताने के आरोप भी थे। परन्तु अब ई.डी. ने लुधियाना की अदालत में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा उनके बेटे के खिलाफ केसों में दाखिल कुछ नये दस्तावोज़ों की जांच हेतु 3 याचिकाएं दाखिल की गईं। अब यह देखने वाली बात है कि ई.डी. की मौजूदा कार्यगुज़ारी किसी राजनीतिक दबाव की रणनीति का हिस्सा है या शुद्ध कानूनी कार्रवाई। वैसे विगत कुछ समय से कैप्टन अब फिर केन्द्र सरकार के खिलाफ स्टैंड लेते दिखाई अवश्य दे रहे हैं। 

-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
मो: 92168-60000