आओ, रिश्तों का आनंद मनाएं

आज हर मनुष्य अंदर ही अंदर से अपने आपको खोखला महसूस कर रहा है। सामाजिक ताने-बाने की डोर तार-तार हो रही है। आज आधुनिकता की दौड़ में और सोशल मीडिया के युग में रिश्तों का सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है भाव यह है कि रिश्ते मर रहे हैं। फेसबुक पर हम हज़ारों रिश्ते बना चुके हैं जिनको हमने कभी भी असल ज़िन्दगी में देखा भी नहीं होता लेकिन उनकी दुनिया में मस्त रहना हमें अच्छा लगता है। जबकि हमें पता है कि यह रिश्ते सब नाम के हैं और कभी भी मुसीबत में काम नहीं आने वाले लेकिन फिर भी हम अपनी ज़िन्दगी का अधिक समय इनके साथ बिता रहे हैं। सोशल मीडिया ने मानवीय रिश्तों को इस तरह दूर कर दिया है कि हर कोई अपनी अलग दुनिया बना कर बैठा है जिसमें वह किसी अन्य की दखलांदाज़ी बिल्कुल पसंद नहीं करता लेकिन इनके परिणाम बहुत भयानक सामने आ रहे हैं। 
माता-पिता बच्चों को पूरा समय नहीं दे रहे। बड़े हो रहे बच्चे माता-पिता से दूरी बनाने की कोशिश करते हैं। घर में बड़ों के सम्मान में बहुत कमी आ रही है। हम सोशल मीडिया पर तो हज़ारों लोगों के साथ जुड़े हुए हैं लेकिन पड़ोस में कौन रह रहा है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं। अगर अध्यापक और विद्यार्थियों की बात करें तो वह रिश्ते भी बहुत कमज़ोर हो रहे हैं। इसी कारण रिश्तों में अपनापन खत्म हो रहा है। सगे भाईयों को भी एक-दूसरे का दुश्मन समझा जाने लगा है। सभी रिश्ते फीके पड़ रहे हैं जिसके कारण लोग एक-दूसरे से दूर हो रहे हैं। जब हम कभी अकेले हो जाते हैं और हमारे मन को दिलासा देने वाला और बात को सुनने वाला कोई नहीं होता तो हम डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोगों का तो अकेले रहना मुश्किल हो जाता है तो वह नशे के शिकार हो जाते हैं। इस तरह के माहौल में हमारे समाज को रिश्तों की गरिमा को समझना चाहिए।
रिश्तों का निभाने के लिए हमें अपनी जड़ों के साथ जुड़ना पड़ेगा। हमारे समाज में तो अधिकतर दिन त्यौहार भी रिश्तों के साथ जुड़े हुए हैं। रिश्तों के बिना तो त्यौहार भी अधूरे हैं क्योंकि इनके द्वारा ही त्यौहारों की शोभा होती है। इनको बनाए रखने के लिए हैसियत बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है जिसकी शुरुआत घर से ही होगी। बड़ों का घर में सम्मान होना चाहिए और बच्चों के जीवन में दादा-दादी और नाना-नानी की क्या महत्व होता है, के बारे में ज़रूर बताना चाहिए। जब पहले समय में बच्चे छुट्टियों में नाना-नानी के घर जाते थे तो उनको रिश्तेदारों के बारे में पता लगता था। इसी प्रकार यदि दादा-दादी, चाचा-चाची मिलकर बैठते हैं तो बचपन की यादों को साझा करते हैं तब बच्चों को बहुत आनंद आता था। एक-दूसरे के पास आने से रिश्तों की डोर मज़बूत होती थी लेकिन आज के आधुनिक  युग में मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि उसके घर में रिश्तेदारों के लिए जगह नहीं रही। दूसरी ओर घर की सुख-सुविधाओं को छोड़ कर आज के समय में कोई आना भी पसंद नहीं करता। 
आओ हम सभी मिल कर रिश्तों को बनाए रखने की कोशिश करें और रिश्तों के रस को बनाए रखने के लिए और आनंद लेने के लिए मर्यादा, सम्मान आदि का ध्यान रखें। हर घर में बड़ों और बेटियों का सम्मान होना चाहिए। मुसीबत के समय हर रिश्तेदार एक-दूसरे के काम आए। हम रिश्तों के प्रति वफादार और ईमानदार रहने की कोशिश करें। इसी तरह रिश्तों के मेल-मिलाप के द्वारा हर कोई अपने-आप को सुरक्षित समझेगा। इसीलिए हम सभी को रिश्तों में कमी ढूंढने की बजाय गुणों को देखना चाहिए ताकि रिश्ते हमेशा जीवित रहे सकें।