सम्पूर्ण राष्ट्र के हितार्थ सिद्ध होगी नई शिक्षा नीति 

शिक्षा जीव को मनुष्य और मनुष्य को ऐसा इन्सान बनाती है जो अपनी प्रतिभा, ज्ञान और दक्षता से समाजोपयोगी और सहयोगी बन सकता है। शिक्षा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक मूल्यों से समन्वय करते हुए एक ऐसे विकासोन्मुखी समाज का निर्माण करती है जो हर प्रकार के भेदभाव और बंधनों से मुक्त होता है। इसलिए किसी भी राष्ट्र के निर्माण और उत्थान में शिक्षा की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। जब यूरोप और शेष विश्व अभी शिक्षा के विद्यालयों का प्रसार करने की सोच रहा था, उस समय भी भारत में कई लाख शिक्षा के केन्द्र (गुरुकुल) थे। नालन्दा और तक्षशिला की विश्व ख्याति रही है लेकिन विदेशी आक्र ांताओं ने हमारी शिक्षा और संस्कृति पर प्रहार किया। अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद इंग्लैंड ने भारतीय शिक्षा को ध्वस्त करने का प्रयास किया। इस कार्य का दायित्व लार्ड मैकाले को दिया गया। 2 फरवरी, 1835 को ब्रिटेन की संसद में मैकाले ने कहा था, ‘भारत का विस्तृत भ्रमण करने पर मैंने पाया कि वहां एक भी व्यक्ति बेईमान नहीं है। लोगों के अंदर उच्च नैतिक आदर्श एवं चरित्र वहां के सामाजिक संरचना की पूंजी है जैसा कि मैंने और कहीं नहीं देखा। लोगों के मन में आध्यात्मिकता, धार्मिकता एवं अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति अटूट आस्था है । वे बड़े मनोबली हैं। लोगों के आपसी विश्वास एवं सहयोग की भावनाओं को तोड़े बिना, उन्हें भ्रष्ट किए बिना भारत को जीतना और उसपर शासन करना असंभव है। अत: मैं प्रस्ताव रखता हूं कि नई शिक्षा नीति बनाकर वहां की प्राचीन शिक्षा प्रणाली एवं संस्कृति पर हमला किया जाए ताकि लोगों का मनोबल टूटे और वे विदेशी खासकर अंग्रेजी और अंग्रेजियत को अपनी तुलना में महान समझने लगें। तब वही होगा जैसा कि हम चाहते हैं। अपनी संस्कृति और स्वाभिमान को खोया हुआ भारत पूर्णत: गुलाम और भ्रष्ट भारत होगा।’अपने इस अभियान में मैकाले सफल हुआ लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी मैकाले पैटर्न जारी रहना दुर्भाग्यपूर्ण था। समय-समय पर शिक्षा नीति की समीक्षा की गई लेकिन ज्ञान प्रसार के इस क्र म को विदेशी वैसाखियों से मुक्त होने ही नहीं दिया गया। शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा होना ज्ञान के प्रसार में सबसे बड़ी बाधा बना रहा। यह संतोष का विषय है कि 34 वर्ष बाद विस्तृत समीक्षा के बाद नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को महत्त्व दिया गया है।कोई भी बच्चा सबसे पहले अपनी मातृभाषा सीखता है और उसका स्थायी प्रभाव उसके जीवन पर रहता है। वह आवश्यकता अनुसार अन्य भाषाएं भी सीख सकता है लेकिन उसकी मूल वैचारिक संरचना मातृभाषा अथवा परिवेश की भाषा में ही रहती है। बार-बार के वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार शिक्षा की गुणवत्ता अपनी भाषा में ही संभव है। मनोचिकित्सक छोटे बच्चों पर अनेक भाषाएं लादने को अत्याचार बताते हैं। जीवन अपनी भाषा में जीते हुए अध्ययन एवं सोच-विचार में एक विशिष्ट भाषा की बाध्यता औपनिवेशिक मनोवृत्ति की मजबूरी हो सकती है लेकिन स्वतंत्र और स्वाभिमानी राष्ट्र को इस कलंक से निजात पानी ही चाहिए।  यह प्रसन्नता की बात है कि नई शिक्षा नीति में सभी भारतीय भाषाओं के लिए संरक्षण, विकास और उन्हें और जीवंत बनाने के लिए नई शिक्षा नीति में पाली, फारसी और प्राकृत भाषाओं के लिए एक इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई), राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना करने, उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत और सभी भाषा विभागों को मजबूत करने और ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षण संस्थानों के कार्यक्र मों में, शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा, स्थानीय भाषा का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।स्कूल पाठ्यक्र म के 10+2 ढांचे की जगह 5+3+3+4 की नई पाठयक्र म संरचना लागू की जा रही है। यह क्र मश: आयुवर्ग 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है।  12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी जहां छोटे बच्चों को आरंभिक शिक्षा के साथ-साथ नाश्ता और मिड-ड-मील भी होगा। इस 5 में तीन साल की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है। अगले चरण में कक्षा 3 से 5 को रखा गया है तो उससे अगले चरण में मिडिल स्कूल अर्थात् 6-8 कक्षा है जहां पाठ्यक्र म को विषयों के अनुसार बनाया जाएगा। छठी कक्षा से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। संगीत और कला को बढ़ावा देने के लिए उन्हें पाठ्यक्र म में शामिल किया  जाएगा। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा यथावत जारी रहेगी लेकिन देश के भावी नागरिकों के समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए परख (समग्र विकास के लिए कार्य-प्रदर्शन आंकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) की कसौटी होगी।  विशेष बात यह कि नई शिक्षा नीति के अनुरूप शिक्षक तैयार करने के लिए राष्ट्रीय प्रोफेशनल मानक (एनपीएसटी) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद विकसित की जाएगी जिसमें एनसीईआरटी, एससीईआरटी, शिक्षकों और सभी स्तरों एवं क्षेत्रों के विशेषज्ञ संगठनों की भूमिका भी होगी। कुछ विघ्नसंतोषी लोग नई शिक्षा नीति को समझे बिना अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के लिए विवाद खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि सरकार बार-बार स्पष्ट कर चुकी है कि नई शिक्षा नीति में भी पांचवीं क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे आठवीं कक्षा अथवा उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी लेकिन यह भी स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। कुल मिलाकर नई शिक्षा नीति स्वागत योग्य कदम है। यदि अनुभव के बाद किसी परिवर्तनध् संशोधन की आवश्यकता होगी तो उचित समय पर वह भी किया जा सकेगा।  (अदिति)