कोरोना संकट में साथी बनी रही साइकिल

तालाबंदी (लाकडाउन) के दौरान देश के दूसरे प्रदेशों में कमाने गए लोगों को अपने घर जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल पा रहे थे। ऐसे में करोड़ाें लोग खुद को दूसरे प्रदेशों में फंसा हुआ महसूस कर रहे थे। इस दौरान लाखों लोग साइकिल पर 1000-1500 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने-अपने घर पहुंचे। संकट के समय साइकिल ही उनके घर पहुंचने का एकमात्र साधन बनी। तालाबंदी के दौरान लाखों लोगों के घर पहुंचने का सबसे उपयोगी साधन बनने से लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी कि साइकिल आज भी आम लोगों का सबसे सस्ता व सुलभ साधन है। इसकी प्रासंगिकता हमेशा बरकरार रहेगी।पूरी दुनिया में पिछले दिनों विश्व साइकिल दिवस मनाया गया था। वेबिनार के माध्यम से बहुत जगह संगोष्ठी आयोजित कर साइकिल के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया। इसी दौरान देश में साइकिल से जुड़ी दो ऐसी खबरें आईं जिनसे साइकिल एक बार फिर से चर्चा का मुख्य विषय बन गई। पहली खबर में एक 15 साल की एक लड़की अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर गुड़गांव से 12 सौ किलोमीटर दूर बिहार के अपने गांव ले जाती है। दूसरी खबर भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कम्पनी एटलस के बंद होने की थी।प्रतिवर्ष 40 लाख साइकिल का उत्पादन करने वाली भारत की सबसे बड़ी व दुनिया की जानी मानी कम्पनी के बंद होने से साइकिल उद्योग को बड़ा धक्का लगा है। एटलस की फैक्टरी बंद होने से वहां काम करने वाले करीबन एक हज़ार लोग बेरोज़गार हो गए हैं।  साइकिल कम्पनी की स्थापना 1951 में हुई थी। यह भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कम्पनी थी। इसका कई विदेशी साइकिल निर्माता कम्पनियों के साथ भी गठबंधन था जिस कारण उक्त कम्पनी की साइकिल दुनिया भर की श्रेष्ठ साइकिलों में शुमार होती थी। उक्त कम्पनी की साइकिल देश-विदेश में एक जाना माना ब्रांड था। अमरीका के बड़े-बड़े डिपार्टमेंट स्टोर में भी कम्पनी में बनी साइकिलें बेची जाती थीं। दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कम्पनी का विश्व साइकिल दिवस के दिन ही बंद हो जाना बड़े दुर्भाग्य की बात है। आज दुनिया भर के देशों में जहां साइकिल चलाने को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं एक बड़ी साइकिल बनाने वाली कंपनी घाटे के चलते बंद हो जाती है। 2018 से ही दुनिया में पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाना शुरू हुआ था। इस बार तीसरा विश्व साइकिल दिवस मनाया गया है।गुरुग्राम में रह रहे एक बीमार आटो रिक्शा चालक की 15 वर्षीय बेटी उसकी सहायता के लिए उसके साथ रह रही थी। अचानक तालाबंदी होने से पिता-पुत्री गुरुग्राम में फंस गये। उनके पास बिहार स्थित अपने गांव जाने के लिए कोई साधन नहीं था। बीमार आटो चालक का गुरुग्राम में उपचार भी नहीं हो पा रहा था। उसको लग रहा था कि यदि कोई साधन मिले तो वह यहां की बजाय बिहार जाकर अपने घर पर ही मरे तो ज्यादा अच्छा होगा। ऐसे में उसकी 15 साल की बेटी ने अपने बीमार पिता को साइकिल पर अपने घर ले जाने की ठानी और पिता से कहकर एक पुरानी साइकिल खरीदी। साइकिल के कैरियर पर अपने बीमार पिता को बिठाकर 15 साल की ज्योति कुमारी 8 दिनों में 1200 किलोमीटर साइकिल चलाकर कुशलता पूर्वक बिहार जा पहुंची। पहले शहरों में किराए पर भी साइकिलें मिलती थी। बढ़ते प्रदूषण की वजह से दुनिया के बहुत से देशों में साइकिल चलाने को बढ़ावा दिया जा रहा है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में सिर्फ साइकिल चलाने की ही अनुमति है। भारत में भी दिल्ली, मुम्बई, पुणे, अहमदाबाद और चंडीगढ़ में सुरक्षित साइकिल लेन का निर्माण किया गया है। उत्तर प्रदेश में एशिया का सबसे लम्बा साइकिल हाई-वे बना है जिसकी लम्बाई करीबन 200 किलोमीटर से अधिक है। भारत में साइकिल ने आर्थिक तरक्की में अहम भूमिका निभाई है। आजादी के बाद अगले कई दशक तक देश में साइकिल यातायात व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा रहती थी। 1960 से 1990 तक भारत में ज्यादातर परिवारों के पास साइकिलें होती थीं। यह व्यक्तिगत यातायात का सबसे किफायती, सस्ता और सबसे सुगम साधन है। शहरों में आज भी दूध की सप्लाई ज्यादातर साइकिल के माध्यम से ही की जाती है। डाक विभाग के पोस्टमैन तो आज भी साइकिल पर चिट्ठियां बांटते मिलते हैं। देश की युवा पीढ़ी को अब साइकिल के बजाय मोटरसाइकिल ज्यादा अच्छी लगने लगी है। इसके बावजूद में भारत में साइकिल की अहमियत कभी खत्म नहीं हो सकती। इसी कारण चीन के बाद आज भी भारत दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिल बनाने वाला देश है।  (अदिति)