पंजाब को मौजूदा बुरे दौर से निकालने वाले सर्व-सम्मत नेता की ज़रूरत

समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई,
कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पण नहीं मिलता।

राजनीति के कितने चेहरे हैं, किसी को कुछ नहीं पता होता और राजनीतिज्ञ अपना चेहरा कब और किस तरह बदल लेते हैं, किसी को कुछ समझ नहीं आता। पंजाब का दुर्भाग्य है कि एक तरफ वह इतिहास के एक अलग तरह के बुरे दौर से गुज़र रहा है और दूसरी तरफ पंजाब के पास नेतृत्व करने वाला एक भी नेता नहीं, जिस पर पंजाबी पूर्ण विश्वास कर सकें। विशेषकर सिख कौम की हालत तो इस मामले में और भी खस्ताहाल है। पंजाब की कृषि इस समय केन्द्र के धक्के के खिलाफ जीवन-मृत्यु की लड़ाई लड़ रही है। एक तरफ पंजाब की कैप्टन सरकार किसानों के पक्ष में केन्द्र द्वारा जारी अध्यादेशों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर हीरो बनती है और दूसरी तरफ केन्द्र का एक मंत्री यह इलज़ाम लगा देता है कि ये फैसले करते समय पंजाब के मुख्यमंत्री भी मुख्यमंत्रियों की उस हाईपावर कमेटी के सदस्य थे जिसने इनके पक्ष में समर्थन किया था। वह बाकायदा 1 जुलाई, 2019 को नीति आयोग की ‘भारतीय कृषि कायाकल्प’ के लिए हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री के शामिल होने की बात भी कहता है और इस हाईपावर कमेटी की 16 अगस्त, 2019 की बैठक में पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के शामिल होने की भी चर्चा करता है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह केन्द्रीय मंत्री पर गलत तथ्य पेश करने तथा आवश्यक वस्तुओं के संशोधन विधेयक को अदालत में चुनौती देने की बात भी कह रहे हैं। दूसरी तरफ अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, जिनकी पत्नी ये अध्यादेश जारी करने वाले केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल है, अध्यादेश जारी होने के बाद लोकसभा का अधिवेशन शुरू होने तक इन विधेयकों तथा अध्यादेशों को पंजाब तथा किसानों के पक्ष में साबित करने हेतु पूरा ज़ोर लगा देते हैं परन्तु अचानक उलटा मोड़ काटते हैं और इन विधेयकों के विरोध में खड़ा होने की घोषणा कर देते हैं। परन्तु विरोध करने से पहले यह विधेयक लाने वाली सरकार में अपनी पार्टी की मंत्री के बाहर आने का न तो फैसला लेते हैं और न ही सरकार छोड़ने की कोई धमकी ही देते हैं। ऐसी स्थिति में लोग किस पर विश्वास करें और किस पर नहीं, कुछ समझ नहीं आता। 
अकाली दल की मजबूरी?
इस समय राजनीतिक हलकों में यह चर्चा शिखर पर है कि अकाली दल अपने स्टैंड से एक उलट स्टैंड लेने के लिए क्यों और कैसे मजबूर हुआ। वास्तव में यह कोई रहस्य नहीं है। हमारी जानकारी के अनुसार कृषि से संबंधित अध्यादेशों तथा बिजली संशोधन विधेयक के खिलाफ किसान संगठनों द्वारा संघर्ष की घोषणा के बाद ही अकाली दल का शीर्ष नेतृत्व विचारधारक तौर पर 2 हिस्सों में बंट गया है। पता लगा है कि प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बलविन्द्र सिंह भूंदड़, नरेश गुजराल, जत्थे. तोता सिंह, बलदेव सिंह मान, बीबी उपेन्द्रजीत कौर तथा सिकंदर सिंह मलूका चाहे पार्टी के फैसले के विपरीत नहीं बोले परन्तु पार्टी के भीतर वे इस विचार के समर्थक थे कि इन अध्यादेशों के समर्थन में कोई स्टैंड न लिया जाए। परन्तु स्वयं बीबी हरसिमरत कौर बादल, बिक्रम सिंह मजीठिया, डा. दलजीत सिंह चीमा, महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल तथा पार्टी अध्यक्ष के अतिरिक्त प्रत्येक मसले में पार्टी अध्यक्ष की हां में हां मिलाने वाले अकाली नेता इसके पक्ष में थे कि इससे किसानों को लाभ होगा और भाजपा के साथ बिगाड़ना नहीं चाहिए। यहां तक कि अकाली दल ने बढ़ते विरोध को रोकने के लिए प्रकाश सिंह बादल से भी इसके पक्ष में बयान दिलवा दिया। परन्तु अब जब किसान संगठनों का विरोध ज़ोर पकड़ गया है और पार्टी के हलका प्रभारी एवं विधायक ये सूचनाएं देने लगे हैं कि इस स्थिति से अकाली दल का अपना कैडर भी नाराज़ तथा निराश हो रहा है तो अकाली दल को अपना स्टैंड बदलना पड़ा। अब देखने वाली बात यह है कि अकाली दल द्वारा एकदम स्टैंड बदलने से अकाली दल किसानों तथा अपने कैडर में अपनी छवि बचाने में सफल होता है या नहीं? हमारी राय में यह फैसला करके अकाली दल अपना केडर बचाने में कुछ हद तक सफल रहेगा परन्तु इस तरह लिया फैसला अकाली दल के लिए नयी मुश्किलें तथा प्रश्न भी खड़े करेगा। वैसे अंतिम समय में अकाली दल ने भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मिल कर अंतिम कोशिश की कि  विधेयक टाल दिए जाएं परन्तु किसी ने परवाह नहीं की। अब नि:संदेह अकाली दल ने यह फैसला बहुत देर से लिया है परन्तु इससे भाजपा को छोड़ कर पंजाब की शेष सभी राजनीतिक पार्टियां इस मामले पर एक तरफ खड़ी नज़र आने लग गई हैं। इसका केन्द्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसके आसार तो कम ही नज़र आते हैं। 
बड़े बादल साहिब परेशान?
प्राप्त जानकारी के अनुसार अचानक बने हालात के बाद प्रकाश सिंह बादल स्थिति को संभालने के लिए पार्टी के विभिन्न प्रमुख नेताओं से बात कर रहे हैं ताकि आगामी रणनीति तय की जा सके। पता लगा है कि वह मुख्य तौर पर भाजपा से नाता तोड़ने या न तोड़ने तथा बीबी हरसिमरत कौर की ओर से इस्तीफा देने या न देने के बारे विचार-विमर्श कर  रहे हैं। हमारी जानकारी के अनुसार ये पंक्तियां लिखे जाने   तक हरसिमरत कौर बादल द्वारा इस्तीफा दिये जाने के बारे कोई सहमति नहीं बनी थी। यह भी पता चला है कि इस समय पार्टी के कुछ नेता इस्तीफा देने के पक्ष में हैं और दूसरे कह रहे हैं कि आप विधेयकों के खिलाफ वोट देकर अपना फज़र् निभाएं भाजपा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस से नाराज़ होकर यदि हरसिमरत कौर बादल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करते हैं तो इसका अधिक राजनीतिक लाभ होगा।
अकाली दल  का व्हिप एवं स. ढींडसा
अकाली दल के वैसे भी सिर्फ 5 सांसद हैं जिनमें 2 लोकसभा तथा 3 राज्यसभा में हैं परन्तु क्रियात्मक रूप में ये चार ही हैं क्योंकि सुखदेव सिंह ढींडसा को पार्टी से निकाला जा चुका है और वह अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। अकाली दल ने कृषि से संबंधित विधेयकों के विरोध में जो व्हिप जारी किया है, हमारी जानकारी के अनुसार वह व्हिप सिर्फ राज्यसभा के लिए ही जारी किया गया है। लोकसभा के लिए कोई व्हिप जारी हुआ। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अकाली दल यह कह रहा है कि इस व्हिप को सुखदेव सिंह ढींडसा को भी मानना पड़ेगा जबकि ढींडसा तो शुरू से ही इन अध्यादेशों तथा विधेयकों के खिलाफ बोल रहे हैं। चर्चा है कि वास्तव में ऐसा करके अकाली दल चाहता है कि ढींडसा राज्यसभा में एक अकाली सांसद होने के कारण बोलने का समय न ले सकें। परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार ढींडसा गत दिवस ही राज्यसभा के चेयरमैन तथा उप-राष्ट्रपति वैंकेया नायडू को मिल कर अकाली दल से अलग समय देने का निवेदन कर चुके हैं परन्तु यह चेयरमैन के मज़र्ी होगी कि ढींडसा को समय देते हैं या नहीं?इन से उम्मीद न रख ये हैं सियासत वाले।
ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले।

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