भारतीय सेना में बढ़ती जंगी बेड़ों की क्षमता

सशक्त और शक्तिशाली भारत के लिए देश की तीनों सेनाओं का आधुनिकतम शस्त्रों और युद्धक हवाई-जहाज़ों व हेलिकॉप्टरों से सुसज्जित होना आवश्यक है। इस दृष्टि से भारत ने लद्दाख में चीन से तनातनी के चलते रूस से 33 लड़ाकू विमानों की आपात खरीद का फैसला लिया है। रूस से 12 सुखोई-30 और 21 मिग-29 विमान खरीदे जाएंगे। इन सुपर सुखोई विमानों से 600 किमी तक मार करने वाली मिसाइलें दागी जा सकती हैं। भारतीय वायुसेना  को राफेल विमानों की ताकत भी मिली है। अब वायुसेना में जंगी बेड़ों की क्षमता करीब 20 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इनमें आधुनिक तकनीक से लैस राफेल, अपाचे, सुखोई, मिग, धु्रव और शिनूक जंगी बेड़े शामिल हुए हैं। वायुसेना ने अपनी युद्धक इकाइयों को आक्रामक बनाने के नजरिये से इसकी संरचना में भी बदलाव किए हैं। वायुसेना के युद्ध अभियानों के लिए करीब 2000 योद्धाओं और तकनीशियनों की भर्ती की गई है। इन जांबाजों (फाइटर स्कवाड्रन) की भर्ती से सैन्यबलों में पूर्व से तैनात अधिकारियों पर काम का दबाव भी कम होगा। साफ  है, इस वायुसेना दिवस के अवसर पर वायु सैनिकों का हौसला बुलंद है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही रक्षा सौदों में गंभीर रुचि ली जा रही है। अमरीका से 165 अरब रुपए के लड़ाकू हेलीकॉप्टर एवं अन्य रक्षा उपकरण खरीदने का बड़ा सौदा पहले ही हो चुका है। अमरीका विमानन कंपनी बोइंग से 22 अपाचे हमलावर हेलीकॉप्टर और 15 शिनूंक भारी हेलीकॉप्टर खरीदा जाना देश की सुरक्षा के लिए ज़रूरी था। फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे के बाद इनका भारत आना शुरू हो गया है। एक राफेल विमान की अनुमानित कीमत करीब 58,000 करोड़ रुपए है। पिछले करीब 20 साल से देश ने लड़ाकू विमानों का कोई सौदा नहीं किया था। इस वजह से वायुसेना में लड़ाकू विमानों की लगातार कमी होती जा रही थी। नतीजतन देश की हवाई सुरक्षा खतरे में पड़ी थी। हालात इतने गंभीर होते जा रहे थे कि उपलब्ध विमानों के बेड़ों की संख्या घटकर 32 के करीब पहुंच गई थी। लड़ाकू विमान व हथियारों के ये सौदे इसलिए अहम् हैं, क्योंकि हमारे पड़ोसी दुश्मन देश चीन और पाकिस्तान में लड़ाकू विमान लगातार बढ़ रहे हैं। इन दोनों देशों की वायु-शक्ति की तुलना में हमारे पास कम से कम 756 लड़ाकू विमान होने चाहिएं। सेना में विमान, हथियार और रक्षा उपकरणों की कमी की चिंता संसद की रक्षा संबंधी स्थायी संसदीय समिति और नियंत्रक एवं महानिरीक्षक की रिपोर्टें भी जताती रही हैं। संसदीय समिति ने तो यहां तक कहा था कि लड़ाकू जहाज़ी बेड़ों की संख्या में इतनी कमी पहले कभी नहीं देखी गई। यह स्थिति सैनिकों का मनोबल गिराने वाली थी, लेकिन अब वायुसेना बेहतर स्थिति में है। अपाचे का सौदा हाइब्रिड है। इस हेलिकॉप्टर में हथियार, राडार और इलेक्ट्रोनिक युद्ध उपकरण लगे हुए हैं। पिछले एक दशक के दौरान अमरीकी कम्पनियों ने तकरीबन 10 अरब डॉलर मूल्य के रक्षा सौदे भारत से किए हैं। इनमें पी-81 नौवहन टोही विमान एसी-130एजे सुपर, हरक्यूलियस और सी-17 ग्लोबमास्टर-3 जैसे विमानों की खरीद शामिल हैं। अपाचे एएच-64 लॉन्गबो हेलिकॉप्टर आधुनिक होने के साथ बहुलक्षीय युद्धक विमान है। यह हर मौसम और रात में भी युद्ध अभियानों में सक्रिय रहने की क्षमता रखता है। इसकी प्रमुख खूबी है कि यह एक मिनट से कम समय में 128 लक्ष्यों को चिन्हित कर सकता है और 16 लक्ष्यों पर निशाना साधता हुआ बच निकल सकने की विलक्षणता रखता है। दुश्मन के राडार पर इसका अक्स दिखाई नहीं देता। इसके संवेदी यंत्र आधुनिक हैं और इसकी मिसाइलें, जो दृश्य दिखाई दे रहा है, उससे भी आगे तक प्रहार करने की क्षमता रखती हैं। इसकी अधिकतम गति 315 किमी प्रति घंटा है जबकि समुद्र में यही गति 240 किमी प्रति घंटा रह जाती है। यह 55 सैनिक और 12,700 किलोग्राम वजन ढो सकता है। कारगिल जैसी ऊंचाई वाली चोटियों पर भी यह हेलिकॉप्टर पहुंच सकता है। गालवन की चोटियों पर भी यह आसानी से पहुंच जाएगा। अपाचे और शिनूक हेलिकॉप्टरों का उपयोग अफगानिस्तान और ईराक जैसे सैन्य अभियानों में बेमिसाल रहा है। बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद वायुसेना ने तमिलनाडू के तेंजावुर में सुखोई-30 एमकेआई के बेड़े को तैनात किया है। इस बेड़े में सुखोई विमानों को 2.5 टन के हवा से मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस किया हुआ है। ये मिसाइलें 300 किलोमीटर की दूरी तक अचूक निशाना साधने में सक्षम हैं। इस एक बेड़े में 18 लड़ाकू विमान होते हैं। पिछले एक साल में वायुसेना ने युद्धक क्षमताओं को बढ़ाते हुए हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों व अन्य घातक हथियारों की क्षमता बढ़ाई है। इनमें बेहतर मारक क्षमता वाले स्पाइस 2000 बम और स्ट्रम अटाका नाम की एंटी-गाइडेड मिसाइलें शामिल हैं।   1978 में जब जैगुआर विमानों का बेड़ा ब्रिटेन से खरीदा गया था, तब ब्रिटेन ने हमारी लाचारी का फायदा उठाते हुए हमें ऐसे जंगी विमान बेचे थे, जिनका प्रयोग ब्रिटिश वायुसेना पहले से ही कर रही थी। राफेल भी फ्रांस द्वारा प्रयोग में लाए गए विमान हैं।  लिहाजा जब तक हम विमान निर्माण के क्षेत्र में स्वावलम्बी नहीं होंगे, लाचारी के समझौताें की मजबूरी झेलते रहेंगे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि हम चीन की तुलना में कम सैन्य क्षमता वाले देश हैं  हालांकि हमारी सैनिक संख्या चीन से ज्यादा है। ग्लोबल फायर पॉवर डॉट कॉम के मुताबिक भारत के पास 34,62,500 सैनिक हैं, जबकि चीन के पास 26,93,300 हैं। 

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