दीवाली का फुटपाथी इंतज़ार

साल भर के बाद उत्सव, त्योहार मनाने के दिन आ गये।  जिन लोगों का पिछले कुछ महीनों में अपनी जेब फट जाने का एहसास कुछ और गहरा हो गया था, उन्हें अपनी जेबों के सिल जाने, उसमें चन्द गुलाबी नोटों की झलक आ जाने की प्रार्थाना के साथ मां लक्ष्मी का पूजन करना है। इधर लक्ष्मी पूजन के लिए धन्ना सेठों की गाड़ियां पिछले कई महीनों से आतंक की पीड़ा से अकेले हो गये लक्ष्मी पूजन स्थलों के बाहर भी लगने लगी हैं।  पूजन तो उन्हें पहले करना है, फिर इन गाड़ियों का महाप्रयान पूजन स्थलों से द्यूतस्थलों की ओर अगर हो गया तो शायद उनकी बारी भी आ जाएगी। फुटपाथी लोगों को अपनी बारी का इन्तज़ार करने की आदत हो गई है। ऐसे महोत्सव में लक्ष्मी पूजन के लिए जिस धीरज, जिस शान्ति, जिस समर्पण की आवश्यकता होती है, वह समर्पण तो उन्हें मिल गया, हां इस वंदना प्रवंचना की इस लम्बी कतार का आखिरी आदमी होने के अस्तित्व का एहसास ही उनका धीरज और समर्पण है। 
इधर सुना था युग बदल गया है। दम तोड़ने को नियति स्वीकार करने वाले आम आदमी के लिए दीयों के इस त्योहार में खुली आंखों में कुछ नये दीये जलाने का वक्त आ गया है। अजी बन्धुवर यहां तो बन्द आंखों ने ही सपने देखने से इन्कार कर दिया था। भूखे पेट रातों की नींद को आमन्त्रण देकर देखिये, वहां कैसी ऊबड़-खाबड़ उखड़ी हुई पगडंडियों के रास्ते खुल जाते हैं। इन पगडंडियों की बरसों से मुरम्मत न होने की वजह से यहां नोकीले पत्थर उभर आये हैं। टूटी पगडंडियों पर वे नंगे पांव चलने का साहस करते हैं, तो लहूलुहान हो जाते हैं। अब आपने क्या कभी लहूलुहान सपनों में से फूलों की खुशबू देखी है, लेकिन इस बार का महा दीपोत्सव तो अलग है। 
आओ इस बार तो इन पुण्य दिनों में रिसते हुए सपनों की बात न करें। यह सही है कि आपका कूड़ा आपकी ज़िम्मेदारी कह कर नगर निगमों ने सड़कों और चौराहों, गलियों और बाज़ारों से कूड़ा बुहार, उन्हें लकदक चमकाने की ज़िम्मेदारी आपको दे महा लक्ष्मी के आगमन की पूरी तैयारी कर ली है। इस ज़िम्मेदारी को तो निभाना ही है, क्योंकि इस बार दीवाली सबको अलग ढंग से मनानी है। लम्बे झाड़ू से अपना अन्दर और बाहर ही नहीं बुहारना है, सड़क चौराहा भी साफ कर देना है, क्योंकि उन्हें साफ करने के लिए आयात की गई रोबोट मशीनों को चलाना कैसे है, इसका प्रशिक्षण और अभ्यास अभी निजी कम्पनियों के बाशिंदों को करना है। देश में अचानक प्रचलित और स्वीकृत हो गये ठेकेदार इसे करवा रहे हैं, और अपने निजी उद्यम को एक और राहत की सांस बख्श रहे हैं। 
वैसे मोहल्ला, शहर और समाज बुहारने का जिम्मा जिन सरकारी बिल्लाधारियों को मिला था, बेशक उनकी नौकरी बरकरार है और उनके संगठन भी। देखिये न वे देश के लिए क्रांति पुकारने के अग्रदूत हो गए हैं। इस कोरोना काल में उन्होंने चेहरे पर मास्क, हाथों में दस्ताने पहन कर एक-दूसरे से सामाजिक अन्तर रख कर धरना लगाना सीख लिया है। ऊंचा चिल्लाओ तो मां रोटी देती है। उन्हें बता दो बदलाव के नाम पर चिल्लाने का उत्सव। इस उत्सव का स्वर भी मिलजाने दो। इस खुशी को मना लेने के उत्सव में। देखो भई, मेरा भारत महान है। तभी तो इन चिल्लाहटों के बावजूद उसकी विकास यात्रा का रंग उतरा नहीं। कौन कहता है देश की विकास दर, उत्पादन प्रगति को धक्का लग गया? अजी ऐसे धक्के खाने की तो इसे आदत हो गई है। बेशक आंकड़ा शास्त्री कहते हैं, बहुत कुछ खो दिया हमने। 
लेकिन इन आंकड़ों को करवट बदलते देर ही कितनी लगती है? मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे, आज विकास दर की जो पेशकश शून्य से मुंह चुरा रही है, देख लेना अगले आर्थिक वर्ष की चार तिमाहियों में ऐसी प्रगति होगी कि अवनति या पिछड़ जाने के एहसास उससे मुंह चुरायेगा।  फुटपाथी तो आज दीपोत्सव करने जा रहे हैं, लेकिन उनके यहां तो हर दिन दीवाली है। कल भी दीवाली थी, जब महामारी की आहट उजड़े और जीर्ण-शीर्ण घरों को और वीराना बना रही थी। इधर कल जो दो जून की रोटी खा रहे थे, आज एक जून अनाज और दूसरी जून सादे पानी पर आ गये, लेकिन जिनके घर दुमंज़िले थे, तिमंज़िले हो गये और अब तो ज़माना बहुमंज़िली इमारतों का आ गया है। सच कहूं इन मंज़िलों पर जब नियोन लाइट के दीयों का उजाला होता है तो सड़कों पर चलते हुए आदमी से उजबक हो गए लोग कह देंगे, ‘वाह दीवाली देखी तो इस बार देखी।’ आजकल नीचे फुटपाथ पर निर्वासित लोगों की भीड़ में कोई राजू डफली वाला आकर नहीं गाता, ‘दिल का हाल सुने दिल वाला।’
लेकिन दिल तो किसी के पास रहा नहीं, वह तो उन आंकड़ों की बाजीगिरी में खो गया, जो बहुमंज़िला इमारतों को पंचतारा बना देती है।  नहीं नीचे फुटपाथी पर संत्रस्त लोग इस बार तो दीवाली मना ही लेना चाहते हैं। सुना है इस दीवाली के बिना ही कोरोना का संक्रमण घट रहा है। तब तक जब तक कि आपके दीपोत्सव मनाने के अति उत्साह में इस महामारी की दूसरी लहर न चली आए। इसलिए फिलहाल मास्क का कवच डाल कर दीवाली मना ले बन्धु, कोरोना की दूसरी लहर की आमद होगी तो इन्हीं फुटपाथों पर होगी, अनुज।