चूहे से शार्क तक—जानवर दे रहे हैं इन्सान के लिए कुर्बानी

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कोविड-19 से संक्रमित हुए। उनकी सांस उखड़ रही थी, इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। पूरे संसार में यह चर्चा होने लगी कि अगर उन्हें कुछ हो जाता है तो क्या होगा, विशेषकर इसलिए कि अमरीका में 3 नवम्बर 2020 को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव है और ट्रम्प वाइट हाउस में दूसरी टर्म के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज के बड़े इंजेक्शन के बाद ट्रम्प को कुछ ही दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल गई। 1970 के दशक में विकसित यह नोबेल-विजेता उपचार, इस समय कोविड-19 के खिलाफ  सबसे मजबूत हथियार है। यह लैब-निर्मित एंटीबॉडीज के कारण नये कोरोना वायरस पर इम्यून सिस्टम को बढ़त प्रदान करा देता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज की 3,00,000 खुराकें रिजर्व में रखने के लिए अमरीका ने 450 मिलियन डॉलर दिए हैं। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज बनाने के लिए ‘मानव’ इम्यून सिस्टम वाले विशेष चूहों की ब्रीडिंग की जाती है। विरोधाभास देखिये कि यह इलाज चूहे (व सहयोगी हैमस्टर) के बिना संभव ही न था। ‘विरोधाभास’ इसलिए चूंकि जब यह महामारी शुरू हुई तो सारा फोकस चीन के वेट मार्केट्स पर था। रोग के फैलने के लिए वाइल्ड लाइफ  ट्रेड पर आरोप लगाया गया और कुछ समय के लिए जानवर ही दुश्मन प्रतीत होने लगे। लेकिन बाद के महीनों में स्पष्ट हो गया कि इस वायरस के नये उपचारों व वैक्सीन की तलाश में जानवरों की ही महत्वपूर्ण भूमिका है, जो केवल चूहे तक सीमित नहीं है बल्कि शार्क, मुर्गी आदि सभी शामिल हैं, हालांकि इन्सानों की जान बचाने के लिए इन जानवरों को बहुत बड़े पैमाने पर अपनी कुर्बानी देनी पड़ रही है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि संसार को इस समय कोविड-19 के खिलाफ  बहुत ही मजबूत वैक्सीन चाहिए। वैक्सीन को स्ट्रांग (मजबूत) बनाने का एक तरीका यह है कि उसमें ‘अड्जूवांट’ (वैक्सीन को अधिक प्रभावी बनाने का पदार्थ) मिला दिया जाये। ‘अड्जूवांट’ के साथ एक छोटी खुराक उस बड़ी खुराक से बेहतर होती है जिसमें ‘अड्जूवांट’ नहीं होता। ऐसे समय में जब वैक्सीन निर्माता मांग पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ‘अड्जूवांट’ की वजह से वैक्सीन की उपलब्धता में इजाफा हो सकता है। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि जो वैक्सीन विकसित की जा रही हैं, उनमें ‘अड्जूवांट’ को शामिल किया गया है। ‘अड्जूवांट’ जानवरों से लिया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि जिन 176 वैक्सीनों का मूल्यांकन किया जा रहा है, उनमें से 17 में ‘अड्जूवांट’ है। इन 17 में से 5 में जो ‘अड्जूवांट’ है, उसे स्कुआलेन कहते हैं, जोकि शार्क के लीवर आयल (जिगर के तेल) से निकाला जाता है।अगर इनमें से एक भी वैक्सीन सफल हो गई तो कम से कम 5,00,000 शार्कों की ‘हत्या’ करनी पड़ेगी कोविड वैक्सीन की ग्लोबल पूर्ति करने के लिए। एक शार्क में से लगभग 3 किलो स्कुआलेन ही निकल पाता है, जबकि हर शॉट में उसकी मात्रा 10 एमजी होती है। गौरतलब है कि स्कुआलेन सनस्क्रीन व अन्य कॉस्मेटिक्स का पहले से ही महत्वपूर्ण अंश है,जिसके लिए हर साल लगभग 2.7 मिलियन शार्क मारी जाती हैं। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि जैसे जैसे अन्य वायरसों से लड़ने के लिए वैक्सीन बनायी जायेंगी, तो उसी अनुपात में शार्क के शिकार में भी वृद्धि होगी। अब जाड़ों के करीब आने पर चिकित्सा विशेषज्ञों की चिंता बढ़ती जा रही है क्योंकि कोविड में फ्लू के शामिल होने से मृत्यु दर में इजाफा हो जायेगा। हालांकि इन दोनों रोगों का आपस में कोई संबंध नहीं है, लेकिन अगर समय रहते फ्लू का टीकाकरण कर दिया जाये तो कोविड मामलों में जटिलता से बचा जा सकता है। फ्लू वैक्सीन के लिए भी मानव समाज को पशु समाज का आभारी होना चाहिए। मुर्गी जो अंडा देती है, उसी की मदद से पांच में से चार फ्लू शॉट्स तैयार किये जाते हैं। 1930 के दशक में वैज्ञानिकों ने फ्लू वायरस को अंडों में विकसित किया क्योंकि अंडे सस्ते व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। समय के साथ अंडे और सस्ते व बड़ी मात्रा में मिलने लगे, तो वैक्सीन उन्हीं में ही बनायी जाती रही और आज तक फ्लू वैक्सीन बनाने का यही तरीका अपनाया जाता है। नया कोरोना वायरस चूंकि अंडों में विकसित नहीं होता है, इसलिए कोविड वैक्सीन फ्लू वैक्सीन की तरह तो नहीं बनायी जायेगी, लेकिन जाड़ों में फ्लू वैक्सीन की बढ़ती मांग के कारण अंडे आपके नाश्ते की प्लेट की बजाये लैब में अधिक पहुंचेंगे। एक माह पहले तक अंडा 4 रुपये का था, इस समय 7 रुपये का हो गया है, खासकर इसलिए भी कि जो लोग गोश्त नहीं खाते, वे प्रोटीन के जरिये इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अंडे का सेवन करने लगे हैं। ध्यान रहे कि 2019-20 के फ्लू सीजन में सिर्फ  अमरीका में ही फ्लू वैक्सीन बनाने के लिए 140 मिलियन अंडों का प्रयोग किया गया। एक शॉट बनाने के लिए एक अंडे की ज़रूरत पड़ती है। संक्षेप में बात सिर्फ  इतनी सी है कि मानव किसी भी जानवर को चाहे कितना ही तुच्छ समझे, लेकिन प्राकृतिक नियम कुछ ऐसे हैं कि हर जानवर मानव सेवा व सुरक्षा में अपनी सेवा बल्कि कुर्बानी दे रहा है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर