चीन का हठपूर्ण रवैया

पिछले पांच महीनों से पूर्वी लद्दाख में भारत एवं चीन के बीच जो तनाव बना हुआ है, वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचते दिखाई नहीं देता। इस संबंध में दोनों देशों की उच्च सैनिक स्तर पर सात बैठकें हो चुकी हैं। उनमें भी कोई बात साफ नहीं हो सकी। लगभग अढ़ाई वर्ष पूर्व अप्रैल, 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मध्य हुई मुलाकात में यह कहा गया था कि दोनों देश मतभेदों को विवाद नहीं बनने देंगे, परन्तु इसके विपरीत संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रत्येक सम्मेलन में दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच मतभेद उभर कर सामने आते रहे हैं। चीन भारत के भीतर सीमाओं के निकट घटित किसी भी महत्त्वपूर्ण घटना पर प्रश्न-चिन्ह लगाने लगता है। पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के 44 सीमांत क्षेत्रों के पुलों का उद्घाटन किया। इस पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हुये चीन का बयान आया था। भारतीय पक्ष की ओर से लद्दाख क्षेत्र में अपनी ही चोटियों पर बनाये गये सैनिक कैम्पों को लेकर भी चीन ने कड़ी आपत्ति उठाई थी तथा वहां से उन्हें हटा लेने की चेतावनी दी थी। वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर भारतीय सैनिकों की गश्त के संबंध में भी चीन आपत्ति करता रहा है। इसे लेकर 5 मास पूर्व सीमा पर सैनिकों का आपसी रक्तिम टकराव भी हुआ था जिसके बाद हालात बहुत खराब हो गये थे। पिछली लम्बी अवधि से चीन का रवैया आक्रामक जैसा रहा है। उसके अपने सीमांत पड़ोसी देशों के साथ अक्सर झगड़े होते रहते हैं, क्योंकि चीन इन सभी देशों की भूमि एवं समुद्र के संबंध में अपनी ओर से ही निर्धारित की गई सीमाओं के अनुसार दावे करता आ रहा है। भारत के साथ इस मामले पर उसकी एक बार लड़ाई और कई बार बड़े टकराव भी हुए हैं। इसके बावजूद चीन अपनी हठधर्मिता से किसी भी तरह पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। एक तरफ वह अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को ठेंगा दिखा रहा है और दूसरी तरफ उसने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता सम्भाली हुई है। विवादों को सुलझाने के यत्नों की बजाय वह अपने द्वारा किये जा रहे दावों पर ही अडिग रहने में बेहतरी समझता है। एक तरफ सीमांत मामलों को सुलझाने हेतु दोनों देशों की प्रत्येक स्तर पर बातचीत चलती रही है और अब भी चल रही है परन्तु इसके साथ ही उसने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा मानने से इन्कार कर दिया है। अभिप्राय यह कि वह एक बड़े प्रभुत्व सम्पन्न देश के क्षेत्रों को हड़पने की धमकी दे रहा है जबकि उसने अपना दावा जताते हुये 60 वर्ष से भी पूर्व तिब्बत को हड़प लिया था। ताइवान पर भी वह लगातार हमलों की धमकियां देता आया है परन्तु भारत द्वारा लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित करने पर वह लगातार अंगुली उठाता रहा है। उसके उत्तर कोरिया और पाकिस्तान से गहरे संबंध हैं। ये दोनों ही देश आज विश्व की नज़रों में किस तरह के माने जाते हैं, यह पूरा विश्व जानता है। हम महसूस करते हैं कि भारत को इन हालात में भी सीमा पर टकराव कम करने हेतु अपने कूटनीतिक यत्न जारी रखने चाहिएं, परन्तु इसके साथ ही अपनी सैन्य तैयारियों में भी किसी तरह की ढील नहीं आने दी जानी चाहिए। ऐसी नीति ही चीन को उचित स्थान पर रखने में सहायक हो सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द